देश छोड़ कर क्यों भाग रहे हैं करोड़पति ?

देशभक्ति या राष्ट्रवाद के मायने अलग-अलग आर्थिक वर्ग के लोगों के लिए अलग-अलग होते हैं? लगता तो यही है अगर ऐसा न होता तो साल 2015 में 4000, साल 2016 में 6000 और साल 2017 में 7000 करोड़पति भारतीय क्यों अपना बोरिया बिस्तर उठाकर देश से फुर्र हो गए होते? जी, हां! ये हैरान करने वाली सच्चाई  है कि जिस समय देश में आम लोगों के बीच खासकर उत्तर भारत में तिरंगा मार्चों की धूम है, जिस समय विदेशों में भारतीय मोदी-मोदी के नारे लगाते हैं, ठीक उसी समय करोड़़पति भारतीयों में मुंह बनाकर और कंधे उचकाकर इस देश को गुडबाय कहने की होड़ लगी हुई है। केंद्र सरकार के कुछ दुलारे संगठन जो बात-बात पर आम मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देने की बात करते हैं और हर बार ये मुसलमान किसी रूठकर मचले बच्चे की तरह नहीं जाऊंगा..नहीं जाऊंगा कहते रहते हैं, आश्चर्य होता है कि उन्होंने इन करोड़़पतियों से कभी नहीं कहा कि चल अब यहां से फूट ले, बहुत हो गया। बावजूद इसके  तमाम करोड़पतियों द्वारा मुंह बिचकाकर, यहां की हवा-पानी और सुरक्षा को डिस्गिस्टंग बताकर अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर और यू.ए.ई. फुर्र हो जाने की होड़ लगी हुई है। वह भी तकरीबन भगदड़ की शैली में। मगर सरकार भी कभी इनके लिए कोई एक शब्द नहीं कहती और न ही बात-बात पर बिन मांगे राष्ट्रवाद का डोज देने वाले ही इन्हें कोई-कोई डोज देते हैं। यही नहीं किसी को इस सबको लेकर कभी किसी तरह का गुस्सा भी नहीं आता।
 उल्टा हैरानी की बात यह है कि देश में पिछले करीब चार सालों से यानी जब से यह राष्ट्रवादी सरकार है और राष्ट्रवाद का दिन-रात अलख लगाने वालों की फौज बढ़ गई है तब से तो देश छोड़कर विदेश फुर्र होने वाले करोड़पतियों  में भारी इजाफा हो गया है। यह बात हम नहीं, आंकड़े कहते हैं। ऐसा नहीं है कि  2014 के पहले हिन्दुस्तान के तमाम करोड़पति देश छोड़कर विदेश में बसने नहीं भाग रहे थे, तब भी ये ऐसा कर रहे थे। लेकिन नवम्बर 2014 में विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष स्व. अशोक सिंघल जी ने कहा था कि दिल्ली की गद्दी में 800 सालों बाद अब एक स्वाभिमानी हिंदू सरकार आसीन हुई है। इसलिए अब देश में राष्ट्रवाद फले-फूलेगा। इस लिहाज से देखें तो यह तो बिल्कुल विलोम की स्थिति है। न्यू वर्ल्ड वैल्थ की ताजा रिपोर्ट से हालांकि यह भी मालूम हो रहा है कि हमसे ज्यादा चीन के करोड़़पति चीन छोड़कर विदेश भाग रहे हैं। हम देश छोड़कर  विदेश में जा बसने वाले करोड़पतियों की संख्या में दूसरे नंबर पर हैं।
लेकिन चीन से पूंजीपतियों का भागकर दुनिया के दूसरे देशों में बसना तो समझ में आ रहा है। चीन में एक कम्युनिस्ट सरकार है, किसी दिन मूड खराब हुआ तो सारी पूंजी छीन सकती है। लेकिन हिन्दुस्तान में तो लोकतंत्र है। यहां तो सरकार ऐसा नहीं कर सकती? सवाल है फिर ये लोग क्यों भाग रहे हैं? वह भी उस समय जब आठ सौ सालों बाद स्वाभिमानी हिन्दुओं की सरकार बनी है? गौरतलब है कि 1 प्रतिशत हिन्दुस्तानियों के पास देश की कुल 58 प्रतिशत सम्पत्ति है। जब से नई आर्थिक नीतियों के रास्ते पर देश चल रहा है तब से अमीर और गरीब के बीच 300 से लेकर  3200 प्रतिशत का दोनों के बीच फासला हो चुका है। हैरानी है कि इतना कमा लेने के बाद भी अमीर करोड़़पतियों में राष्ट्रवाद हिलोरे नहीं मार रहा। जैसे ही मौका मिलता है पहली फुर्सत में ये देश छोड़कर भाग खड़े हो रहे हैं। पिछले 14 सालों में 61,000 करोड़पति देश छोड़कर  विदेश में जा बसे हैं। याद रखिए, इनमें से सब के सब वह हैं, जिन्होंने संपत्ति देश में यानी हिन्दुस्तान में कमाई है। बहुत सारे अब भी कमा रहे हैं लेकिन रहना उन्हें इस देश में गवारा नहीं है।लग रहा था कि केंद्र में एक राष्ट्रवादी सरकार आने के बाद यह सिलसिला अगर बंद नहीं होगा तो कम से कम धीमा तो होगा। जिस तरह विदेशों में मोदी जी के भाषणों में वहां मौजूद एन.आर.आई. मोदी-मोदी चिल्लाते हैं उससे भी लगता  था कि अब तो विदेश जा चुके भारतीयों में भी देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा होगा और इस करोड़़पति पलायन की रफ्तार तो धीमी होगी? लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उल्टे रफ्तार तेज हो गई है। 2016 में 2015 के मुकाबले देश छोड़कर विदेश में जा बसने वाले करोड़़पतियों की संख्या में 50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। यही नहीं, थोड़ी कमी के साथ लगातार अगले साल भी यह सिलसिला बना रहा है। पलायन के विशेषज्ञों की मन खराब करने वाली भविष्यवाणी तो यह है कि अभी यह सिलसिला और तेज होगा। क्योंकि हिन्दुस्तान का 3 प्रतिशत ऊपरी तबका जिसमें 70 प्रतिशत राजनेता, 97 प्रतिशत खानदानी कारपोरेट और 80 प्रतिशत प्रोफैशनल शामिल हैं। इनके परिवार का एक हिस्सा या एक बड़ा हिस्सा विदेशों में जा बसा है या साल के 365 में से 200 से ज्यादा दिन विदेशों में रहता है। न्यू वैल्थ रिपोर्ट के मुताबिक देश छोड़कर विदेश जा बसने वाले करोड़पति थोड़े नहीं, अच्छे-खासे धन के मालिक हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ये करोड़पति हाई नैट वर्थ इंडीविजुअल्स यानी अच्छी खासी निजी सम्पत्ति वाले हैं। क्योंकि 90 के दशक से जिस नई आर्थिक नीति के गुणगान गाए जा रहे हैं उससे देश में अमीरी तो आई है, लेकिन ज्यादा से ज्यादा अमीरी का फायदा एक बहुत से छोटे से तबके को ही मिला है। इसी के बाद से भारत तेजी से धनवान देश में तबदील हुआ है और आज धन के लिहाज से भारत दुनिया के सबसे धनी देशों की सूची में छठवें स्थान पर है। हिन्दुस्तान की मौजूदा कुल संपत्ति 8,230 अरब डॉलर है। इस सूची में अमरीका 64,584 अरब डॉलर के साथ शीर्ष स्थान पर काबिज है। ‘न्यू वर्ल्ड वैल्थ’ की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के ये आंकड़े हैं। आज भारत में  3,30,400 करोड़़पति हैं। वास्तव में ये नई आर्थिक नीतियां ही हैं कि देश में करोड़पतियों के धन में ही नहीं, उनकी संख्या में भी भारी इजाफा हो रहा है। पिछले साल जब देश का आम आदमी आर्थिक दिक्कतों से दो-चार था तब करोड़पतियों की संख्या में 27 प्रतिशत का इजाफा हुआ। कहने का मतलब साफ है कि आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी कितनी ही मुश्किल  क्यों न हो इस देश के अमीरों की अमीरी में बढ़ौत्तरी का सिलसिला जारी रहता है। फिर भी ये लोग एक समय के बाद, जब इनके पास पाने से ज्यादा खोने को हो जाता है तो यह देश उन्हें डराने लगता है और ये गंदगी, बेईमानी, अभावों और प्रदूषण का बहाना बनाकर विदेश में जा बसते हैं। मोदी जी की सरकार के आने के बाद इस सिलसिले में और तेजी आई है। सवाल है ऐसा क्यों हो रहा है? इस पर दिल्ली और नागपुर, दोनों को ही सोचना चाहिए।