चुनावों में काले धन की समस्या सर्वोच्च् अदालत का सही फैसला

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भविष्य में चुनाव लड़ने के इच्छुक प्रत्याशियों द्वारा अपने परिवार जनों सहित अपने सभी आश्रितों की सम्पत्ति एवं उनकी आय के स्रोतों के विवरण को ज़ाहिर करने का निर्देश नि:संदेह रूप से देश के लोकतांत्रिक ढांचे की मजबूती हेतु एक और स्तम्भ के रूप में सिद्ध हो सकता है। माननीय अदालत ने यह तर्क भी दिया है कि इससे लोकतंत्र की पावनता और शुचिता का दायरा बढ़ेगा। अदालत ने केन्द्र सरकार को इस संदर्भ में निरन्तर निरीक्षण हेतु एक ढांचा विकसित करने और इस फैसले को इसकी मूल भावना के साथ लागू किये जाने पर भी बल दिया है। भारत विश्व का सबसे बड़े एवं प्राचीन लोकतंत्र वाला देश है। वर्तमान में देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अनेक त्रुटियां होने की सम्भावनाओं के बावजूद, विगत सात दशकों में जिस प्रकार चुनाव प्रक्रियाएं सम्पन्न हुई हैं, अथवा जिस प्रकार सत्ताओं का परिवर्तन हुआ है, उसने विश्व में देश की साख को बढ़ाया है। तथापि, विगत पांच-छह दशकों से देश की चुनाव प्रक्रिया जिस प्रकार महंगी हुई है, तथा जिस प्रकार चुनावी व्यवस्था में धन-बल और बाहुबल ने अपनी भूमिका निभा है, उसने लोकतंत्र के धवल वस्त्रों पर दाग भी लगाया है। इसी व्यवस्था के कारण देश में काले धन का दैत्य निरन्तर वृहदाकार होता चला गया है, और काले धन की मौजूदगी ने देश में असमानता, पेड न्यूज़ जैसी दुर्बलताओं और आपराधिक संरचना को बढ़ावा दिया है। 
आज स्थिति यह हो गई है कि चुनावों के दौरान प्रयुक्त होने वाले धन-बल और बाहुबल ने लोकतंत्र की शुचिता एवं पावनता को इस सीमा तक प्रभावित किया है कि विगत एक-दो दशकों से सम्पूर्ण चुनाव मशीनरी पर भी प्रश्न-चिन्ह उठने लगे हैं। चुनावों के दौरान भिन्न-भिन्न वर्गों की ओर से की जाने वाली अनियमितताओं और ज्यादतियों को रोकने के लिए चुनाव आयोग की ओर से नित्य नये प्रावधान किये जाते आ रहे हैं। निष्पक्ष एवं स्वतंत्र मतदान हेतु ई.वी.एम. का प्रयोग भी इसी दिशा में उठाया गया एक सुधार पग कहा जा सकता है। तथापि, यह माना जाने लगा कि चुनाव आयोग ने अब तक जितने भी चुनावी सुधार किये हैं, उनसे कुछ न कुछ लाभ अवश्य होता आया है, परन्तु काले धन के अभिशाप ने अपना साया निरन्तर बड़ा करना जारी रखा। चुनाव आयोग ने कुछ वर्ष पूर्व चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों द्वारा अपनी अथवा पत्नी और बेटों की सम्पत्ति का विवरण देने और चुनावों के दौरान किये जाने वाले खर्च की सीमा तय किये जाने की व्यवस्था जोड़ी थी, परन्तु प्रत्याशियों ने यहां भी चोर-दरवाज़ा तलाश लिया था और अतिरिक्त खर्च को परिवार के अन्य सदस्यों के नाम पर जोड़ा जाने लगा। चुनाव जीतने वालों द्वारा अपनी पारिवारिक आय के स्रोतों के बारे जानकारी न देने से भी देश में काले धन की सत्ता मज़बूत हुई है।देश की राजनीति नि:संदेह आज एक उद्योग अथवा व्यवसाय के रूप में परिवर्तित होकर रह गई है। इसी के दृष्टिगत राजनीतिज्ञों ने अपनी आय को बढ़ाने और फिर बढ़ी हुई आय को छिपाने के लिए अनेक प्रकार के हथकंडे अपनाने शुरू कर दिये। इन्हीं हथकंडों का परिणाम है कि माननीय सांसदों/विधायकों/मंत्रीगणों की आय एवं सम्पत्ति में अल्पकाल में ही भारी वृद्धि होते पाई गई। पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिज्ञों की सम्पत्ति और आय में अमीबाओं की भांति दो से चार और चार से 16 के पथ पर बेपनाह वृद्धि हुई है। इस प्रकार की अघोषित आय के कारण अनेक बड़े राजनीतिज्ञों के पांव लौह-जाल में फंसे भी हैं। इस एक तथ्य ने भी चुनाव प्रक्रिया को महंगा करने और चुनावों में काले धन का प्रयोग सत्ता को मजबूत करने में बड़ी भूमिका अदा की। चुनाव आयोग ने इससे पूर्व कई बार इस समस्या पर काबू पाने हेतु यत्न किये, परन्तु राजनीतिक सत्ता-दम्भ के चलते उसे अधिक सफलता नहीं मिली। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस हेतु निर्देश जारी किये हैं तो नि:संदेह आस बंधती है कि देर-सवेर इस सही निर्देश के सार्थक परिणाम सामने आने लगेंगे। इस प्रकार की समस्याओं ने देश के लोकतंत्र को विदेश की धरती पर इंगित भी किया है। विश्व की कुछ परिपक्व लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में इसी कारण भारत के लोकतंत्र को आरोपित किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि विश्व लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने अपने दागों को प्राय: दूर किया है, परन्तु दुर्भाग्य से न तो देश की संसद ने इस ओर ध्यान दिया है, और चुनाव आयोग भी इस समस्या पर नियंत्रण नहीं पा सका है। हम समझते हैं कि देश का लोकतंत्र आज जिस मुकाम तक पहुंच चुका है, वहां से पीछे मुड़ कर देखने की तो कोई गुंजाइश है ही नहीं। तथापि, आगे बढ़ने के पथ अनेक हैं और सर्वोच्च अदालत द्वारा दिया गया निर्देश ऐसे पथों को और प्रशस्त करेगा। सर्वोच्च अदालत द्वारा केन्द्र को दिया गया यह निर्देश भी कारगर भूमिका निभा सकता है कि एक ऐसी व्यवस्था तैयार की जाए, जिसके तहत समय-समय पर इन माननीयों एवं उनके आश्रितों की सम्पत्ति और आय का सामयिक निरीक्षण किया जा सके। हम समझते हैं कि इस एक तीर से कई निशाना साधे जा सकते हैं कि और काले धन के अजगर को भी इससे नथा जा सकता है। इस प्रकार की व्यवस्था जितनी जल्दी तैयार होगी, और चुनाव आयोग जितनी जल्दी इस संबंधी शिकंजा कसेगा, राष्ट्र और इसके लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए यह उतना ही अच्छा होगा।