मायावती के दोहरे रवैये से परेशान है विरोधी पक्ष

विपक्ष की एकता के मुद्दे पर हैरान करने वाला तत्त्व जोड़ते हुए बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती, जो राज्यसभा से इस्तीफा दे चुकी हैं, विपक्ष की बैठकों से अनुपस्थित हो चुकी हैं। कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी यह उम्मीद कर रही हैं कि आगामी 2019 के आम चुनावों में उत्तर प्रदेश में भाजपा के विरुद्ध एकजुट होकर चुनाव लड़े जायेंगे, परन्तु मायावती के घटनाक्रम के कारण उनको झटका लगा है। 
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के नेतृत्व में रखी गई बैठक में बसपा नेता अनुपस्थित ही नहीं रहे, अपितु उनके द्वारा अपना कोई प्रतिनिधि भी नहीं भेजा गया। बसपा उस समय भी अनुपस्थित थी जब विरोधी पार्टियों द्वारा राज्यसभा के आधे दिन के बहिष्कार का ऐलान किया गया था। इसके अलावा 15 विरोधी पार्टियों द्वारा न्यायाधीश लोया के मुद्दे पर राष्ट्रपति को दिए गए ज्ञापन पर भी बसपा द्वारा हस्ताक्षर नहीं किये गए। कर्नाटक में कांग्रेस के विरुद्ध लड़ने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल (संयुक्त) के साथ मायावती द्वारा गठबंधन किया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस गठबंधन द्वारा कांग्रेस के वोट शेयर को खराब किया जायेगा। अंतत: यदि उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस और बसपा द्वारा एक साथ वोट नहीं किया जाता तो भी समाजवादी पार्टी की एक सीट और भाजपा की दस में से आठ सीटें पक्की हैं। यदि कांग्रेस, सपा और बसपा एकजुट होकर लड़ते हैं तो वह दो सीटों पर जीत सकते हैं, नहीं तो उनके पास एक सीट ही रह जायेगी। मायावती द्वारा आज तक इस मामले को छिपाकर ही रखा गया कि वह किस गठबंधन के साथ जाना पसंद करती हैं। 
राबड़ी देवी का नेतृत्व
पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, जोकि जेल में हैं, की अनुपस्थिति में राष्ट्रीय जनता दल द्वारा उपाध्यक्ष राबड़ी देवी के नेतृत्व में नई प्रबंधक कमेटी का ऐलान किया गया। इस कमेटी में रघुवंश प्रसाद सिंह, शिवनंद तिवारी, मुहम्मद इलयास हुसैन और मंगनी लाल मंडल शामिल हैं। 11 मार्च को आगामी लोकसभा उप-चुनाव में आर.जे.डी. की क्षमता को परखा जायेगा जोकि मोहम्मद तसलीमउद्दीन की मौत होने के कारण खाली हुई है। यह मुख्यमंत्री नितीश कुमार के लिए भी परीक्षा की घड़ी होगी, जिनको हाल ही में केन्द्र की ओर से जैड प्लस सुरक्षा मुहैया करवाई गई है और यह समय ही तय करेगा कि इस उप-चुनाव में चुनाव अभियान का नेतृत्व कौन करेगा। नितीश कुमार तथा भाजपा के विरुद्ध आर.जे.डी.-कांग्रेस गठबंधन की राज्य में अपनी मज़बूत पकड़ के लिए लड़ाई होगी। जनता दल (संयुक्त) के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार पार्टी आगामी उप-चुनाव नहीं लड़ेगी। 
शीला दीक्षित की ज़रूरत 
ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली कांग्रेस को पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के महत्व के बारे में पता चल चुका है, जोकि विधानसभा के आगामी उप-चुनावों में पार्टी को सफलता दिला सकती हैं। लम्बे समय से उनके राजनीतिक विरोधी और दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन द्वारा शीला दीक्षित के घर में विचार-चर्चा की गई। शीला दीक्षित 15 वर्ष मुख्यमंत्री रही और दिल्ली में विकास का श्रेय भी उनको ही जाता है। अजय माकन के अध्यक्ष बनने के बाद दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरविंद सिंह लवली, पूर्व महिला कांग्रेस अध्यक्ष बरखा सिंह तथा अमरीक गौतम पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए थे। कांग्रेस हाईकमान पार्टी को एकजुट करना चाहती है और यह माना जाता है कि वह अजय माकन को उप-चुनाव में शीला दीक्षित के नेतृत्व में लड़ाने के इच्छुक हैं।
फूलपुर सीट के लिए कोशिशें
फूलपुर समाजवादी पार्टी का केन्द्र है, जिसको 2014 में भाजपा हार गई थी। जब यह पार्टी बहुत ही बड़े बहुमत से केन्द्र की सत्ता में आई थी। फूलपुर अब भाजपा के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिसको यह गत वर्ष के विधानसभा चुनावों में बहुत ही अच्छी कारगुज़ारी के बाद जीतने की कोशिश कर रही है। केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां को भाजपा के विरुद्ध चुनाव मैदान में उतारने पर कांग्रेस और सपा के बीच विचार-चर्चा हो रही है। कृष्णा पटेल मृतक सोने लाल जिन्होंने 1995 में अपना दल की स्थापना की थी, की पत्नी है। मां और बेटे दोनों ही पार्टियों का अलग पक्ष से नेतृत्व करती हैं। कृष्णा गत वर्ष विधानसभा चुनाव रोहानिया से हार गई थी, जिसको उनकी बेटी ने 2012 के चुनावों में जीता था। 
सूत्रों के अनुसार कृष्णा के साथ कांग्रेस और सपा द्वारा बातचीत की गई और यह भी माना जाता है कि इस संबंधी कुछ दिनों में अंतिम फैसला लिया जायेगा। इसके अलावा फूलपुर से पूर्व सांसद रहे धर्मराज पटेल तथा गिरिजापुर से संसद सदस्य रहे बाल कुमार पटेल के नामों पर चर्चा हो रही है। 
आपराधिक मामले और करोड़पति
‘नैशनल इलैक्शन वाच एण्ड एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोरमस’ के अनुसार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के विरुद्ध आपराधिक मामलों के 22 मामले दर्ज हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के विरुद्ध 11 आपराधिक मामले और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दस आपराधिक मामलों के साथ इस सूची में तीसरे स्थान पर हैं। 11 मुख्यमंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामलों के केस दर्ज हैं। 
इस समय 31 मुख्यमंत्रियों में से 25 करोड़पति हैं। इस सूची में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन.चन्द्रबाबू नायडू प्रथम स्थान पर हैं, जिन्होंने 177 करोड़ की सम्पत्ति बताई है। इसके बात अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू 129 करोड़ की सम्पत्ति के साथ दूसरे स्थान पर आते हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने 48 करोड़ जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2 करोड़ की सम्पत्ति के बारे में बताया है। इसके अलावा त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्रियों द्वारा करोड़ से भी कम सम्पत्ति होने के बारे में बताया गया है।