परीक्षा के दिनों में छात्रों में बढ़ता तनाव

कोई भी काम करना हो चाहे कहीं जाना हो या घर में कोई कार्य हो, थोड़ी-सी बेचैनी और मन पर छाया तनाव स्वाभाविक है। विद्यार्थियों के जीवन में परीक्षाओं का समय सबसे अधिक महत्व रखता है। इन दिनों में परीक्षाओं की चिन्ता उनके मन पर तनाव की स्थिति पैदा करती है। उनको सिर्फ पास होने की चिंता नहीं सताती बल्कि इस बात की चिन्ता ज्यादा रहती है कि लोग क्या कहेंगे, कहीं मेरे साथी के मेरे से अधिक अंक न आ जाएं या अगर मैं अपने माता-पिता की उम्मीद पर पूरा न उतर सका, तो क्या होगा? इस समय बीते समय को नज़रअंदाज़ करना भी उनको महसूस होने लगता है और वह अपनी ही लापरवाही के प्रति गलानी महसूस करने लगते हैं और अक्सर सोचते हैं कि काश! मैंने शुरू से ही मेहनत की होती। कुछ विद्यार्थी इस तनाव को सहन करने में असमर्थ होते हैं और वह अक्सर इन दिनों में किसी न किसी मानसिक बीमारी के शिकार हो जाते हैं। जी मचलना, भूख न लगना, सिर दर्द, बात-बात पर गुस्सा आना, मानसिक चिंता के पहले लक्षण हैं। जैसे कि मैंने पहले कहा है कि कुछ मात्रा तक तनाव सकारात्मक स्थिति पैदा करता है जैसे कि हल्के तनाव से विद्यार्थी यह तय करता है कि उससे कुछ छूट न जाए और परीक्षा के दिनों में वह अपनी पढ़ाई और सेहत दोनों में संतुलन बनाकर रखता है। समय की पाबंदी और नियम को अपनाता हुआ वह अपने उद्देश्य की पूर्ति सहज स्वभाव से कर लेता है। इससे उल्ट बीते वक्त की गलतियों में उलझ कर आत्म गलानी से लबरेज विद्यार्थी अपने आप को उलझा लेता है। उसकी सोच नकारात्मक हो जाती है और कई बार वह अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अयोग्य ढंगों का प्रयोग करने के जुगाड़ भी सोचने लग जाता है। जिसके परिणाम हमेशा भयानक ही निकलते हैं। ऐसे विद्यार्थियों को सहज से काम लेकर सकारात्मक सोच को अपनाना चाहिए और भूतकाल को वर्तमान काल पर हावी नहीं होने देना चाहिए। ‘जब जागो तब सवेरा’ की सोच को अपना कर अपने जीवन को संवारने की योजनाबंदी करनी चाहिए। जैसे कि जब विद्यार्थी को तनाव सताने लगे तो उसको ऐसा सोचना चाहिए कि मैं अपनी ओर से मेहनत करूंगा। परिणाम जो भी हो प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करूंगा। क्या हुआ, मैंने अगर मेहनत नहीं की लेकिन आज के बाद मैं मेहनत का साथ नहीं छोड़ूंगा। मैं अपने माता-पिता से वायदा करूंगा कि मैं कभी भी कोई ऐसा कदम नहीं उठाऊंगा जो उनको तकलीफ दे। ज़िंदगी यही खत्म नहीं होती, इसमें और भी बहुत कुछ है जो मैं कर सकता हूं। मैं कभी हारूंगा नहीं। ऐसी सोच विद्यार्थी को तनाव से मुक्ति ही नहीं देगी बल्कि उसके अंदर नई ऊर्जा भी भरेगी, जिससे उसका भविष्य उज्जवल होगा।
परीक्षाओं के दिनों में विद्यार्थी की ज़िंदगी में माता-पिता और अध्यापकों का भी एक विशेष योगदान रहता है। 
—डा. अमरजीत कौर नाज़