पाकिस्तान एक और संकट की ओर

आतंकवाद के विरुद्ध कुछ बड़ी शक्तियों द्वारा पाकिस्तान को वित्तीय एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे सूची में डाले जाने की चेतावनी के बाद यह देश हाशिये के उस बिन्दु पर पहुंच गया है जहां से उसके लिए कुछ किये बिना वापिस लौटना सचमुच कठिन हो गया है। इस कार्रवाई को अंजाम देने वाले देशों में अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी शामिल हैं। नि:संदेह इस कवायद से पूर्व इन देशों खासतौर पर अमरीका की ओर से पाकिस्तान को आतंकवाद एवं कुछ आतंकवादी गुटों का समर्थन करने से रोकने हेतु कई बार चेताया जाता रहा है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अमरीका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैनिक एवं वित्तीय सहायता पर भी कई बार आंशिक रोक लगाई, एवं कई बार अन्य तरीकों से भी उस पर दबाव डाला जाता रहा, परन्तु पाकिस्तान ने हमेशा इस प्रकार की नसीहतों एवं चेतावनियों को दर-किनार किया। यहां तक कि पाकिस्तान ने अमरीकी चेतावनियों के प्रभाव को कम करने के लिए अपना रुझान चीन की ओर दर्शाने की भी कोशिश की। अमरीका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार आने से पूर्व तक, पूर्व प्रशासन बेशक थोड़ा नरम व्यवहार धारण किये रहे, परन्तु राष्ट्रपति ट्रम्प ने आते ही पाकिस्तान के विरुद्ध आतंकवाद समर्थक गतिविधियों के कारण शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। यूं, अमरीका ने तभी से पाकिस्तान को दृढ़ता से यह जताना शुरू कर दिया था, जब अमरीकी सील कमांडो ने पाकिस्तान के धुर भीतर जाकर विश्व के सर्वाधिक वांछित आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था, कि वह अब अधिक देर तक पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद का पोषण बर्दाश्त नहीं करेगा।
आतंकवाद आज एक वैश्विक संकट एवं आपदा बन गया है। दुनिया का शायद ही ऐसा कोई देश हो जिसकी धरती पर आतंकवादी विषधर के कंटक न उगे हों। पाकिस्तान स्वयं भी आतंकवाद से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। आतंकवाद के खंजर से जितना रक्त पाकिस्तान की अपनी धरती पर बहा है, उतना शायद अन्य किसी देश में न बहा हो, परन्तु इसके बावजूद यदि आतंकवादी सगठनों को वित्तीय एवं नैतिक समर्थन देते रहना पाकिस्तान की विवशता बना हुआ है, तो इसका एक बड़ा कारण वहां की सेना द्वारा पृष्ठभूमि में रह कर आतंकवाद को शह देते रहना भी हो सकता है। यह भी एक तथ्य है कि पाकिस्तान की सेना पर वहां की जन-निर्वाचित सरकार का कोई अंकुश अथवा नियंत्रण नहीं रहा है। संभवत: इसीलिए आत्मघात की धरती पर पले-बढ़े संगठनों लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और इनके नेता हाफिज़ सईद आदि पाकिस्तान में खुलेआम घूमते, विचरण करते दिखाई देते हैं। चूंकि भारत इनकी गतिविधियों से बहुत निकट से प्रभावित होता है अत: भारत की सरकारें अक्सर पाकिस्तान सरकार की ओर से यह अपेक्षा करती रही हैं कि वहां आतंकवाद पर अंकुश लगे तो दोनों देशों की सीमाओं पर शांति का माहौल सृजित हो। इसी प्रकार अमरीका के वैश्विक एवं सामरिक हित भी पाकिस्तान से सीधे वाबस्ता होते हैं। इसी कारण भारत और अमरीका कई बार प्रत्यक्ष एवं परोक्ष तरीके से पाकिस्तान को आगाह करते रहे हैं कि वह आतंकवाद को वित्तीय, नैतिक अथवा शस्त्रास्त्र की सहायता एवं समर्थन देते रहने से बाज़ आए परन्तु दुर्भाग्य से ऐसा संभव नहीं हो सका। अब अमरीका की पहल पर उसके कुछ मित्र देशों ने मिलकर पाकिस्तानी सरकार को अब तक की बड़ी चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि यदि इस देश की सरकार इन चेतावनियों को अनसुना करना जारी रखती है तो आगामी जून से उसे वित्त एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे सूची में डाल दिया जायेगा। इसका अभिप्राय यह होगा कि पाकिस्तान आगामी समय में गम्भीर वित्तीय संकट में फंस सकता है। विश्व ़फलक पर बैंकों से उसका लेन-देन रुक सकता है। विदेशी मुद्रा नियोजन सूख जायेगा और विश्व व्यापार की लागत बढ़ जायेगी। वर्ष 2012 से 2015 तक भी पाकिस्तान इस सूची में रहा है, परन्तु तब की और आज की स्थितियों में बड़ा अन्तर है, और अब राष्ट्रपति ट्रम्प की नीतियां एवं नीयत भी पूर्व के राष्ट्रपतियों से भिन्न हैं। अमरीका और उसके मित्र देशों ने पाकिस्तान के विरुद्ध ये प्रतिबंध आयद करने से पूर्व उसे जून तक का समय दे दिया है, ताकि वहां की सरकार समुचित पग उठा सके।पाकिस्तान के अमरीका के साथ संबंध खराब होने का बड़ा प्रमाण इस वर्ष के शुरू में राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा पाकिस्तान के संदर्भ में किये गये प्रथम ट्वीट संदेश से मिल जाता है, जिसमें उन्होंने खुले शब्दों में यह कहा कि ‘पाकिस्तान को अरबों डॉलर की वित्तीय एवं सैनिक सहायता दिये जाने के बावजूद उसकी ओर से छल और ़फरेब ही मिला है।’ बेशक पाकिस्तान की सरकार और वहां के नेताओं ने इस ट्वीट के विरुद्ध बार-बार सफाइयां दीं, परन्तु स्थितियों में कोई सुधार आते हुए न देख कर अंतत: अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी आदि को यह संयुक्त चेतावनी जारी करनी पड़ी। हम समझते हैं कि नि:संदेह पाकिस्तान को यह चेतावनी भारी पड़ सकती है। आतंकवाद ने आज सम्पूर्ण विश्व मानवता के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। इस देश से जुड़े अमरीकी हितों के प्रभावित होने से पूरे उप-महाद्वीप में अमरीकी नीतियों पर भी असर पड़ता है। भारत की तो सम्पूर्ण आर्थिकता ही गडमड हो जाती है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान से यह अपेक्षा की जाती है कि वह यथाशीघ्र आतंकवाद पर काबू पाने हेतु कोशिशें तेज़ करे और इसके दृष्टिगत अपने आचरण एवं नीतियों में परिवर्तन भी परिलक्षित करे अर्थात् नई नीतियों एवं कार्रवाइयों का असर दिखना भी चाहिए। हम समझते हैं कि पाकिस्तान जितनी शीघ्र और जितनी तेज़ी से इस पथ पर आगे बढ़ेगा, उतना ही उसके अपने लिए, और इस क्षेत्र की शांति के लिए अच्छा होगा। ऐसा न होने पर पाकिस्तान एक ऐसे गम्भीर वित्तीय एवं आर्थिक संकट में फंस सकता है, जिसमें से उभर पाना फिर उसके लिए सचमुच बहुत कठिन हो जायेगा।