सरबत का भला चाहने वाले कैनेडियन नेता जस्टिन ट्रूडो

जस्टिन  ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री हैं। उनकी आयु महज़ 46 वर्ष है। 44 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बन गए थे। वह पापीनो (मोंटरियल) क्षेत्र से लगातार तीसरी बार सांसद बने हैं। ऐतिहासिक पक्ष से देश में सबसे लम्बा शासन कर चुकी लिबरल  पार्टी के नेता हैं। कनाडा के (1968 से 1979 और 1980 से 1984 तक) प्रधानमंत्री रह चुके हैं स्व. एलिएट  ट्रूडो के चार बच्चों में से सबसे बड़े हैं। जस्टिन का एक पूर्व प्रधानमंत्री का बेटा होना एक संयोग से अधिक कुछ नहीं है। क्योंकि उनको राजनीति में लाने के लिए उनके पिता का हाथ नहीं रहा। एलिएट  ट्रूडो वर्ष 2000 में स्वर्गवास हो गए थे। जस्टिन तब 28 वर्ष के थे और उस समय उन्होंने अभी राजनीति में कदम नहीं रखा था। वह पहली बार 2008 में सांसद बने। फैडरल लिबरल पार्टी 2002-2006 के समय के दौरान बड़े स्तर पर गुटबाज़ी का शिकार हो चुकी थी। 13 वर्षों के लगातार शासन के बाद उस पार्टी की 2006 के चुनावों में नमोशीजनक हार हुई। कुल 308 में से मात्र 34 सीटें मिलीं। अर्थात् पार्टी मुख्य विरोधी गुट में बैठने लायक भी न रही। लिबरल पार्टी की इतनी बुरी हार पहले कभी भी नहीं हुई थी। ऐसे में जस्टिन का कनाडा की राजनीति में उभार होना शुरू हुआ। सांसद बनकर उन्होंने पार्टी में गुटों को एकजुट करने की ओर कदम बढ़ाये। उनके समझदारी और संयम वाले स्वभाव से प्रभावित होकर पार्टी के प्रमुख नेताओं ने उनको उस समय सहमति से पार्टी के नेता के तौर पर आगे लाने का फैसला कर लिया, जिसका सभी गुटों ने स्वागत किया। पार्टी में एक नया जोश पैदा होना शुरू हुआ और लोगों का ध्यान एक बार फिर उम्मीद की किरण की तरह लिबरल पार्टी की ओर जाने लगा। 14 अप्रैल, 2013 को पार्टी के प्रतिनिधियों ने भारी बहुमत से जस्टिन को पार्टी का नेता चुन लिया। लोगों में जस्टिन ने अपनी योग्यता का लोहा मनवा कर 2015 के आम चुनावों में पार्टी को भारी जीत (338 में से 184 सीटों से) दिलाई थी। जस्टिन की घोषणाओं और सम्बोधनों को सुनकर लोगों ने उनकी संसद में तीसरे स्थान पर गिरी हुई पार्टी को उठाकर सीधा प्रथम स्थान पर लाकर सत्ता सौंप दी। चुनाव मुहिम में कंजरवेटिव पार्टी के टिफन हार्पर और न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी (एन.डी.पी.) के थॉमस मुलकेयर जैसे वरिष्ठ राजनीतिज्ञों के साथ जस्टिन का सीधा मुकाबला था। जस्टिन उनमें सबसे छोटी आयु के थे। विपक्ष के नेता उनको राजनीति में अनुभवहीन और देश का प्रधानमंत्री बनने के योग्य न होने वाला व्यक्ति बताते थे। परन्तु जस्टिन ने अपनी सोच को सकारात्मक रखा। विरोधियों की बातों को काट करने की ओर ध्यान देने की बजाय उन्होंने लोगों में विचर कर अपनी बात की। लोगों को समझा दिया कि वह देश को योग्य नेतृत्व दे सकते हैं, जिसका परिणाम 19 अक्तूबर, 2015 को आए चुनाव परिणाम के रूप में सभी के सामने था। जस्टिन के कारण उनकी पार्टी को मिले अनुकरणीय जनादेश के बाद कंजरवेटिव पार्टी को हार्पर तथा एन.डी.पी. को मुलकेयर अलविदा कहकर सक्रिय राजनीति छोड़ चुके हैं। 2015 के चुनाव में पहली बार देश में डेढ़ दर्जन के लगभग पंजाबी मूल के सांसद भी चुने गए। शहरी मतदाता और खासतौर पर इमीग्रांट भाईचारों के मतदाता डटकर लिबरल पार्टी के पक्ष में भुगते थे। जस्टिन ने पंजाबी भाईचारे और सिख कौम के प्रति अपने सम्मान का प्रमाण यह दिया कि अपनी 35 सदस्यीय कैबिनेट में चार मंत्री (नवदीप सिंह बैंस, हरजीत सिंह सज्जन, अमरजीत सोही, जगदीश चग्गर) बनाए। कनाडा की संसद और सरकार में पंजाबियों का प्रभुत्व कायम हुआ, जिससे देश-विदेश में पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत तथा सिखी के बारे में सराहनीय संदेश गया। स्मरण रहे कि प्रधानमंत्री जस्टिन  ट्रूडो की सरकार बनने के बाद ‘फैमिली क्लास’ में अभिभावकों और दादा-दादी तथा नाना-नानी का कोटा 5000 से बढ़ाकर 10,000 कर दिया गया था। आवेदनों के निपटारे में तेज़ी लाई गई ताकि परिवार शीघ्र एकत्रित हो सकें। अभिभावकों के निर्भर बच्चों की आयु सीमा भी बढ़ाई गई, जिससे अधिक आश्रित बच्चे कनाडा में जा सकते हैं। कनाडा की नागरिकता लेना आसान कर दिया गया है। इमीग्रेशन के नियम ऐसे बना दिए गए हैं कि अगले तीन वर्षों के दौरान विदेशों से लगभग 10 लाख विदेशी कनाडा जा सकेंगे। प्रधानमंत्री के तौर पर जस्टिन ट्रूडो की प्राथमिकता देश में भाईचारक सांझ बनाकर रखने की रही है। वह सरबत के भले के लिए सक्रियता करने के लिए प्रयासरत हैं। बीते समय के पक्षपात वाले काले कानूनों की आड़ में अल्पसंख्यकों और आदिवासी भाईचारों के साथ होते रहे अन्यायों को दूर करने की कोशिश की गई है। सिख कौम की संतुष्टि के लिए 100 वर्ष पूर्व हुए कामागाटा मारू कांड की माफी कनाडा की संसद में मांगी। जस्टिन  ट्रूडो आज अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत में हैं। उनके साथ प्रभावशाली व्यापारिक और कारोबारी नेताओं का प्रतिनिधिमंडल पहुंचा हुआ है। सभी सिख मंत्री और सांसद साथ आए हैं। कुछ चुनिंदा पत्रकार भी उनके साथ आए हैं। इस लेख के लेखक को भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का अवसर मिला है। अपनी इस आठ दिवसीय सरकारी यात्रा के दौरान श्री  ट्रूडो द्वारा जहां भारत सरकार के सहयोग से दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों के बारे में पहलकदमी की जा रही है, वहीं कनाडा और भारत के लोगों (खासतौर पर युवाओं) के बीच सांझ बढ़ाने की ओर ध्यान भी दिया जा रहा है। 24 फरवरी को कनाडा वापिसी से पहले उन्होंने दिल्ली में अलग-अलग क्षेत्रों से व्यवसायोन्मुखी और शिक्षित नौजवान लड़कों और लड़कियों के साथ एक खास मुलाकात करनी है। इस दौरे के दौरान वह सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों (मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च) में नत्मस्तक होंगे, जिसमें 21 फरवरी को अमृतसर में पावन श्री हरिमंदिर साहिब की यात्रा भी शामिल है।हमें लगता है कि मौजूदा समय के राजनीतिक नेताओं के लिए जस्टिन ट्रूडो एक मार्गदर्शक हो सकते हैं, जो सीना तानकर अपनी बात थोपी जाने की अपेक्षा प्रत्येक की बात सुनने और मानने को पहल देते हैं। कनाडा में ऐसे सहनशील प्रधानमंत्री और प्रभावशाली सिख मंत्री होने के बावजूद कनाडा  और पंजाब के बीच दूरियां बढ़ने का विश्व भर में बसे पंजाबियों के मनों में रोष अवश्य है। हमारी जानकारी के अनुसार कनाडा और पंजाब के बीच निकटता तथा द्विपक्षीय सहयोग की सम्भावनाएं तो बहुत हैं, परन्तु इस मामले में पंजाब सरकार और खासतौर पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह द्वारा सरकारी स्तर पर सहयोग न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है। मौजूदा दौर में कनाडा की पंजाब को उतनी ज़रूरत नहीं, परन्तु कनाडा से दोस्ती का पंजाब को प्रत्येक पक्ष से लाभ ही हो सकता है। आज बीते को भुलाकर ज़रूरत इससे आगे चलने की है। काफी समय व्यर्थ गंवा लिया गया है परन्तु अभी भी लगता तो यह है कि यदि कनाडा सरकार के साथ-साथ पंजाब सरकार भी खुले दिल से अपनी बाहें खोले तो अभी भी कनाडा से संबंध बेहतर बनाये जा सकते हैं, ताकि कनाडा और पंजाब के रिश्ते निकटता के एक नये दौर में दाखिल हो सकें।