गायिकी और सभ्याचार में प्रदूषण फैलाने वालों पर नकेल कसने लगी पुलिस

समय का चक्र चलता ही रहता है। दिन के बाद रात, सर्दी के बाद गर्मी, दुख के बाद सुख, पतझड़ के बाद बहार और फिर इसके विपरीत बहार के बाद पतझड़ का दौड़ शुरू हो जाता है। 
हर हनेरा ही मुक जांदा है, रातों बाद सवेरा हुंदा,
बात समय दी हुंदी है बस, कुझ पल पीड़ा जर वे माही।
पंजाब की ओर सिखों की सभ्याचारक तबाही का दौर शायद अब रुक जाए, क्योंकि समय की सरकार इसको रोकने के लिए कुछ कदम उठाने पर मजबूर हुई है। ‘शायद’ इसलिए कहा क्योंकि समय के शासक स्वयं जो करते हैं, वह हर समाज और राज्य के लिए उदाहरण होता है। फिर जो नई ‘सरगोशियां’ सुनाई दे रही हैं, उन पर खुशी का प्रगटावा बनता है कि 27 वर्ष पूर्व पंजाबियों और सिखों का मनोबल तोड़ने के लिए चली गई चाल जो बाद में हमारा सभ्याचार ही बन गई, को नकेल डालने की कोशिश भी उसी पार्टी की सरकार ने की। जिस पार्टी की सरकार ने इस सभ्याचारक तबाही की शुरुआत करवाई थी, परन्तु इसका मतलब यह कदापि नहीं कि पंजाबियों और खासतौर पर सिखों के सभ्याचार की तबाही में दूसरी पंजाबी पार्टियां शामिल नहीं थीं। 
सभ्याचार की तबाही की शुरुआत
बेशक पंजाब की बर्बादी की कहानी 1978 के सिख निरंकारी विवाद से शुरू हुई थी। 1984 पंजाब और खासतौर पर सिखों के लिए तबाही के शिखर का वर्ष था परन्तु वास्तव में पंजाबियों और सिखों के सभ्याचार की तबाही की मौजूदा शुरुआत 1992-93 में बेअंत सिंह की सरकार के समय बहुत योजनाबद्ध ढंग से और साज़िशन  शुरू की गई थी। उस समय खाड़कुओं को मारने के नाम पर कत्लेआम का दौर शुरू हुआ, जिसमें असली खाड़कू भी मरे, झूठे पुलिस मुकाबले भी हुए और निजी रंजिशों में पैसे लेकर भी लोग मरवाए गए। कितने अज्ञात लोग मारे गए, इसका लेखा-जोखा स. जसवंत सिंह खालड़ा ने शुरू किया था और उन्होंने तथा उनके साथियों ने हज़ारों अज्ञात शवों का सत्य भी प्रकट किया था। परन्तु स्वयं स. खालड़ा को ही गायब कर दिया गया और यह सत्य बीच में ही लटक गया। खैर, बात कर रहे थे कि पंजाबी और सिख सभ्याचार की बर्बादी की शुरुआत की। हुआ यह कि कत्लेआम से लोगों का ध्यान हटाने और हालात सामान्य करने के नाम पर पुलिस के संरक्षण में सभ्याचारक मेलों की शुरुआत की गई। यह नहीं कि इससे पहले गिद्धा, गीत, भांगड़ा होता ही नहीं था परन्तु इन मेलों को एक योजनाबद्ध ढंग से चलाया गया कि धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा कि पंजाबी और सिख सभ्याचार बंदूकों, राइफलों के प्रदर्शन, गैंगस्टरों, नंगेज़ भरपूर वीडियोज़, शराब का खुला सेवन, अश्लील गीतों का सभ्याचार ही हो।  परिणाम हमारे सामने हैं, पंजाब में अन्य नशों के अलावा शराब की प्रति सदस्य खपत हैरानीजनक है। गैंगस्टर हमारे नायक बन चुके हैं। एक गैंगस्टर के नाम पर तो कालेजों और यूनिवर्सियों में स्टूडैंट यूनियन तक बनी है। स्थिति यह है कि अभद्र इशारों पर द्वि-अर्थी शब्दों वाले गीतों पर भाई-बहन सरेआम नाचते हैं। हमारा परिधान ही नहीं बदला, हमारी समझ भी बदल गई है। वास्तव में पंजाबियों और खासतौर पर सिखों के असली सभ्याचार को खत्म करने की एक साज़िश थी कि उनमें से हक और सच के लिए लड़ने तथा खड़े होने का जज्बा ही नहीं, बल्कि समझ भी खत्म हो जाए। 
सभ्याचार है क्या?
पंजाबी और सिख सभ्याचार को समझने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि वास्तव में सभ्याचार होता क्या है? सभ्याचार का तात्पर्य यह होता है ‘किसी क्षेत्र या कौम के लोगों द्वारा अपनाई जीवन-शैली’, जिसमें भाषा, रस्मो-रिवाज़, लोक-कथाएं, लोकगीत, खान-पान, पहरावा, व्यवहार, आचार, संगीत, फलस्फा, धार्मिक ग्रन्थों के अलावा जीवन का उद्देश्य तथा आदर्श भी शामिल होते हैं। खासतौर पर सिख सभ्याचार को समझने में सिखों द्वारा रोज की जाती अरदास सबसे अधिक सहायक हो सकती है। हम रोज़ अरदास करते हैं :
सिखों को सिखी दान, केश दान, रहत दान, विवेक दान, विसाह दान, भरोसा दान, दाना सिर दान, नाम दान... चौकियां, झण्डे, बूंगे, युगो-युगो अटल धर्म का जयकार, सिखां दा मन नीवां, मत उच्ची और सब कुछ से ऊपर अंत में सरबत का भला मांगा जाता है। वास्तव में सिखों का असली सभ्याचार जीवन उद्देश्य और आदर्श सब कुछ इन मांगों जो परमात्मा से मांगी जाती हैं, के आसपास ही बुना और बना हुआ है। हमारा संगीत गुरुबाणी पर आधारित था। हमारे गीत समाज की निरोल परम्पराओं पर आधारित थे। हमारा पहरावा नंगेज ढकने के लिए था। हमारे नायक जुल्म के खिलाफ लड़ने वाले और शहीद होने वाले थे। परन्तु अब हमारा सभ्याचार शायद साग, मक्की की रोटी, शराब, अश्लील गीत, नंगेज तक ही सीमित हो गया है और हमारे नायक गैंगस्टर तथा बेरहम भ्रष्ट राजनीतिज्ञ बन गए हैं।
समय का चक्र पूरा हो गया?
परन्तु इस स्थिति के लिए अकेली बेअंत सिंह सरकार ही ज़िम्मेदार नहीं। बेशक उस दौर में गायकों को एस.पी.ओ. बनाकर गनमैन और अन्य सुविधाएं भी दी गईं होने की चर्चाएं हैं परन्तु बाद में चाहे वह हरचरण सिंह बराड़ या राजिन्द्र कौर भट्ठल की कांग्रेस सरकार बनीं या प्रकाश सिंह बादल की 1997 में सरकार बनीं, उस समय जब शिरोमणि कमेटी के प्रधान के तौर पर जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा भी एक समान सत्ता केन्द्र थे या 2002 से 2007 तक की कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सरकार या फिर 2017 तक की स. बादल की सरकार बेशक यह कथित सभ्याचारक मेले पुलिस लगवाने से हट गई थी, परन्तु किसी ने अश्लील गीत, गैंगस्टरों को पकड़ने, नशों के दरिया को रोकने के लिए कुछ नहीं किया, अपितु अकाली दल की हालत तो यह हो गई कि जो अकाली दल अपनी रैलियां श्री गुरु ग्रंथ साहिब की ताबेयां में किया करता था, वह ढाडियों की बजाय अपनी रैलियों में उपस्थिति बढ़ाने के लिए कई बार अश्लील गीत गाने वाले गायकों तथा गायिकाओं को बुलाने लगा। परन्तु अब शायद समय ने एक चक्र पूरा कर लिया है। शायद 12 से चली घड़ी की सुई पुन: 12 पर पहुंच गई है। हमारी जानकारी के अनुसार कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार ने एक नया कदम उठाया है कि पंजाब के सभी ज़िला प्रमुखों को निर्देश दिए हैं कि वह अपने पुलिस ज़िले के सभी के सभी प्रमुख गायकों, गीतकारों, संगीतकारों को बुलाकर उनके साथ बैठकें करके उनको यह बताएं कि हथियारों के प्रदर्शन वाली वीडियोज़, गैंगस्टरों का महिमामंडन, नंगेज और अश्लीलता वाले गीत अब बर्दाश्त नहीं किए जायेंगे। हमारी जानकारी के अनुसार कई स्थानों पर इन आदेशों पर अमल भी शुरू हो गया है। यह सचमुच ही कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सरकार का एक सराहनीय कदम है, परन्तु यदि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सचमुच ही पंजाबी और सिख सभ्याचार को बचाना चाहते हैं तो उनको इसके साथ-साथ कुछ कदम और उठाने पड़ेंगे, जिनमें पंजाब में दूसरे नशों के साथ-साथ शराब के बहते दरिया को बंद करने, चाहे शराब से होती कमाई का और विकल्प ढूंढना पड़े, विवाह-शादियों पर होते बेहिसाब खर्च पर पाबंदी लगाने, मैरिज़ पैलेस सभ्याचार को खत्म करने, आत्महत्या करने को प्रोत्साहित करने वाली योजनाएं बंद करना आदि शामिल हैं। इसके साथ-साथ पंजाब और सिखों के असली सभ्याचार का प्रचार और प्रसार करने के लिए पंजाब के सभी सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में पांचवीं से दसवीं कक्षा तक पंजाबी, सिख सभ्याचार को एक आवश्यक विषय के तौर पर पढ़ना आवश्यक बनाया जाय, ताकि हमारी अगली पीढ़ियां सिर्फ हमारी गौरवमयी विरासत से ही परिचित न हों, अपितु उनके नायक पंजाबियों के असली नायक हों तथा उनके जीवन का उद्देश्य सिर्फ नशा और नाच-गाने या ऐश-परस्ती ही न हो।

—1044, गुरुनानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना