बैंकों की बिगड़ती हुई व्यवस्था- विश्वसनीयता को बनाए रखना ज़रूरी


देश के एक बड़े हीरा व्यवसायी नीरव मोदी द्वारा किये गये देश के अब तक के सबसे बड़े बैंक घोटाले की परतें जैसे-जैसे उधड़ रही हैं, निरन्तर सनसनीपूर्ण रहस्योद्घाटन होते जा रहे हैं। इस घोटाले की आंच अब पंजाब और जालन्धर की धरती तक भी आ पहुंची है। नीरव मोदी के निर्देशन में वैध-अवैध 150 से अधिक कम्पनियां हैं, जिनके नाम पर इतनी बड़ी धोखाधड़ी की गई। इस घोटाले में संलिप्त राशि 20,000 करोड़ रुपए से अधिक हो जाने की सम्भावना है, जबकि वर्तमानों में प्रवर्त्तन निदेशालय और आयकर विभाग ने इस घोटाले को 11,400 करोड़ रुपए तक आंका है। इस रहस्योद्घाटन के बाद से एक ओर जहां पूरा देश स्तब्ध है, वहीं राष्ट्र के वित्तीय संस्थान एवं वित्त विशेषज्ञ भी सकते में आ गये हैं। कहां तो स्थिति यह है कि एक-दो-अढ़ाई लाख रुपए के ऋण की भरपाई न होने पर बैंक अधिकारी किसानों के घर, खेत, ज़मीन, ट्रैक्टर जब्त कर लेते हैं, तथा किसान इस स्थिति में आत्महत्या तक कर लेने को विवश हो रहे हैं और कहां यह नज़ारा है कि एक व्यवसायी शख्स विगत 11 वर्षों से बैंकों के बड़े अधिकारियों की मिलीभुगत से देश के लोगों के खरबों रुपए का ़गबन करके, कानून की आंखों के सामने विदेश भाग गया है। देश की सम्पदा को लूट कर विदेशों में जा बसने का यह तीसरा बड़ा दीदा-दानिश्ता मामला है। इससे पूर्व सरकार अभी तक ललित मोदी और विजय माल्या के भागते हुए कदमों से उठे ़गुबार को देख-देख कर खम्भे नोच रही है। बैंकों में इस प्रकार के घोटाले होना न तो कोई नई बात है, न बड़े बैंकर इस बात की कोई गारंटी देते हैं कि भविष्य में बैंकों में अथवा बैंकों के साथ कोई धोखाधड़ी नहीं होगी। इसका प्रमाण इस तथ्य से भी मिल जाता है कि नीरव मोदी वाले घाटेले की अभी स्याही भी नहीं सूखी होगी कि एक और बड़ी कम्पनी रोटोमैक के मालिक विक्रम कोठारी द्वारा बैंकों से 3695 करोड़ रुपए की ठगी मारे जाने का भी रहस्योद्घाटन हो गया।
बैंकों से भारी भरकम धन-राशि के ऋण लेकर न लौटाने की यह दुष्प्रवृत्ति दशकों पुरानी है—खास तौर पर बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद से तो यह समस्या बड़ी तेज़ी से बढ़ी है। इसी कारण बैंकों की डूबत राशि अर्थात् नॉन परफार्मिंग एसेट्स (एन.पी.ए.) 9,30,400 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। यह वो ऋण राशि है जिसे धन-बल वालों ने जोड़-तोड़ से बैंकों से ले तो लिया, परन्तु उसे लौटाया नहीं। यहां यह भी घोर आश्चर्य की बात है कि किसानों को दी जाने वाली ऋण माफी वाली राशि इसके पासंग बराबर भी नहीं, और इसका फैसला करने में कई-कई वर्षों का समय लग गया, परन्तु बैंकों को डूबत राशि के बोझ से बचाने के लिए सरकार ने 89400 करोड़ रुपए जारी करने की घोषणा भी दी है। 53625 करोड़ रुपया तो चालू वित्त वर्ष में ही बट्टे खाते में डाला जा चुका है। बट्टे खाती वाली राशि में एस.बी.आई. के 20339 करोड़ और पी.एन.बी. के 9205 करोड़ रुपए हैं। सरकार इस संबंध में बैंकों के लिए कुल 2,04,500 करोड़ रुपए जारी करने जा रही है। इस घोटाले में पंजाब नैशनल बैंक के साथ इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक सहित और कई बैंकों को चूना लगा है। पी.एन.बी. ने अपने डेढ़ दर्जन के लगभग अधिकारियों/कर्मचारियों को निलंबित एवं बर्खास्त भी किया है, तथापि इस घोटाले ने बैंकों एवं बैंकिंग व्यवस्था की साख को बहुत बड़ा आघात पहुंचाया है। नोटबंदी के बाद से बैंकों की दयनीयता और फटेहाली पहले ही बढ़ी है। आम लोगों की क्रय-शक्ति घटने से बैंकों में जमा-पूंजी अ-तरल हुई है, लेकिन इस घटना ने तो सचमुच बैंकों को घुटनों के बल होने को विवश किया है। बैंकों के दीवालिया होने की क्षति-पूर्ति आम लोगों की जमा-पूंजी से किये जाने संबंधी सरकार के पूर्व फैसले से लोगों में पहले ही दुश्ंिचताएं पैदा हुई हैं। इस घोटाले ने तो जैसे लोगों में अफरा-तफरी जैसी स्थिति पैदा की है। यहां तक कि पंजाब से विदेशों में गए प्रवासी लोगों ने बैंकों से अपना पैसा निकाल कर किसी और मद में नियोजित करना शुरू कर दिया है। पंजाब के अकेले दोआबा के चार ज़िलों के प्रवासी लोगों के ही बैंकों में लगभग 50,000 करोड़ रुपए जमा हैं।
हम समझते हैं कि बेशक इस घोटाले ने बैंकों की साख को घटाया है, परन्तु इससे बैंकिंग व्यवस्था पर कोई देर-पा दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है। तथापि, केन्द्र सरकार देश के वित्तीय संस्थानों और खास तौर पर स्वयं बैंकिंग क्षेत्र की व्यवस्था में रह गई त्रुटियों को दूर करने और छिद्रों को भरने के लिए समुचित पग अवश्य उठाने होंगे। मौजूदा घोटाले में अब तक हुई जांच से भी यही पता चला है कि इसके पीछे मुख्य रूप से बैंकों के बड़े अधिकारियों का खुला हाथ रहा है और कुछ छोटे अधिकारी उनके इशारों पर अपने ही बैंकों से जालसाज़ी करते रहे हैं। नीरव मोदी और उसकी कम्पनियों द्वारा की जाती धोखाधड़ियों के लिए इन अधिकारियों ने बैंकिंग व्यवस्था के नियमों एवं कानूनों की बड़ी बेपरवाही से धज्जियां उड़ाईं।
हम समझते हैं कि नि:संदेह यह जो कुछ हुआ है, इससे देश की सम्पूर्ण वित्तीय प्रतिष्ठा पर भी आंच आई है। सरकारी  प्रशासन द्वारा अभी तक मुख्य दोषी का अता-पता न लगा पाना भी आम लोगों की नज़रों में देश की समूची प्रशासनिक व्यवस्था पर संदेह की उंगली उठाता है। मुख्य दोषी नीरव मोदी द्वारा दिया गया उल्टा पी.एन.बी. को दोषी करार दिये जाने संबंधीबयान समस्या को और गम्भीर बनाता है। तो भी, समस्या के इस नाजुक पायदान पर केन्द्र सरकार की ज़िम्मेदारी बढ़ गई नज़र आती है। तथापि, हम समझते हैं कि भविष्य में इस प्रकार की जालसाज़ियां न हों, इसके लिए सरकार को उन छिद्रों को तो कम से कम अवश्य भरना चाहिए, जिनका पता इस घोटाले के अनावरण के बाद चला है। नि:संदेह ऊपरी धरातल पर कहीं न कहीं से लापरवाही और कोताही हुई है। यह कोताही जानबूझ कर की गई भी हो सकती है। बैंकिंग व्यवस्था किसी भी राष्ट्र के सम्पूर्ण तंत्र को बनाये रखने के लिए आधार स्तम्भ जैसी होती है। इस स्तम्भ को सुदृढ़ बनाये रखने और इसकी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए सरकार से जो भी बन सके, वह हर हाल में किया जाना चाहिए।