फिदायीन हमले

अब जम्मू के सुंजवान सैन्य शिविर पर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों द्वारा फिदायीन हमला किया गया है। सूचना के अनुसार शनिवार सुबह कुछ आतंकवादी सैन्य शिविर के रिहायशी क्वार्टरों में घुस गए। इस हमले में दो जवान शहीद हो गए और कुछ लोग घायल भी हुए हैं। इन आतंकवादियों के जहां तक आत्मघाती या फिदायीन हमलों का संबंध है, जम्मू-कश्मीर में इनकी सूची बहुत लम्बी है। यह हमले पाकिस्तान में बैठे जैश-ए-मोहम्मद तथा लश्कर-ए-तैय्यबा के नेताओं द्वारा करवाए जाते हैं। जम्मू-कश्मीर के अलावा देश के अन्य बहुत सारे स्थानों पर भी ऐसे हमले किए गए हैं। इनमें मुंबई, दिल्ली, गुजरात, पंजाब तथा अन्य अनेक स्थान शामिल हैं। अब तक इन हमलों में सैकड़ों ही लोग मारे जा चुके हैं। इन प्रशिक्षित आतंकवादियों को इनके संचालकों द्वारा पूरी तरह मरने-मारने के लिए तैयार करके भेजा जाता है। इनको बड़ी संख्या में आधुनिक हथियार दिए जाते हैं। सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ के दौरान खाने-पीने के लिए इनके पास खाद्य वस्तुओं का बड़ा भण्डार भी होता है। ऐसे हमले अनेक बार सेना सीमा सुरक्षा बल, पुलिस, धार्मिक स्थलों और यहां तक कि संसद पर भी हो चुके हैं। ऐसे हमले गत दो दशकों से जारी हैं और इनका अंत दिखाई नहीं दे रहा। यह आतंकवादी भारत की सीमाओं में घुसकर कब, किस समय और किस स्थान पर हमला कर सकते हैं, इसका कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। यदि कोई हथियारबंद व्यक्ति मारने या मरने के लिए ही आता है, तो उसको किसी भी स्थान पर हमला करने से रोका जाना बेहद मुश्किल है। आतंकवादियों का लक्ष्य अधिक से अधिक लोगों को मारना होता है, इसमें बड़े अधिकारियों से लेकर जवानों तक, आम नागरिकों से लेकर बच्चों और महिलाओं तक को भी मार दिया जाता है। इन आतंकवादी संगठनों की शक्ति इतनी बढ़ चुकी है कि इनका कत्लेआम का सिलसिला खत्म होने वाला नहीं है। उदाहरण के तौर पर मुंबई में 26 नवम्बर, 2008 में 10 आतंकवादियों ने पूरी तरह हथियारबंद होकर कहर बरपा दिया था, जिसमें सैकड़ों ही लोग मारे गए थे और महज़ 6 दिनों के बाद कुपवाड़ा में पुन: बड़े हमले हुए थे और पुलिस के विशेष आप्रेशन ग्रुप को निशाना बनाया गया था, जिसमें 9 लोग मारे गए थे। इसी तरह वर्ष 2001 में जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को जैश-ए-मोहम्मद ने निशाना बनाया था। इस हमले में 38 नागरिक मारे गए थे। दिसम्बर, 2001 में 5 आतंकवादियों ने दिल्ली में लोकतंत्र के मंदिर संसद पर हमला करके 14 सुरक्षा जवानों को मार दिया था, जिसके बाद देश की सीमाओं पर बड़ा तनाव पैदा हो गया था। सितम्बर, 2002 में गुजरात की राजधानी गांधीनगर के प्रसिद्ध मंदिर अक्षरधाम पर किए गए हमले में 33 श्रद्धालु मारे गए थे। इसी वर्ष जम्मू के रघुनाथ मंदिर में किए गए हमले में 11 श्रद्धालु मारे गए थे और 20 घायल हुए थे। पठानकोट के सैन्य हवाई अड्डे पर 6 आतंकवादियों ने हमला करके 7 सुरक्षाबलों को मार दिया था। हैरानी की बात यह है कि यह मुठभेड़ 96 घंटे तक चलती रही थी। इसके बाद भी यह सिलसिला लगातार जारी है। इससे कुछ अहम परिणाम यह निकाले जा सकते हैं कि आतंकवादी संगठन हर हाल में भारत को रक्त-रंजित करना चाहते हैं। लगातार पाकिस्तान से सीमा पार करके आए इन आतंकवादियों को पाकिस्तानी सेना की ओर से पूरी सहायता मिल रही है और वही इनको बड़ी मात्रा में हथियार देती है। इनके पास फंडों की कोई कमी नहीं है। पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन इस तरह के हैं जो वहां भी सत्ता पर काबिज़ अपने विरोधियों को भी लगातार निशाना बनाते रहे हैं। इनके द्वारा केन्द्रीय मंत्रियों, राज्यपालों और यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री को भी निशाना बनाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया गया है। पाकिस्तान की सेना किसी भी हाल में भारत के विरुद्ध अपनी यह नीति बदलने के लिए तैयार नहीं है और न ही यह अपने अन्य पड़ोसी अफगानिस्तान के बारे में अपनी नीति बदल रही है। परन्तु अब हालात इस तरह के बन गये हैं कि पाकिस्तान में किसी के भी कुछ बस में नहीं रहा प्रतीत होता है। बड़ी चिन्ता की बात यह है कि इस बात की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आगामी समय में इनकी पहुंच पाकिस्तान द्वारा बनाये गए परमाणु बमों तक भी हो सकती है। भारत दशकों से आतंकवादियों के हमले को बर्दाश्त करता आया है, जिस कारण तत्कालीन केन्द्र सरकार की बड़ी आलोचना भी होती रही है, क्योंकि अब पाकिस्तान किसी भी हाल में अपने इन हिंसक कृत्यों से टलने वाला नहीं लगता। आज दुनिया के अधिकतर लोग ऐसी नीतियों के लिए उसकी आलोचना कर रहे हैं। परन्तु भारत में अब इन नीतियों की इतनी आंच पहुंचनी शुरू हो गई है, जो किसी भी सरकार की सहनशक्ति से बाहर है। लगातार मिलती ऐसी बड़ी चुनौती को अब भारत जैसे देश के लिए सहन करना कठिन होता जा रहा है, जिससे दक्षिण एशिया पर युद्ध के बादल और भी गहरे होते दिखाई दे रहे हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द