रिज़र्व बैंक ने रेपो दर को 6 प्रतिशत पर कायम रखा

मुम्बई, 7 फरवरी (भाषा) : मुद्रास्फीति की चिंता में भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज लगातार तीसरी बार द्वैमासिक समीक्षा में मुख्य नीतिगत दर (रेपो रेट) को 6 प्रतिशत पर कायम रखा है। इससे लोन सस्ते होने की संभावना खत्म हो गई। केन्द्रीय बैंक ने राजकोषीय घाटा के जोखिमों को लेकर भी चिंता जताई है।  रेपो रेट वह दर है जिसपर केंद्रीय बैंक अन्य वाणिज्यिक बैंक को फौरी जरूरत के लिए उधार देता है। रिवर्स रेपो दर (जिस दर पर बैंक बैंकों से फौरी उधार लेता है) को भी 5.75 प्रतिशत पर कायम रखा गया है। रिज़र्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने इससे पहले पिछले साल अगस्त में रेपो दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर छह प्रतिशत किया था। यह इसका छह साल का निचला स्तर है। उसके बाद से केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दर में बदलाव नहीं किया है। 6 सदस्यीय एमपीसी ने कहा, ‘‘मुद्रास्फीति का परिदृश्य कई अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है। राज्यों द्वारा सातवें वेतन आयोग के क्रियान्वयन, कच्चे तेल के ऊंचे दाम, सीमा शुल्क में बढ़ोतरी तथा 2017-18 में राजकोषीय घाटा लक्ष्य से अधिक यानी 3.5 प्रतिशत रहने के अनुमान और अगले वित्त वर्ष के लिए ऊंचे लक्ष्य से मुद्रास्फीति के ऊपर जाने का जोखिम बना हुआ है।’’ केन्द्रीय बैंक ने कहा, ‘‘आम बजट में राजकोषीय घाटा लक्ष्य से अधिक रहने का अनुमान लगाया गया है। इसका मुद्रास्फीति के परिदृश्य पर असर पड़ेगा। महंगाई पर इसका सीधा प्रभाव तो पड़ेगा ही, साथ ही राजकोषीय मोर्चे पर चूक के वृहद वित्तीय प्रभाव होंगे। विशेषरूप से अर्थव्यवस्था के स्तर पर ऋण की लागत बढ़ेगी। इसमें पहले ही वृद्धि शुरू हो गई है।’’ रिज़र्व बैंक ने हालांकि कहा कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले असर का अभी आकलन करना मुश्किल है। रिज़र्व बैंक ने 2017-18 की चौथी तिमाही के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर 5.1 प्रतिशत कर दिया है। अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही में इसके 5.1 से 5.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। हालांकि, अगले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में मुद्रास्फीति के घटकर 4.5 से 4.6 प्रतिशत पर आने का अनुमान लगाया गया है। एमपीसी ने कहा कि सकारात्मक पक्ष यह है कि कमज़ोर क्षमता इस्तेमाल तथा ग्रामीण वेतन में धीमी वृद्धि जैसे कारकों का प्रभाव कम हो रहा है।