भारत ने मेहमाननवाज़ी की परम्परा तोड़ी

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के अमृतसर दौरे को बेहद भावुकतापूर्ण माना जा सकता है। कनाडा में रहते हुए ट्रूडो सिख भाईचारे के साथ कई पक्षों से जुड़े रहे हैं तथा इसके रीति-रिवाज़ों तथा परम्पराओं को समझते हैं। अपने देश में वह अक्सर पंजाबी भाईचारे द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में जाते हैं। इसलिए उनको श्री दरबार साहिब के दर्शन करके इस महान पवित्र स्थान पर नतमस्तक होते हुए कुछ असहज नहीं बल्कि अपनेपन का ही एहसास हुआ होगा। वहां पूरा समय वह शांत परंतु भावुक हुए भी दिखाई दिए। जिस उत्साह तथा उल्लास के साथ संगतों ने उनका स्वागत किया तथा जिस योजनाबद्ध ढंग से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने उनकी इस पवित्र स्थान की यात्रा का प्रबंध किया, वह सराहनीय था। प्रधानमंत्री द्वारा आगंतुक पुस्तिका में दर्ज करवाए गये अपने संदेश के अनुसार उनको श्री हरिमंदिर साहिब आकर एक अनोखा एहसास हुआ है। नि:संदेह इस संक्षिप्त दौरे ने उनके मन में सिख भाईचारे के प्रति प्रभाव तथा अपनेपन को और बढ़ाया लगता है। कनाडा एक बहुत विशाल तथा मज़बूत आर्थिकता वाला देश है। भारत के साथ इसके संबंध अंग्रेजी शासन के समय से ही रहे हैं, क्योंकि कनाडा भी उस समय अंग्रेजी साम्राज्य का एक हिस्सा ही था। उस समय इस साम्राज्य के अधीन अन्य छोटे-बड़े टापुओं में तो भारतीयों को जाने की पूरी स्वतंत्रता थी परंतु कनाडा में भारतीयों के जाने तथा वहां उनको बसने देने से वहां की तत्कालीन सरकारें हिचकिचाती थीं तथा उन्होंने ऐसे नियम तथा कानून भी बनाए हुए थे, जिनके कारण भारतीय मूल के लोग आसानी से वहां न जा सकें। परंतु समय बदलता रहता है। सरकारों की नीतियां परिवर्तित होती रहती हैं तथा इसके साथ ही हालात भी बदल जाते हैं। आज यह बात बड़े संतोष के साथ कही जा सकती है कि कनाडा की इस सुन्दर तथा विशाल धरती पर बड़ी संख्या में भारतीय निवास कर चुके हैं। उनमें से पंजाबियों तथा खासकर सिख भाईचारे की संख्या काफी है। अब तक कनाडा ने सीमाओं में रहते हुए भारतीयों तथा खासकरके सिखों को दोनों बाहों को फैला कर अपनी धरती पर रहने का अवसर दिया है। इसीलिए आज भी पंजाब के लाखों नौजवान कनाडा जाने के सपने देखते हैं ताकि वहां पहुंचकर वे अपने देश की बोझिल तथा निराशाजनक ज़िंदगी से निजात पा सकें। इनमें से अधिकतर के सपने साकार भी हुए हैं तथा वहां जाकर रह रहे नौजवानों ने अपनी ज़िंदगी को पूरी तरह संवारा तथा शृंगारा है, जिस कारण इधर बैठे उनके अभिभावक तथा रिश्तेदार अत्यंत खुशी तथा संतुष्टि के आलम में रह रहे हैं। उस गौरवमयी धरती का नौजवान प्रधानमंत्री जब भारत अपने 8 दिवसीय दौरे पर आता है तो जिस तरह का हल्के स्तर का तथा साधारण स्वागत उस शख्सियत का यहां किया गया है, उसको महसूस करके आज अधिकतर भारतीय तथा पंजाबी परेशान हो रहे हैं। 8 दिवसीय दौरे में से 7 दिन तक हमारे देश के प्रधानमंत्री के पास अपने इस विदेशी मेहमान के साथ हाथ मिलाने का समय तक न हो, ऐसा सोचकर सदियों से चली आ रही भारतीय परम्परा भी शर्मसार हो गई होगी। अपने मेहमान को दिल से लगाना, उसको पूरा प्यार देना तथा उसका आदर सम्मान करना भारतीय तथा विशेष तौर पर पंजाबी परम्परा का हमेशा से एक हिस्सा रहा है। शायद जस्टिन ट्रूडो को भारत के अन्य स्थानों की यात्रा के दौरान महसूस हुई ऐसी कमी के विपरीत अमृतसर के संक्षिप्त  दौरे ने उनका मन भर दिया होगा। उनको महसूस हुआ होगा कि पंजाबी अपने मेहमान को सम्मान देना तथा प्यार देना जानते हैं।बेशक केन्द्र सरकार का ऐसा शुष्क व्यवहार कनाडा में बैठे मुट्ठी भर खालिस्तानियों के कारण हो परंतु हमारी सरकार को यह भी पता है कि वहां ऐसे तत्व कितने हैं तथा यह भी कि बड़ी संख्या में भारतीय तथा पंजाबी उनकी इस विचारधारा के साथ सहमत नहीं हैं। कनाडा में खुलकर बोलने की तथा अपने विचार प्रकट करने की आज़ादी है परंतु भारत पर इसका असर पड़ता है। वहां बैठे कुछ लोग भारत में गड़बड़ फैलाने की कोशिशें भी कर सकते हैं परंतु इस बात को दोनों देशों के प्रधानमंत्री स्तर पर पूरी गंभीरता के साथ सोचा जा सकता है तथा इस कारण संबंधों में पैदा होने वाली पेचीदगियों को हल किया जा सकता है। आने वाले समय में भी आपसी बातचीत से कोई तरीका निकाला तथा उस पर विचार किया जा सकता है, परंतु घर आए मेहमान को अपनी अहंकारपूर्ण रुचियों से इस तरह बेइज्जत नहीं किया जा सकता। फिर उस देश में जहां लाखों हिन्दुस्तानी करोड़ों भारतवासियों से कहीं ऊंचा तथा बढ़िया जीवन जी रहे हैं। ऐसे देश के प्रति हम एहसान-फरामोश नहीं हो सकते। कनाडा पाकिस्तान नहीं है। यदि हमारे प्रधानमंत्री अपनी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बुला सकते हैं, जिससे हुए युद्धों में अब तक हमारे हज़ारों जवान शहीद हो चुके हैं, जहां से विगत 70 वर्षों से भारत के खिलाफ साज़िशें रची जा रही हैं तथा इसको तबाह करने के मंसूबे बनाए जाते रहे हैं। इसके अलावा उस देश के प्रधानमंत्री के एक समारोह में यदि हमारे प्रधानमंत्री बिन बुलाए मेहमान बन सकते हैं ताकि वह अपनी सुहृदयता प्रकट कर सकें, तो  कनाडा जैसे एक मित्र देश के प्रधानमंत्री के साथ ऐसा व्यवहार क्यों? हम इसकी भरपूर आलोचना करते हैं। इसने प्रधानमंत्री पद के साथ-साथ भारत की छवि को भी धुंधला किया है, जिसका हमें बेहद अफसोस है।

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द