वक्त आ गया है पाकिस्तान को सबक सिखाने का

भारत और चीन के बीच ढाई-तीन महीने तक भारत-भूटान-चीन की सीमा पर डोकलाम में तनातनी और युद्ध के जैसे हालात बने रहने के बाद जब सीमा पर शांति कायम हुई तो पाकिस्तान ने अपना मोर्चा खोल दिया है। धूर्त पड़ोसी पाकिस्तान सीजफायर का निरंतर उल्लंघन कर रहा है। अब तो उसकी शैतानियां हद से बाहर हो गई हैं। बीते दिनों उसने भारत पर मिसाइल तक दाग दिया। यह मिसाइल अमरीका ने पाकिस्तान को अफ गानिस्तान में अलकायदा के आतंकियों पर दागने के लिए दिया था, जिसका दुरुपयोग पाकिस्तान अब भारत की सीमा पर बसे निरीह जनता को मारने के लिए कर रहा है। तो क्या यह मान लिया जाये कि चीन और पाकिस्तान की यह साझा कोशिश हो रही है कि भारत को किसी प्रकार से सीमा विवाद में उलझा कर रखा जाए। यह स्थिति वाकई गंभीर है। भारत को अब इस चीन-पाक की मिलीभगत में अपनी कूटनीति और रणनीति में बदलाव तो करने की आवश्यकता तो होगी ही रक्षात्मक रवैया भी अब छोड़ना होगा। भारत की तो यह परंपरागत नीति ही रही है कि हम ‘आक्रामक रवैया’ नहीं अपनाते। यह कफी हद तक सही भी है, लेकिन हमारी विनम्रता को कभी-कभी कमजोरी भी मान लिया जाता है , इसलिये दुष्ट दुश्मनों को समय-समय पर यह बताना भी ज़रूरी हो जाता है कि विनम्रता कतई हमारी कमजोरी नहीं है, एक कहावत है कि ‘कभी-कभी तो अरबी घोड़ों को भी जोर से एड़ी मारनी पड़ती है और ये पाकिस्तानी तो अरबी घोडें नहीं, खच्चर हैं । जो न ही घोड़े होते हैं न ही साबुत गधे ही हैं। । ये तो बीच-बीच के जानवर हैं। जिन्हें, समय-समय पर उनकी औकात तो बतानी ही पड़ेगी।   और, अब पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाने का सही वक्त आ ही गया है। भारत से लगातार तीन बार क्रमश: 1948,1965,1971 और फि र कारगिल के छद्म युद्ध में धूल चाट चुके पाकिस्तान को तबीयत से पिटाई खाने की तीव्र इच्छा जागृत हो रही है। पाकिस्तान वार्ता से आपसी मसले सुलझाने के लिए तैयार ही नहीं है। उससे उसका पड़ोसी ईरान भी और कभी उसका खुद का हिस्सा रहा बांग्लादेश भी बुरी तरह से नाराज हैं। बांग्लादेश ने तो उससे अपने संबंध मात्र सांकेतिक भर ही कर लिए हैं। बांग्लादेश ने तो उड़ी हमले के बाद भारत के सर्जिकल एक्शन का समर्थन भी किया था। पाकिस्तान से बांग्लादेश इसलिए भी सख्त रूप से खफ ा है, क्योंकि पाकिस्तान लगातार उसके आंतरिक मामलों में टांग अड़ाने से कभी बाज ही नहीं आता। बांग्लादेश में 1971 के सैन्य कत्लेआम के गुनाहगारों को बांग्लादेश में लगातार फांसी पर लटकाया जा रहा है। इससे पाकिस्तान को हर बार बड़ी तकलीफ  होती है। तकलीफ  होनी भी लाजिमी है। क्योंकि, तब पाकिस्तान की जंगली सेना ने अपने ही देश पूर्वी पाकिस्तान के लाखों बांग्लाभाषियों को निर्ममतापूर्वक मार डाला था। हज़ारों बांग्लादेशी महिलाओं के साथ जघन्य दुष्कर्म भी हुए थे। उनका मुख्य कसूर मात्र यही था कि वे उर्दू को अपनी भाषा मानने को तैयार नहीं थे । वे बांग्ला प्रेमी थे और वहीं बने रहना चाहते थे । उन पर जबरदस्ती उर्दू थोपी जाए इसका बंगलाभाषी मुसलमान विरोध कर रहे थे, तब पाकिस्तान सेना का वे ही लोग साथ दे रहे थे, जिन्हें आजकल बांग्लादेश में सूली पर लटकाया जा रहा है। बहरहाल, अगर भारत की सैन्य शक्ति के समक्ष चीन जैसा शक्तिशाली और घोर अहंकारी देश भी जब भाग खड़ा हो सकता है, तो फि र दो कौड़ी के पाकिस्तान की औकात ही क्या है।
पानी मांग रहा चीन 
कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि भारत की सरकार द्वारा दृढ़ रुख अपनाने के चलते ही डोकलाम पर जबरन कब्ज़ा करने की गीदड़-भभकी देने वाला चीन भी अंतत: बाज आ गया था। भारत के आत्म विश्वास और हौसलों के आगे चीन का हौसला भी पस्त हो गया था। अंतत: चीन को अपनी रेड आर्मी को वापस बैरक में भेजने का फैसला करना ही पड़ा था। युद्ध के विचार को तो कभी भी बौद्ध और गांधी का देश भारतवर्ष आगे बढ़ा ही नहीं सकता। लेकिन,  हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वीर अर्जुन और दानवीर कर्ण का भी भारत है और अब 1962 का जैसा कमजोर राष्ट्र कत्तई  नहीं रह गया है। चीन को अब यह भाषा अच्छी तरह समझ में आ गयी है। इसलिए, अब वह पाकिस्तान के कंधे पर बन्दूक रख कर गोली चला रहा है, लगता है कि चीन ही पाकिस्तान को भारत की सीमा के अन्दर मिसाइल दागने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
बांटता आतंकवाद
आज पूरे विश्व को इस सच्चाई का पूरी तरह पता है कि दुनिया के सभी देशों को आतंकवाद की सप्लाई करता है पाकिस्तान। जिस देश में ओसामा बिन लादेन जैसे खूंखार आतंकवादी को सुरक्षित पनाहगाह मिला हो, उसके बारे में आप क्या कहेंगे? पिछले दिनों तो अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी पाकिस्तान को दी जाने वाली सुरक्षा सहायता पर रोक लगाकर विश्व को यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अमरीका से सहायता पाने के इच्छुक देश अब आतंकवाद को समर्थन देकर अमरीका के दोस्त तो हर्गिज हो ही नहीं सकते। 
अमरीका की ओर से ऐसे कड़े संदेश का लंबे समय से इंतजार भी किया जा रहा था। ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान पर स्पष्ट रूप से यह आरोप लगाया कि आतंकवाद के खिलाफ  लड़ाई में वह पर्याप्त काम नहीं कर रहा है। यानी पाकिस्तान की असलियत से तो अब सब के सब वाकिफ  हो ही गए हैं। 
करो अपने पर भरोसा
पर हमारे देश में पिछले सत्तर साल में तो यही देखने में आता रहा है कि जब भी पाकिस्तान से हमारे संबंध खराब हुए तो हम पूरे विश्व के सामने ही अपना पक्ष रखने लगे। मंशा यही रहती थी कि जब शेष संसार हमारे साथ खड़ा हो जाए तभी हमें यह समझ लेना होगा कि भारत को अपनी लड़ाई शुरू करने का सही वक्त आ गया है। और, इस मनोवृत्ति से तो हम लगातार कमजोर पड़ते गए। कोई भी देश हमें बाहर से नैतिक समर्थन तो दे सकता है, पर लड़ना तो अपने देश को ही होगा। कोई भी और कभी भी कमजोर का साथ नहीं देता, जब हमारा राष्ट्र मज़बूत होगा और अपनी मज़बूती को प्रदर्शित करने की क्षमता भी रखेगा तभी दूसरे राष्ट्र भी हमारा साथ देने के लिए आगे बढ़ेंगे। अगर आज के जमाने में भी कोई यह समझता है कि जंग सिर्फ  सेना लड़ती है तो ये सोच उनकी घोर मूर्खता होगी। युद्ध देश लड़ता है। लेकिन, देश की समूची जनता का बल उसके पीछे खड़ा रहता है। हमने चीन के साथ डोकलाम विवाद के समय भी यह स्पष्ट अनुभव किया कि चीन के विस्तारवादी और आक्रामक रवैये के खिलाफ कोई भी देश हमारे साथ खुलकर खड़ा होता नजर नहीं आया था। और तो और, जिस ब्रिक्स के भारत और चीन दोनों ही सदस्य हैं, उसके बाकी सदस्यों ने भी दोनों देशों को एक टेबल पर लाने की कोई सक्रिय चेष्टा तक नहीं की थी। शायद हिम्मत ही नहीं जुटा पाये। जब ब्रिक्स की यह स्थिति है तो फि र सार्क देशों की तो चर्चा करना ही व्यर्थ है। श्रीलंका, नेपाल, अफ गानिस्तान, भूटान और मालदीव में इतनी कुव्वत ही कहां कि वे बेचारे हमारे लिए बोलने की हिम्मत करें या पाकिस्तान को उसकी धूर्तता के लिए धिक्कारें। लेकिन, जब हम ही मज़बूती के साथ खड़े होंगे तभी अमरीका से लेकर इज़राइल तक सभी महाशक्तियां हमारे पक्ष में खड़े होंगे। मात्र सन् 2017 में ही 860 बार से ज्यादा पाकिस्तान ने युद्ध विराम का उल्लंघन किया है। पाकिस्तानी सेना आरएस पुरा सेक्टर से लेकर पुंछ सेक्टर तक कोई ढाई सौ किलोमीटर के सीमावर्ती क्षेत्र में पाकिस्तानी रेंजर भारतीय सीमा के अन्दर रिहायशी इलाकों में लगातार गोले बरसा रहे हैं। अब तक हमारे सैकड़ों जवान शहीद हो चुके हैं। दर्जनों नागरिक पाक की नापाक गोलियों का निशाना बन चुके हैं। कोई चार दर्जन लोग मोर्टार के गर्म गोलों के छर्रों से बुरी तरह घायल भी हो चुके हैं। सरहद पर बसे अनेकों गांव के गांव खाली हो गए हैं। सेना और बीएसएफ  के जवान भी जवाबी हमले तो कर रहे हैं लेकिन, कुल मिलाकर भारत-पाक सरहद पर युद्ध जैसे हालात हैं। लेकिन, अब जवाबी कार्रवाई को छोड़कर आक्रामक रुख अपनाने की जरूरत आ गई है। पाकिस्तान को यह बताना ही पड़ेगा कि हम रक्षात्मक ही नहीं, आक्रामक भी हो सकते हैं।  गरीबी और बदहाली से त्राहि-त्राहि करते पाकिस्तान का रुख शुरू से भारत विरोधी रहा है। वह भारत विरोध पर ही जिन्दा है, अपनी जनता का ध्यान समस्याओं से मोड़ कर गीदड़ भभकी देता रहता है। 1971 की जंग में अपनी इज्जत लुटवाने वाली और 90 हज़ार सैनिकों का समर्थन करने वाली पाकिस्तान सेना को कड़ा संदेश तो देना होगा। मिसाइल का जवाब तो उससे भी बड़े मिसाइल से देकर ही दुष्ट पाकिस्तान को एक बार फिर सदा के लिए शांत कर देने की ज़रूरत है ।