तन-मन को पावन करती एक मुकम्मल यात्रा

एक यात्रा मुकम्मल हो गयी। बरसों से श्री दरबार साहब में हाज़िरी भरने की साध थी। आज पूरी हो गयी। पवित्र सरोवर में स्नान, लंगर-प्रसाद,  श्री गुरु ग्रंथ साहब के श्रद्धा से भरपूर दर्शन और  रात्रि में शयन पालकी के पावन सुख-आसन के दर्शन में शामिल होने का आनन्द अपने आप में बहुत अनूठा और अनुपम अनुभव था। पंथ खालसा और अकाल तख्त साहिब की जानकारी देता मुफ्त का गाइड हमारा मित्र डा. जगदीप सिंह हमारे साथ था तथा वह बहुत विस्तार से स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हर पुरानी और धार्मिक जानकारी दे रहा था।  श्री गुरु अर्जुन निवास में बातों का सिलसिला इस तरह चला कि  हाथीभाटा से लेकर मेडिकल कालेज के दिनों की 32 वर्षों से सिमटी हुई  यादें परत दर परत स्वत: खुलती चली गईं। किस्सागोई करते तीन फ क्कड़ दोस्त और मजबूरी में करवट बदलते परिजन, पूरी रात का रतजगा, श्री हरिमंदिर साहब की परिक्रमा,जल सेवा और सर को अदब से ढके हुए श्रद्धालुओं का हुजूम,.... हम अभिभूत भी थे और अवाक् भी। सिख गुरु परम्परा, उनके बलिदान और उस पर आम जन का अक्षत विश्वास हमारी आंखों के सामने पल-पल सजीव होता जा रहा था। मन अपने आप को पूरी तरह धर्म और आस्था में भिगो चुका था।  हां, तन अभी भी भौतिकता के आवरण लपेटे हुए था जो प्याज़ के छिलकों की तरह अपने आप और अनायास उतरते जा रहे थे।हमारे प्रिय मित्र चितरंजन का परिवार और हम पति-पत्नी इस यात्रा में सहयात्री थे। चितरंजन का जज़्बा और जानकारी मुझे अवाक् कर रही थी परन्तु अबोध बालक की तरह मेरी हर जिज्ञासा को जगदीप बड़ी सहजता से शांत कर रहा था। मेरी जीवन संगिनी रंजना काफी थक गयी थी किन्तु उसकी आस्था ने उसमें अतिरिक्त ऊर्जा भर दी थी तथा वह प्रफ ुल्लित मन और जोश के साथ हर धार्मिक विधान में शामिल होना चाह रही थी, और यह सब जगदीप सिंह के कारण संभव हो पाया कि हम हर तरह के धार्मिक आस्था आयोजन में शामिल हो पाए। स्वर्ण मंदिर में अविश्वसनीय-सी लगने वाली हर जानकारी अकाट्य प्रमाण सहित मेरी आंखों के सामने मौजूद थी। धर्म के प्रति मर-मिटने की कहानियां हमें बहुत कुछ समझाने की कोशिश कर रही थीं। पानी के गिलास की जगह प्याला देना। बाबा बुड्ढा जी के गुरुओं के प्रति समर्पण के किस्से। दुख-भंजनी बेरी से जुड़ी कहानियां,  गुरु परम्परा के चट्टान जैसे अभेद्य नियम और सर्व-स्वीकार्य निर्णय, मीरी और पीरी की दो ध्वज पताकाएं और मीरी पर पीरी की सर्वोच्चता का मतलब तथा स्वर्ण मंदिर परिसर के विशाल गुम्बदों के निर्माण की कहानियां सिखों की धर्म के प्रति बलिदान का सुनहरा पन्ना बन हमारे सामने मौजूद थीं। पवित्र सरोवर की सफाई, जीर्णोद्धार तथा हर जगह कार सेवा की परम्पराएं बहुत कुछ हर पल सिखा रही थीं। जागृत उत्सुकता और श्रद्धा के सामने यात्रा की थकान परास्त हो गयी थी। मन और तन की बैटरी मानों पूरी चार्ज थी। रात दिन में तब्दील हो गयी और हमारी धार्मिक यात्रा सही अर्थों में मुकम्मल हो गयी। गुरुओं और गुरुद्वारों को नमन करने का संभवत: यह सही वक्त था।
यूं ही नहीं झुकते शीश गुरुद्वारों की चौखट पर
तू चरागे-उम्मीद है, गीता है, कुरआन है।
अमृतसर के छोले कुलचे के साथ पंजाबी लस्सी के द्वारा मित्र किट्टू के ससुराल की मेहमाननवाज़ी के लुत्फ  ने पंजाबी तहज़ीब से इस तरह रू-ब-रू करवाया कि अमृतसर हमें बहुत जाना-पहचाना-सा लगने लगा।  शहर से परिचय एक ही रात में बहुत पुराना-सा लगने लगा था। सुबह-सुबह ही हमने यहां की राजनीतिक आबो-हवा से भी परिचय कर लिया। इधर-उधर थोड़ी खरीददारी की, दरबार साहब का एक चित्र लिया, और फिर हम चले गए इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट दास्तां को स्थापित कर गये मशहूर ऐतिहासिक जलियांवाला बाग में। शहीदों की चिताओं के प्रत्यक्ष दर्शन जैसा भाव था और वैसा ही परिदृश्य। शहीदी कुआं और अंग्रेज़ों के अत्याचार के निशान ब्रितानी जुल्म और भारतीयों के आज़ादी के जज्बे को अक्षरश: बयान कर रहे थे। वहां के म्यूजियम और बाग की फोटोग्राफी साधारण लोगों के देश की आज़ादी में योगदान को कैमरे में समेट लायी थी। (क्रमश:)
प्रेमलता महिला अस्पताल, 
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