सही दिशा की ओर सही कदम तभी सुधरेगी खेलों की तस्वीर

देखने-सुनने और मीडिया सुर्खियों में खेलों के लिए खर्चे  जाने वाले बजट में 258 करोड़ रुपए की वृद्धि एक अच्छी खबर लगती है, जबकि पिछली बार यह वृद्धि 350 करोड़ रुपए थी। खिलाड़ियों को पांच लाख रुपए वार्षिक स्कालरशिप से ओलम्पिक मिशन  2024 का प्रोग्राम निर्धारित किया गया है। पहली नज़र में ऐसा लगता है कि अभी सरकार के दरबार में खिलाड़ियों की बात चलती है लेकिन ज़ाहिर है शब्दों की बाज़ीगरी और जुमलों के कारण प्रसिद्ध जानी जाती सरकार में ऊपर से तो सब कुछ अच्छा लगता है लेकिन जिन बातों पर ध्यान देना चाहिए था, उनको एक बार फिर नज़रअंदाज़ कर दिया गया। इस बार खेल बजट में न तो कोई खेलों के ढांचागत सुविधाओं की ओर ध्यान दिया गया और न ही ट्रेनिंग की रूप-रेखा तैयार की गई। रही कसर नैशनल एंटी डोपिंग एजेंसी को भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया है, जिसके बजट में कोई वृद्धि नहीं की गई है। यह बात बड़ी खटकने वाली है कि जिस देश को ओलम्पिक में केवल दो पदक हासिल हुए है, वह देश डोपिंग के दोषी खिलाड़ियों की संख्या के मामले में दुनिया में तीसरे नम्बर पर है, आज स्थिति यह है कि खिलाड़ियों की सफलता के पीछे अक्सर कोई न कोई डोपिंग का मामला सामने आता है, जिस कारण खेल प्रेमियों के मन में संदेह रहता है कि कोई ईमानदारी से सफलता हासिल कर भी रहा है?देश की भौगोलिक स्थिति के मद्देनज़र बुनियादी ढांचे की सुविधाएं बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए थी। केन्द्र सरकार, खेल संघ और स्पोर्ट्स अथार्टी ऑफ इंडिया को आपसी सहयोग से दिल्ली सहित भिन्न-भिन्न राज्यों में निचले स्तर पर ज़रूरी खेल सुविधाएं उपलब्ध करवा कर प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का पुल तैयार करने को प्राथमिकता देनी चाहिए थी। सरकार ने अपनी वाह-वाह लूटने के लिए राष्ट्रीय स्कूल खेलों में ग्लैमर का तड़का लगा कर ‘खेलो इंडिया’ योजना शुरू की। इस बार इसकी राशि को 350 करोड़ से बढ़ाकर 520.9 करोड़ कर दिया गया। गांवों, कस्बों से शहरों तक इसका खूब ढिंढोरा पीटा गया कि चुने गए खिलाड़ियों को 8 वर्ष तक 5 लाख रुपए मिलेंगे, हालांकि यह राशि ट्रेनिंग पर ही खर्ची जानी है, लेकिन यह ट्रेनिंग कहा दी जानी है, इसकी पहचान अभी तक नहीं की जा सकी। सच्चाई यह है कि ‘खेलो इंडिया’ योजना न तो अभी खिलाड़ियों से पूरी तरह जुड़ सकी है और न ही दर्शकों से।
इस वर्ष अप्रैल में राष्ट्रमंडल खेल, अगस्त में एशियाई खेल और विश्व कप हॉकी भी इसी वर्ष है। अभी हालात में खेलों की नीति बनाने वाले ज़िम्मेदार लोगों को 2010 राष्ट्रमंडल खेलों से सबक सीखना चाहिए, जहां तीन वर्ष की ट्रेनिंग के लिए 650 करोड़ रुपए उपलब्ध करवाए गए थे, इस ट्रेनिंग की बदौलत भारत ने इन खेलों में 100 पदक और लंदन ओलम्पिक में अब तक का सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में अहम भूमिका निभाई थी। सरकार को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि बेवजह बजट बढ़ाने से अच्छे परिणामों की उम्मीद नहीं रखी जा सकती। आज दक्षिण अफ्रीका से लेकर स्वीडन, केन्या, क्यूबा और नाइजीरिया आदि देशों का बजट भारत से कहीं कम है लेकिन यह देश खेलों में अपना अलग वजूद रखते हैं। ज़रूरत है सही दिशा में, सही कदम उठाने की, खिलाड़ियों की ट्रेनिंग, ढांचागत बुनियादी सुविधाओं और डोपिंग जैसे मुद्दों की अनदेखी, खेलो इंडिया योजना पर करोड़ों रुपए खर्च कर पूरी नहीं की जा सकती। ज़रूरत है सही समय पर सही कदम उठाए जाएं।