आग पर तेल


कश्मीर के मामले पर एक बार फिर घटनाओं का घटनाक्रम तेज़ी से घूमना शुरू हो गया है। कुछ दिन पूर्व मोहम्मद नवीद नामक आतंकवादी जो कई वर्षों से श्रीनगर जेल में बंद था, को इलाज के लिए अस्पताल ले जाने पर आतंकवादियों ने इसको छुड़ा लिया और दो पुलिसकर्मियों को भी मार दिया। उसके बाद जम्मू के सुंजवा सैन्य शिविर पर किए हमले में 6 जवानों सहित 7 व्यक्तियों की मौत हो गई। यह हमला शनिवार को शुरू हुआ था परन्तु उसके अगले दिन श्रीनगर के करण नगर में सी.आर.पी.एफ. के कैम्प पर हमला किया गया जिसमें एक जवान शहीद हो गया। इन दोनों हमलों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आने वाला नहीं। सुजवां कैम्प पर हमले ने आतंकवादियों से असाल्ट राइफलें, रॉकेट लांचर और ग्रेनेड मिले हैं। यह हमले भारत की प्रभुसत्ता पर सीधी चोट हैं। सुजवां हमले के बाद रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है और यह भी कि शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा, बल्कि इसका दुश्मन को करारा जवाब दिया जायेगा।
नि:संदेह दशकों से ऐसी नीतियां धारण करके पाकिस्तान आत्महत्या के रास्ते पर चला हुआ है। जम्मू-कश्मीर की समस्या संबंधी वह यह कहता है कि वहां लोगों द्वारा भारत सरकार के विरुद्ध हथियारबंद संघर्ष किया जा रहा है और लोग आज़ादी की मांग कर रहे हैं, जबकि वास्तव में यह कुछ आतंकवादी संगठनों का कृत्य है जिनके प्रमुख पाकिस्तान में बैठे हैं और वहां से ही वह हथियारबंद आतंकवादियों को भेजकर भारत में स्थान-स्थान पर हमले करवाते हैं। वर्ष 2016 में इसी तरह का उड़ी सैक्टर में आतंकवादियों का हमला हुआ था, जिसमें 18 जवान शहीद हो गए थे। उसके बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के भीतर जाकर सर्जिकल स्ट्राईक की थी, परन्तु पाकिस्तान पर उसका कोई असर नहीं हुआ था। अब भी ऐसी सम्भावना को देखते हुए पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से यह कहा गया है कि भारतीय अधिकारी बिना किसी जांच पड़ताल के अपनी तयशुदा नीति के कारण पाकिस्तान पर ऐसे फिजूल दोष लगाते हैं, जिससे दोनों परमाणु क्षमता वाले देशों में तनाव पैदा होता है। इसलिए भारत को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए। इस बयान से यह साफ ज़ाहिर है कि पाकिस्तान को भारत की ओर से ऐसी कारवाई का डर है और वह अपनी परमाणु क्षमता के आधार पर भारत को डरा रहा है, परन्तु जिस तरह का व्यवहार उसने करना शुरू किया है, उसको देखते हुए भारत के पास सभी विकल्प खत्म होते जा रहे हैं। कश्मीर की सीमाओं पर तनाव लगातार बना रहता है। एक विवरण के अनुसार वर्ष 2015 में 152, वर्ष 2016 में 228, वर्ष 2017 में 860 और वर्ष 2018 में अब तक 240 बार सीमा पर संघर्ष-विराम का उल्लंघन हो चुका है। इससे साफ जाहिर है कि गत कई वर्षों से सीमाओं पर यह तनाव बना हु है। लगी इस आग पर पाकिस्तान की सेना आतंकवाद को प्रोत्साहन देकर और आतंकवादियों की सीमा पार से आने में सहायता करके तेल डालती जा रही है, जिससे किसी भी समय यह आग भड़क सकती है।
चाहे भारत इस संबंधी बहुत सोच-समझ कर कदम उठा रहा है परन्तु यह भी प्रभाव मिल रहा है कि वह पूरी दृढ़ता से पाकिस्तान से निपटने के लिए तैयार है। एक लोकतांत्रिक देश की अपनी सीमाएं होती हैं। भारत की अन्तर्राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी कहीं बड़ी और मजबूत है। आज इस पर दुनिया भर की नज़रें हैं, जबकि पाकिस्तान को एक गैर-ज़िम्मेदार तथा आतंकवादी देश माना जाने लगा है। नि:संदेह ऐसे देश से निपटना बेहद मुश्किल होता है परन्तु अंत में भारत का दृढ़ निश्चय पाकिस्तान को अपनी सीमाओं में रहने और ज़िम्मेदारी से चलने के लिए अवश्य मजबूर कर देगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द