बैंकिंग प्रणाली के लिए खतरा बन गए हैं बैंक घोटाले

नीरव मोदी नाम के एक हीरा व्यापारी द्वारा बड़े स्तर पर पंजाब नैशनल बैंक तथा कुछ अन्य बैंकों के साथ घोटाला करने का मामला सामने आने से एक बार समूचे बैंकिंग क्षेत्र में हाहाकार मच गई है। एक अनुमान के अनुसार उसने पंजाब नैशनल बैंक के साथ 11,346 करोड़ रुपए का घोटाला किया है। वह मुंबई में इस बैंक की एक शाखा से फर्ज़ी  गारंटी लेकर दूसरे अनेक ही बैंकों की विदेशों में स्थित शाखाओं से ऋण लेता रहा है। उसने स्विफ्ट मैसेजिंग प्रबंध के द्वारा अपनी आभूषणों की कम्पनियों के लिए विदेशों में ऋण लिए। इससे देश के इस बड़े बैंक को तो बड़ी समस्या का सामना करना ही पड़ा है, परन्तु दूसरे संबंधित बैंक भी पूरी तरह परेशान हुए दिखाई देते हैं। इस घोटाले के सामने आने पर नीरव मोदी के दिल्ली, मुंबई तथा सूरत आदि में दर्जनों ही ठिकानों पर छापे मारे गए। उसकी 5,100 करोड़ के लगभग मूल्य की सम्पत्ति भी जब्त कर ली गई है।बैंक द्वारा घोटाला सामने आने पर 31 जनवरी को उसके खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करवाई गई थी, परन्तु यह कार्यवाही होने से पहले ही वह देश से भाग गया था। इससे पहले विजय माल्या ने कई सरकारी बैंकों के साथ बड़ा घोटाला किया था और वह भी देश छोड़कर भाग गया था। आज वह इंग्लैंड में बैठा है। भारत सरकार उसको वापिस लाने के लिए प्रयासरत है। इस बात पर सरकार की किरकिरी हो रही है कि वह आज तक भी देश वापिस लाने और उस पर कानूनी कार्यवाही करने में सफल नहीं हो सकी। वर्ष 2001 में केतन पारिख नाम के व्यक्ति ने भी एक को-आप्रेटिव बैंक के साथ बड़ा घोटाला किया था, जिसकी बड़ी चर्चा हुई थी। सभी बैंकों द्वारा छोटी-मोटी राशि ब्याज़ पर देने के लिए अनेक कार्रवाइयां और सैकड़ों ही हस्ताक्षर करवाए जाते हैं परन्तु धन-कुबेरों से वह कैसे और क्यों मात खा जाते हैं। इस बात की समझ नहीं आई? एक खबर के अनुसार पंजाब नैशनल बैंक ने गत साढ़े पांच वर्षों में जबरदस्त घाटा खाया है। अलग-अलग लोगों को दिए ऋणों की वसूली नहीं हो सकी। अंतत: 28,000 करोड़ से भी अधिक डूबा हुआ ऋण माफ कर दिया गया है। इस बात को रिज़र्व बैंक ने भी माना है। बैंकों की हो रही ऐसी दुर्दशा ने जहां इस प्रबंध संबंधी बड़ी चिन्ताएं पैदा की हैं, वहीं लोगों का विश्वास भी इनसे उठता प्रतीत होने लगा है। इस बात में सच्चाई है कि मार्च, 2018 तक भारतीय बैंकों के 11 लाख करोड़ रुपए डिफाल्टर लोगों द्वारा न दिये जाने के कारण और कम्पनियों द्वारा स्वयं को दिवालिया घोषित किये जाने से डूब गए हैं और इस धन-राशि को बट्टे खाते में डाल दिया गया है। इस दिवालियापन की नीति ने सरकारी बैंकों को भीतर से खोखला कर दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में अक्तूबर से दिसम्बर तक ऋण डूबने के कारण स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 2416 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ। इसी समय के दौरान बैंक ऑफ इंडिया को 2341 करोड़ रुपए, कार्पोरेशन बैंक को 1240 करोड़ रुपए, इंडियन ओवरसीज़ बैंक को 971 करोड़ और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को 637 करोड़ रुपए का घाटा पड़ चुका है। ऐसी व्यवस्था से बैंकिंग प्रबंध पूरी तरह चरमर्रा गया प्रतीत होता है। अब नीरव मोदी द्वारा किए घोटाले से और उसके देश से भाग जाने तथा स्विटज़रलैंड दावोस में हुए सम्मेलन के समय अन्य कारोबारियों में प्रधानमंत्री के साथ उसकी तस्वीर प्रकाशित होने से केन्द्र सरकार को भी स्पष्टीकरण देने पड़ रहे हैं, जबकि आगामी दिनों में विरोधी पार्टियों द्वारा इस संबंध में उन पर निशाने भी कसे जायेंगे। नि:संदेह गत समय के दौरान ऐसे घोटाले करके देश से भागे अनेक धन-कुबेरों को हर हाल में सज़ा दिलाई जानी आवश्यक है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द