मूल्यांकन : कभी दुनिया में बजता था भारतीय फुटबॉल का डंका

मुम्बई की तंग गलियां हों या दिल्ली का खुला मैदान या लखनऊ की कोई कालोनी हो या इंदौर का कोई बाज़ार, रविवार को एक बात आम नज़र आती है- हाथ में पकड़ा बल्ला और क्रिकेट प्रेमियों की भीड़। इस भीड़ में छोटे से लेकर हर उम्र के लोग क्रिकेट का लुफ्त उठाते मिलेंगे। अगर कहीं पूछा जाए कि किसी शहर, किसी रविवार को नौजवानों को फुटबॉल खेलते देखा? शायद काफी दिमागी कसरत के बाद याद आए, ‘कहीं गोल-गोल का शोर सुना था।’ इस देश (भारत) की तासीर ही कुछ ऐसी है। यहां रग-रग में क्रिकेट बसा हुआ है। केरल, बंगाल, गोवा और पूर्वी उत्तरी राज्यों को छोड़कर क्रिकेट के दीवाने इस देश में फुटबॉल का जादू फीफा विश्व कप के दौरान ही चढ़ता है, फिर ब्राज़ील या अर्जन्टीना जैसी चहेती टीम के टूर्नामैंट में से बाहर होते ही फुटबॉल का बुखार उतर जाता है। हालांकि भारत पिछले वर्ष अंडर-17 फीफा विश्व कप की मेज़बानी और हिस्सेदारी करने में सफल रहा है, लेकिन एक सवाल आज भी उठ रहा है कि दुनिया में सबसे अधिक देशों में खेले जाने वाले खेल में कहां खड़ा है। भारतीय फुटबॉल? इस सवाल के जवाब में जाने-अनजाने तर्क मिल सकते हैं कि भारतीय फुटबॉल कभी खड़ा ही कहां था, यानि भारतीय टीम महाशक्ति थी ही कब? यह तर्क इसीलिए दिया जा सकता है क्योंकि सवा करोड़ से भी ज्यादा आबादी वाले इस देश में यकीनन दावे से कहा जा सकता है कि ज्यादातर लोग इस बात से वाकिफ ही नहीं होंगे कि भारत कभी फुटबॉल की महाशक्ति हुआ करता था। वर्ष 1950 में भारत ने ब्राज़ील में खेली गई फुटबॉल विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया था, लेकिन नंगे पैरों से खेलने की इज़ाजत न मिलने से भारत ने यह मौका गंवा दिया था।भारतीय टीम ने 1951 के एशियन खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। 1956 में मैलबोर्न ओलम्पिक में भारतीय टीम सैमीफाइनल में पहुंची और चौथे स्थान पर रही। एशियन फुटबॉल चैम्पियनशिप में उसका डंका बजता था और भारत को ब्राज़ील ऑफ एशिया कहा जाता था। पी.के. बैनर्जी, चुन्नी गोस्वामी, तुलसी राम बलराम, अरुण घोष, जरनैल सिंह, इंद्र सिंह, गुरदेव सिंह जैसे फुटबॉलर काबलियत के पैमाने पर दुनिया के टॉप फुटबॉलरों में शामिल थे। दरअसल 1970 के बाद भारतीय फुटबॉल समय की गर्दिश में गुम होता गया। भारत ने 1970 में आखिरी बार एशियन खेलों में कांस्य पदक जीता था। उसके बाद भारतीय टीम कभी भी पदक दौड़ में नहीं रही। (शेष अगले अंक में)