बिना धक्के-खाए किसानों की हो ऋण-माफी

पऋण माफी के दूसरे चरण में चाहे पंजाब सरकार ने पिछले फैसले में संशोधन करके लाभ लेने वाले किसानों से अढ़ाई एकड़ से पांच एकड़ रकबे के बीच वाले मालिक किसानों को लाभ पात्रों की श्रेणी से निकाल दिया है। परन्तु इसमें और पेचीदगियां सामने आ रही हैं। मध्य मार्च के बाद शुरू होने वाले इस चरण में 600 करोड़ रुपए योग्य किसानों को दिए जाने की योजना है। जबकि प्रथम चरण के दौरान 160 करोड़ अदा करके योजना में स्थिरता ला दी गई है। क्योंकि कुछ अयोग्य किसानों को फायदा पहुंच जाने की शिकायतें आने के बाद शोरगुल पड़ना शुरू हो गया था। अब अढ़ाई एकड़ से निचले रकबे के मालिक जो अपना गुजारा मेहनत करके बिना किसी बुरी आदत तथा सामाजिक खर्चों से कर रहे हैं वह अपने प्रतिनिधियों के पास प्रार्थनों कर रहे हैं कि उनको प्रति एकड़ के आधार पर राहत दी जानी चाहिए। उनके द्वारा मेहनत और साफ-स्वच्छ जीवन व्यतीत करके बिना किसी फिजूलखर्ची के तथा कोई ऋण लिए बिना इस महंगाई में गुजारा करना तो बल्कि सराहनीय है। उनको राहत देकर सरकार को दूसरों को प्रेरणा देनी चाहिए। नहीं तो सहकारी सभाओं और ग्रामीण बैंकों का भविष्य वित्तीय बैंकों में हुए घोटालों की तरह होगा। न देनदारियां बढ़कर इस हद तक पहुंच जायेंगी, जिससे यह ढांचा चरमरा जायेगा।पंजाब नैशनल बैंक में हुए इतने बड़े घोटाले और फरेब से वित्तीय बैंकों की साख गिर गई है। बैंकों में 8670 कज़र्ों में 61260 करोड़ रुपए की ठगी रिज़र्व बैंक की ओर से दी गई सूचना के अनुसार सामने आई है। इससे पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में जिस पर केन्द्र सरकार का सीधा कंट्रोल रहा है। एक बड़ा घोटाला हुआ सामने आया था। अब सारे ही व्यापारिक बैंकों के ऐसे ऋणों में हुई ऐसी ठगी का पता चल रहा है। लोगों में यह चर्चा है कि बैंकों की आर्थिक स्थिति गिरती जा रही है और उनकी बैंकों में जमा अमानतें भी सुरक्षित नहीं। एन.आर.आईज़ की ओर से धड़ाधड़ अपनी अमानतें निकाली जा रही हैं। समयबद्ध अमानतें अवधि खत्म होने से पहले ही ब्याज का लाभ छोड़कर वापिस लिए जाने के कई-कई केस हर बैंक संबंधी पता चले हैं। विश्व बैंक के एक पूर्व सीनियर एन.आर.आई. अधिकारी जो आज कल भारत भ्रमण पर आए हुए हैं, उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि विदेशों में रह रहे भारतीय जिनका पैसा यहां बैंकों में जमा है, सहमे हुए हैं। एक एन.आर.आई. जो अपनी अमानत अवधि से पहले ही ले रहा है, ने डर प्रगट किया कि अगर कहीं बैंक और अमानतदारों का ‘रण’ पड़ गया तो हो सकता है कि बैंक उनकी अमानतों का पूरा पैसा ही वापस करने में असमर्थ न हों। सरकार की ओर से जो बैंकों की वित्तीय हालत स्थिर करने के लिए पैसा दिया जा रहा है, उससे बैंकों संबंधी लोगों का विश्वास तो नहीं बंध सकता। अगर विश्वास एक बार टूट जाए तो फिर से बांधने को बड़ा समय लगता है। आश्चर्य की बात यह है कि आमतौर पर बैंकों में इतने बड़े-बड़े ऋण देकर जो घोटाले होते हैं, उनमें आमतौर पर बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत होती है। मुझे याद है कि जब पिछली शताब्दी के छठे दशक में हरित क्रान्ति शुरू होने के समय कुछ बैंकों की ओर से ऋण देने शुरू हुए तो एक बैंक, जिसने इस क्षेत्र में लीड दी, के 12 सीनियर अधिकारी इसलिए चार्जशीट हुए, क्योंकि उनकी ओर से कुछ किसानों को ट्यूबवैलों, कृषि औज़ारों और फसली ऋणों पर दी गई छोटी-छोटी रकमें वसूल नहीं हुईं। उनमें कुछ अधिकारी निलंबित किए गए और कुछ नौकरी से बर्खास्त कर दिए गए। यहां तक कि बैंक के सीनियर अधिकारियों की सी.बी.आई. की ओर से पड़ताल हुई, लेकिन आज सैकड़ों-करोड़ों रुपए के घोटालों संबंधी ऋण लेने वालों पर कार्रवाई शुरू कर दी जाती है, लेकिन ऋण देने वाले बैंक अधिकारियों की कार्यशैली की कोई जांच-पड़ताल नहीं की जाती। पंजाब नैशनल बैंक की एक ब्रांच में दो अधिकारियों ने 1.77 बिलियन डॉलर के ऋण फर्मों को दिए और इन फर्मों ने ठगी मारी। यह फर्में ज्यूलर नीरव मोदी से संबंधित थीं।घोटालों और गैर-कानूनी तौर पर दी जाने वाली बड़ी-बड़ी रकमों के ऋणों संबंधी अधिकारियों की जांच पड़ताल न होने से लोगों में यह आम चर्चा है कि यह ऋण शासकों और राजनीति से जुड़े व्यक्तियों के कहने पर दिए गए थे। बैंक वित्तीय संस्थाएं हैं, जिनमें वित्तीय अनुशासन की बहुत ज़रूरत है। अगर यह न लाया गया तो बैंकों का भविष्य खत्म होने की सम्भावना है। इस समय बैंकों के कारोबार में भी कोई पारदर्शिता नहीं। अधिकारी जो चाहते हैं, कर लेते हैं।ऐसी घटनाएं हैं कि अधिकारियों ने बहुत ही गैर-ज़िम्मेदारी से खातों में पैसा होते हुए चैक वापिस कर दिए। लेकिन उन अधिकारियों पर प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। ग्राहक कोई कानूनी कार्रवाई करने के लिए समर्था नहीं रखते, न उनके पास समय होता है, न साधन। केन्द्र सरकार को बैंकों में वित्तीय अनुशासन लाने की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। पंजाब सरकार की ओर से जो किसानों संबंधी ऋण माफी का भरोसा दिया जा रहा है, उसके लिए न साधन हैं, न खज़ाना। राजनीतिक पार्टियां चुनाव मैनीफैस्टो में किए सारे वायदे कभी भी पूरे नहीं कर सकीं। चाहे राजनीतिक पार्टियां इससे लाभ उठा लें, लेकिन आम लोग ऐसी परेशानी जो पहले चरण दौरान हुई, उससे बचना चाहेंगे। उनके लिए यह बड़ी संतुष्टि होगी अगर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह राज्य से भ्रष्टाचार खत्म कर दें और कार्यालयों में किसानों और आम लोगों के काम पारदर्शिता तथा आसानी से हों। थानों, तहसीलों व अन्य किसानों से संबंधित रेवेन्यू, सिंचाई, बिजली आदि संस्थानों में काम बिना किसी परेशानी और बिना कुछ लिए-दिए होने चाहिए।
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