सिंहेश्वर : जहां दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था

देवाधिदेव महादेव बाबा सिंहेश्वर नाथ की नगरी मुंगेर से बीस मील दूर दौराम मधेपुरा नामक स्टेशन के नज़दीक है। कहा जाता है कि इस स्थान पर प्राचीन काल में महर्षि शृंगी का आश्रम था। इस स्थान के विषय में प्रचलित है कि यह क्षेत्र प्राचीन काल में जंगल से भरा हुआ था। दूर-दूर से चरवाहे अपनी गाय-भैंस लेकर यहां चराने आते थे। चरवाही के दौरान एक बछिया (कामधेनु) एक निश्चित  स्थान पर अपने थन से प्रतिदिन दूध गिराया करती थी। एक दिन एक चरवाहे की नज़र उस बछिया पर पड़ी तो उसने उत्सुकतावश उस स्थान की खुदाई की। उसे भूमि के अन्दर से एक आकर्षक शिवलिंग की प्राप्ति हुई। उसने उस लिंग की स्थापना वहीं कर दी। बाद में श्रद्धालुओं ने वहां एक छोटे-से मंदिर का निर्माण करवा दिया। ब्रह्मपुराण की एक कथा के अनुसार त्रेतायुग में राजा दशरथ ने यहां पुत्रेष्टि यज्ञ सम्पन्न कर राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न को पुत्र के रूप में प्राप्त किया था। इस यज्ञ के अवसर पर शृंगी मुनि ने ही इस शिवलिंग की स्थापना की थी। इस अवसर पर यहां हवन के लिए सात कुंड बनाए गये थे जिनमें से छह कुण्ड अभी भी भग्न तालाब के रूप में स्थित हैं। लोगों का मानना है कि महर्षि शृंगी द्वारा स्थापित शिवलिंग का नाम सिंहेश्वर (शृंगेश्वर) है।
वराह पुराण के अनुसार एक बार किसी विशेष प्रयोजनवश भगवान ब्रह्मा, विष्णु एवं इन्द्र भगवान शंकर से मिलने के लिए कैलाशपुरी पहुंचे। वहां शंकर नहीं थे। काफी खोजने के बाद भी जब शंकर नहीं मिले तो वे तीनों निराश होकर लौटने लगे।
रास्ते में विश्राम करने के लिए वे तीनों एक स्थान पर रुके। ब्रह्माजी ने ध्यान लगाकर देखा कि भगवान शंकर एकान्तवास के लिए घने वन में एक हिरण का रूप धारण कर निवास कर रहे हैं। वह अन्तर्यामी देव अलौकिक छवि के साथ विचरण करने वाले हिरण रूपी भगवान शंकर को पहचान गये। काफी परिश्रम करने के बाद शिव रूपी हिरण को वह पकड़ने में सफल भी हुए। तीनों देवताओं ने उस हिरण के सींगों को तीन भागों में पकड़ा। देवराज इन्द्र ने हिरण के सींग का अग्रभाग, ब्रह्मा ने मध्यभाग तथा विष्णु ने सबसे नीचे वाला भाग पकड़ा। तीनों देवों द्वारा सींग के पकड़ते ही अचानक सींग तीन भाग में विभाजित हो गया। तीनों के हाथ में सींग का एक-एक  रह गया और हिरण रूपी शिव सहसा लुप्त हो गये।
हिरण को लुप्त हुए देख तीनों देव निराश हुए। उसी समय आकाशवाणी हुई कि अब भगवान शिव नहीं मिलेंगे। फलत: तीनों देवों को हाथ में आए हुए सींग को पाकर ही संतोष करना पड़ा। देवराज इन्द्र ने अपने भाग वाले सींग को स्वर्ग में स्थापित किया, ब्रह्मा ने अपने भाग को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया तथा विष्णु ने अपने भाग वाले सींग को मानव कल्याण के लिए सिंहेश्वर स्थान में स्थापित कर दिया। भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित होने के कारण सिंहेश्वर नाथ की पूजा शैव पद्धति से न होकर वैष्णव पद्धति से ही होती है। किंवदन्ती के अनुसार पाण्डवों ने भी भीम बांध क्षेत्र (विराट नगर) में शरण लेने की अवधि में सिंहेश्वर नाथ मंदिर में आकर पूजा की थी। इस प्रकार पौराणिक एवं ऐतिहासिक दोनों ही प्रकार से सिंहेश्वर नाथ स्थान का काफी महत्व है।
इस स्थान पर शिव विवाह (शिवरात्रि) के अवसर पर पन्द्रह दिनों तक एक विशाल मेला लगता है। इस मेला में बिहार, झारखण्ड एवं नेपाल के तराई भागों से लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस स्थान पर इस अवसर पर हज़ारों युवक-युवतियों का विवाह सम्पन्न होता है। मान्यता है कि इस स्थान पर विवाह करने वाली युवतियों को वैधव्यता का मुंह नहीं देखना पड़ता और वे जीवन के अंतिम सांस तक सुहागन बनी रहती हैं।
सिंहेश्वर स्थान के एक पुजारी पं. धर्मनाथ झा के अनुसार इस स्थान पर विवाह करने वाले दंपति को सन्तान अवश्य  प्राप्त होती है। साथ ही उनमें तलाक जैसी बात कभी नहीं आती। वैधव्यता एवं बांझपन के दोषों से मुक्त रखकर बाबा सिंहेश्वर नाथ उनके जीवन को सदा सुखमय बनाये रखते हैं। धार्मिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्त्व को दर्शाने वाला सिंहेश्वर स्थान स्वयं में अलौकिक तीर्थ स्थान है। यहां से भक्त कभी भी निराश नहीं लौटते। डमरू वाले बाबा सबकी कामना अवश्य पूरी करते हैं। (उर्वशी)
— परमानंद परम