केजरीवाल सरकार की कारगुज़ारी

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को बने तीन वर्ष हो गए हैं। इस अवसर पर जहां मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस अर्से के दौरान अपने द्वारा किए गए कार्यों की चर्चा की वहीं विरोधी पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने इन उपलिब्धयों को बहुत कम मानते हुए सरकार की कारगुज़ारी की आलोचना की है। दिल्ली देश की राजधानी है और यह केन्द्र प्रशासित क्षेत्र है, इसलिए यहां चुनी हुई सरकार की शक्तियां भी काफी सीमित हैं। यहां की सरकार को लैफ्टिनेंट गवर्नर के अधीन रहकर ही कार्य करना पड़ता है। परन्तु फिर भी अपने निर्धारित क्षेत्र के कार्यों में सरकार की उपलब्धियों से ही सरकार की सफलता और असफलता का अनुमान लगाया जा सकता है। सरकार के पास शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, स्थानीय निर्माण, सफाई तथा अन्य अनेकों कार्यों की ज़िम्मेदारी होती है। केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की दूसरी बार सरकार बनने पर दिल्ली वासियों ने बड़ी उम्मीदें लगाई थीं। यह सरकार 14 फरवरी, 2014 को सत्ता में आई थी और अपने चुनाव घोषणा-पत्र में भी इसने जहां शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव लाने के वायदे किए थे, वहीं स्वास्थ्य के क्षेत्र को चुस्त-दुरुस्त करने की बात भी की थी। लोगों को कम दरों पर बिजली और पानी देने का भी वायदा किया था, इसलिए अपना पावर प्लांट लगाने तथा राजधानी के क्षेत्र को सौर ऊर्जा से चमकाने की बात भी की गई थी। दिल्ली में लगातार बाहरी राज्यों से अधिकतर लोग रहने के कारण इसका विकास असंतुलित ही रहा है। सैकड़ों ही अनधिकृत कालोनियां बनती रही हैं। अब भी इस शहर में 1650 अनधिकृत कालोनियां हैं, जिनमें 50 लाख से अधिक लोग रहते हैं। राजनीतिक पार्टियां और राजनीतिज्ञ इनको मान्यता देने के लिए प्रयासरत हों और इनमें अच्छे सुधार लाने की बजाय लोगों को बेहतर सुविधाएं मुहैय्या करवाने के सिर्फ नारे ही लगाते रहते हैं, ताकि यहां के बड़ी संख्या में मतदाताओं को प्रभावित कर सकें। दिल्ली बेहद भीड़-भाड़ वाला शहर है। इसमें यातायात को अधिक तर्कसंगत बनाने के लिए अधिक से अधिक बसें चलानी भी ज़रूरी हैं। इस नई पार्टी ने यह भी वायदा किया था कि वह इस महानगर में ऐसे प्रयास करेगी कि यहां शराब की बिक्री को सीमित किया जा सके, परन्तु सरकार की नीति से शराब की बिक्री में वृद्धि ही हुई है। यदि इन सभी मुद्दों की पड़ताल की जाए तो केजरीवाल सरकार की इन तीन वर्षों की उपलब्धियां नाममात्र ही प्रतीत होती हैं। वर्ष 2010-11 में यहां लोकल बसों की संख्या 6,000 से ऊपर थी, जो अब घटकर 4,000 तक सीमित हो गई है। सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में अवश्य कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त की हैं, इसलिए ‘मिशन चुनौती’ की योजना भी शुरू की गई थी, ताकि छात्रों को बेहतर शिक्षा दी जा सके। गैर-सरकारी स्कूलों की फीसों में वृद्धि को रोका जा सके तथा नर्सरी के दाखिले को पारदर्शी बनाया जाए, परन्तु सरकार के 500 नये स्कूल और 20 डिग्री कालेज बनाने के वायदे अब तक हवा में ही लटक रहे हैं। 17,000 के लगभग ठेके पर अध्यापकों के साथ चुनावों से पहले यह वायदा किया गया था कि उनको पक्का कर दिया जायेगा परन्तु यह वायदा भी अधूरा ही रहा है। सरकार इस समय के दौरान 8,000 नये स्कूली कमरे बनाने का दावा अवश्य कर रही है। ज़रूरतमंदों तक पानी पहुंचाने के लिए अधिक नई लाईनें नहीं डाली जा सकीं। सरकार की यह उपलब्धियां इसलिए भी आधी अधूरी प्रतीत होती हैं, क्योंकि गत तीन वर्षों में आम आदमी पार्टी के दर्जनों विधायकों पर कई तरह के केस दर्ज होते रहे हैं, जिनमें छेड़छाड़ के केस भी शामिल हैं। अलग-अलग मामलों में अब तक 15 के लगभग विधायकों को हिरासत में भी लिया गया था। सरकार बनाने के समय से ही इसका उप-राज्यपाल के साथ टकराव चलता रहा है। इसका मुख्य कारण केजरीवाल और उनके साथियों को अपनी सीमाओं का एहसास न होना है। इसलिए उप-राज्यपाल के साथ हमेशा सरकार का तनाव बना रहा है। इसी कारण सरकार को सर्वोच्च न्यायालय का द्वार भी खटखटाना पड़ा था, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से इसको निराशा ही हुई थी। संसदीय सचिवों के मुद्दे पर इसके 20 विधायकों को चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा अयोग्य करार दिया गया है, जिससे इन क्षेत्रों में पुन: चुनाव होने के आसार बन गए हैं। आम आदमी पार्टी में लोकतंत्र की भी काफी कमी है, इसका अनुमान केजरीवाल द्वारा अपने प्राथमिक और वरिष्ठ नेताओं प्रशांत भूषण तथा योगेन्द्र यादव को पार्टी से निकालने से ही लगाया जा सकता है। पार्टी का अपने दो अन्य नेताओं कुमार विश्वास तथा आशुतोष के प्रति रवैया ज्यादा अच्छा नहीं रहा।ईमानदारी के नाम पर सत्ता में आई इस पार्टी पर लगातार भ्रष्टाचार के दोष लगते रहे हैं। राज्यसभा के चुनावों में तीन सीटों के लिए पार्टी की ओर से जिन व्यक्तियों को उम्मीदवार बनाया गया, उनमें से दो धन-कुबेर हैं, जिन पर उंगलियां उठती रही हैं। गत समय के दौरान पार्टी की आन्तरिक तोड़-फोड़ ने जहां इसको बड़ी सीमा तक खोखला कर दिया है, वहीं इसको हमेशा विवादास्पद भी बनाये रखा है। आन्तरिक कलह के बढ़ने के कारण सरकार अपने ज्यादातर वायदे पूरे करने से असमर्थ रही प्रतीत होती है। जिस उम्मीद और आशा से लोगों ने बड़ा समर्थन देकर इस पार्टी को खड़ा किया था, आज वह उम्मीद बहुत धुंधली हुई प्रतीत होती है। इसने बड़ी सीमा तक लोगों को निराश ही किया है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द