पंजाब नेशनल बैंक का महाघोटालामोदी सरकार के सामने एक नई चुनौती

एक और महाघोटाले की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही है। संप्रग सरकार के बाद सार्वजनिक होने वाला यह एक ऐसा घोटाला है, जिसकी राशि आम लोगों के दिमाग खराब करने वाली है। यह घोटाला पंजाब नेशनल बैंक में हुआ है और खुद उसका कहना है कि इसकी राशि 11 हजार 3 सौ करोड़ रुपये से ज्यादा है, हालांकि इसकी जांच कर रहे प्रवर्त्तन निदेशालय का कहना है कि इसकी राशि 14 हजार 4 सौ करोड़ से भी ज्यादा है। सोशल मीडिया पर बताया जा रहा है कि घोटाले के कारण नुकसान की राशि 36 हजार करोड़ रुपये तक जा सकती है। अलग-अलग लोग और अलग-अलग अनुमान, लेकिन सारे के सारे अनुमान यही कहते हैं कि यह बहुत बड़ा घोटाला है और पहले से ही बीमार पड़ रही बैंकिंग व्यवस्था को यह और भी बीमार बना सकता है।सत्ता संभालने के बाद सबसे ज्यादा परीक्षण प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में ही कर रहे हैं। सबसे पहले तो उन्होंने योजना आयोग को ही समाप्त कर दिया। फि र नीति आयोग बना डाला। उसके बाद रेल बजट को ही समाप्त कर दिया। उसके साथ-साथ बजट पेश करने की तिथि कुछ इस तरह आगे बढ़ा दी कि नया वित्तीय वर्ष शुरू होने के पहले ही उस साल का बजट संसद से पास करवा दिया जाय। इस तरह लेखानुदान विधयेक पारित करने की आवश्यकता को ही समाप्त कर दिया। सबसे बड़ा दुस्साहस भरा निर्णय तो हजार और पांच सौ के पुराने नोटों को चलन से बाहर करना था। यह काम बिना किसी तैयारी के किया गया था और विशेषज्ञ लोगों से बिना किसी राय मशविरे के किया गया था। इसके कारण यह आजादी के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक हादसा लेकर सामने आया। नोटबंदी की मार से देश की अर्थव्यवस्था उबरी भी नहीं थी कि जीएसटी लागू कर दिया गया। उसके लिए भी सही तैयारी नहीं की गई थी। लोगों को काफी असहूलियत हो रही है और अनेक लोगों ने तो इसके कारण आत्महत्या तक कर ली। नोटबंदी के दौरान भी अनेक लोग मारे गए। करोड़ों बेरोजगार हुए और लाखों धंधे चौपट हो गए। दुनिया की सबसे तेज रफ्तार से विकास करने वाली देश की अर्थव्यवस्था की तेजी थमती नजर आई और विकास दर दो फीसदी नीचे तक गिर गई। जब विकास दर गिरती है, तो उसका असर राजकोष पर भी पड़ता है। नोटबंदी के कारण दावा किया जा रहा था कि बैंक मालोमाल हो जाएंगे, क्योंकि लोगों का अपने घरों में रखा रुपया बैंकों में आ जाएगा। बैंकों में कैश तो आया, लेकिन उससे बैंक मालामाल नहीं हुए, बल्कि उनकी फ टेहाली और भी बढ़ गई, क्योंकि नोटबंदी के कारण ध्वस्त हुए बाजार में उन बैकों से ऋण लेने वाले लोगों की संख्या ही बहुत कम हो गई। जाहिर है, बैंकों में जमा रकम बैंकों के ऊपर बोझ ही बन गई। इस बीच बैंकों के एनपीए बढ़ते गए। सरकार को उन्हें पैसे देने पड़े। कुछ बैंकों के कारोबार पर तो भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ प्रतिबंध भी लगा डाले। देश का सबसे बड़ा बैंक भारतीय स्टेट बैंक जमाकर्ताओं को लूटता हुआ दिखाई पड़ रहा है। सच कहा जाय तो एक सुरक्षित संस्थान के रूप में बैंकों की विश्वसनीयता तेजी से गिरी है। सरकार एक कानून लाकर दिवालिया हुए बैंकों में लोगों की जमा राशि को लेकर जो प्रावधान करने की बात कर रही है, वह भी लोगों के लिए डरावना है। सरकार कह रही है कि बैंक के दिवालिया होने की स्थिति में जमाकर्त्ताओं को कितना वापस हो, इसका निर्णय बाद में किया जाएगा। पहले एक लाख रुपये तक की वापसी तो सुनिश्चित थी, लेकिन अब उस सीमा को भी समाप्त करने की बात सरकार कर रही है। जाहिर है, लोग अब बैंकों में धन जमा करने के विकल्प की तलाश में लग गए हैं। इस असुरक्षित माहौल में पंजाब नेशनल बैंक में हुए घोटाले का प्रकाश में आना देश के लिए बहुत ही अमंगलमय साबित होने जा रहा है। सरकार और सरकारी पार्टी इस घोटाले के लिए भी कांग्रेस पर दोष लगा रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि वर्तमान घोटाले में जितनी राशि का नुकसान हो रहा है, वे सब इसी सरकार के कार्यकाल के दौरान हुआ है। यह सच है कि पंजाब नेशनल बैंक में यह घपलेबाजी 2011 से ही चल रही थी। अनियमितता के द्वारा बैंक से मेमोरंडम ऑफ  अंडरटेकिंग जारी कर दिए जाते थे। उसके आधार पर कर्ज ले लिया जाता था और समय पर कर्ज वापसी भी हो जाती थी। इसलिए अनियमितता के बावजूद बैंक को वित्तीय नुकसान नहीं हो रहा था, लेकिन अब उस अनियमितता ने एक महाघोटाले का रूप ले लिया है और यह मोदी के काल में ही हुआ है।नरेन्द्र मोदी के लिए अब चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। गुजरात में उनकी पार्टी की सरकार तो बनी, लेकिन मिट्टी पलीद हो गई। राजस्थान के उपचुनाव में तीनों सीटें भाजपा ने गंवा दी। अब जब 2018 के चुनावों का सामना भाजपा कर रही है, तो उसके सामने घोटाले और महाघोटाले सामने आते जा रहे हैं। कांग्रेस के ऊपर दोषारोपण करते हुए भाजपा के लोग और मोदी के समर्थक नहीं थकते, लेकिन उसकी भी कोई सीमा है। कांग्रेस विरोध का दोहन मोदी कितना करेंगे? उन्हें अपने काल की नाकामियों का भी तो जवाब देना पड़ेगा। और यह बैंक महाघोटाला उनके काल की नाकामियों का ही परिणाम है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि घोटालेबाज सरकार की पकड़ से ही बाहर हो जाता है और बाद में सरकार लकीर पीटती दिखाई पड़ती है। यदि इस महाघोटाले से उत्पन्न जनाक्रोश को समझने और उसे संभालने में मोदी ने वही गलती की, जो गलती मनमोहन सिंह ने 2011 के बाद सामने आए घोटाले के बाद की थी, तो उनका अंजाम भी मनमोहन सिंह जैसा ही हो सकता है। उनकी ईमानदारी कांग्रेस के काम तब नहीं आई थी। उसी तरह नरेन्द्र मोदी की कथित ईमानदारी की कीमत भी मतदाताओं के सामने दो कौड़ी की हो जाएगी। (संवाद)