प्यार में सौदा नहीं

‘सीता, मेरी और तुम्हारी शादी किसी हाल में भी सम्भव नहीं है। तुम यह बात समझती क्यों नहीं, मैंने कभी तुमको इस ख्याल से देखा भी नहीं, हां हम साथ-साथ पढ़ते हैं, लेकिन हमारे और तुम्हारे परिवार में बहुत फर्क है।’ मोहन बोला।
सीता गरीब परिवार से थी, लेकिन उसकी परवरिश में किसी प्रकार की कमी उसके मां-बाप ने नहीं रखी थी। उसके पिता जी अध्यापक थे।  वह बहुत सुन्दर थी और साधारण कपड़े पहनकर भी वह राजकुमारी की तरह लगती थी। वह बहुत गुणवान और चरित्रवान थी, मोहन से वह मन ही मन प्यार करने लगी थी, परन्तु वह यह बात उसको बताने में कभी समर्थ नहीं थी, जब कालेज छोड़ने का समय आया तो उसने अपनी सारी शक्ति लगाकर अपने मन की बात मोहन को बता दी। 
हमारा परिवार शहर का एक जाना-माना परिवार है। ऐसा नहीं कि मैं तुम्हें पसन्द नहीं करता, तुम में वह सभी गुण हैं, जो एक लड़की में होने चाहिए और वाकई तुम में किसी तरह की कोई कमी भी नहीं है। मैं यह भी जानता हूं कि तुमने सिर्फ मुझे ही चाहा है, फिर भी हमारे और तुम्हारे बीच का फासला ज़मीन आसमान का है। मोहन बोला।
मोहन मन ही मन सोच रहा था कि उसे इतनी अच्छी सुशील और चरित्रवान लड़की नहीं मिल सकती और जिसे वह कितने सालों से जानता भी है। इसके संस्कार भी किसी अच्छे खानदान का सबूत देते हैं, लेकिन उसे एक ही अड़चन सामने दिखाई देती है, वह थी अमीरी और गरीबी का अन्तर। 
सीता मोहन की बात सुनकर मन ही मन टूट गई थी। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि उस पर दुखों का पहाड़ गिर पड़ा हो। समय का चक्र चलता रहता है, यह कभी रुकता नहीं है। समय कब पंख लगाकर उड़ गया, इसका पता भी नहीं चला। सीता की शादी हो गई। उसका पति एक स्कूल में अध्यापक था। सीता थी ही इतनी सुन्दर कि उसे कोई भी देखकर मना नहीं कर सकता था। विवाह के एक वर्ष बाद ही उसके घर चांद सा बेटा हुआ, जिसका नाम रखा गया राजा। वह बिल्कुल अपनी मां सा लगता था। उधर मोहन की शादी भी बहुत धूमधाम से अच्छे घराने में हुई और अब मोहन भी एक बेटी का बाप बन गया, जिसका नाम नेहा था। दोनों बड़े हुए, और फिर एक दिन दोनों ने एक ही कालेज में दाखिला लिया। दोनों एक-दूसरे के सच्चे मित्र थे और एक-दूसरे को दिल से चाहने लगे थे। राज ने आई.ए.एस. पास कर ली थी और उसकी पोस्टिंग अपने ही शहर में हो गई थी। उससे सभी अधिकारी और कर्मचारी प्रसन्न रहते। देखते ही देखते वे अपने किराये के घर से एक बड़े घर में शिफ्ट हो गए। घर में नौकर-चाकर भी थे। अब उनका परिवार सम्मानित लोगों में शामिल होने लगा था। शहर के सभी गणमान्य व्यक्ति राज को जानते थे। 
उधर मोहन का बिजनेस काफी डाऊन आ गया था। पैक्टरी में ‘लाक आउट’ हो गया। अब बस किसी तरह से गुजारा चल रहा था। अमीरी के सारे ठाठ-बाठ धर में धरे रह गये थे।  वह बहुत हताश हो गया था और उसे अपनी बेटी की शादी की चिन्ता भी सताये जा रही थी। वह बार-बार सोचता था, मैं अपनी इकलौती बेटी की शादी कैसे करूंगा, मेरे पास  तो अब इतनी सम्पत्ति भी नहीं है। 
एक दिन नेहा ने अपने पापा से कहा—पापा मुझे पता है, वह दिल ही दिल मुझे चाहता है। नेहा की बात सुनकर मोहन की आंखों में आंसू झलक पड़े और उसने झट से अपनी बेटी को गले से लगा लिया। मेरे साथ पढ़ने वाला युवक राज बहुत अच्छा है।  वह आई.ए.एस. पास है।  वह यह नहीं जानता था कि राज उसी सीता का ही बेटा है। उसने नेहा से कहा—बेटी एक बार तुम उससे पूछ लो, अगर वह तुम्हारी बात मान जाये। (क्रमश:)