भारत का विभिन्न भाषाएं बोलना समस्या नहीं देश की खूबसूरती : सतनाम सिंह माणक

मालेरकोटला, 25 फरवरी (जमील जौढ़ा/शमशाद सोनी) : राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस के अवसर पर हां का नारा साहित्य कला मंच मालेरकोटला द्वारा ‘पंजाबी मातृ भाषा का वर्तमान तथा भविष्य’ विषय पर स्थानीय श्री हनुमान मंदिर हाल में करवाए सैमीनार में मुख्य वक्ता के तौर पर पहुंचे रोज़ाना ‘अजीत’ के कार्यकारी संपादक तथा पंजाब जागृति मंच के अध्यक्ष  सतनाम सिंह माणक ने बड़ी संख्या में साहित्याकारों, विद्वानों तथा पंजाबी प्रेमियों को संबोधित करते कहा कि जिंदगी की जरूरतों की पूर्ति के लिए चाहे अंगे्रजी तथा हिन्दी सहित अन्य भाषाएं सीखने में कोई समस्या नहीं है परंतु पंजाबी मातृ भाषा को मां जैसा सम्मान दिया जाना चाहिए। इस समारोह में अतिरिक्त ज़िलाधीश संगरूर उपकार सिंह मुख्य मेहमान के तौर पर तथा ‘अजीत समाचार’ उप-कार्यालय संगरूर के प्रभारी सुखविन्द्र सिंह फुल्ल ने विशेष मेहमान के तौर पर शिरकत की जबकि अध्यक्षता मंडल में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य जत्थेदार जैपाल सिंह मंडीयां, अल्पसंख्यक कमिशन पंजाब के सदस्य हाजी मुहम्मद तुफैल मलिक, श्री सनातन धर्म सभा रजि के अध्यक्ष कमलेश गर्ग, नगर कौंसिल मालेरकोटला के अध्यक्ष इकबाल फौजी, पंजाब उर्दू अकादमी की सचिव डा. रूबीना शबनम, कौंसलर चौधरी बशीर, सिख बुद्धिजीवी मंच पंजाब के अध्यक्ष हरबंस सिंह शेरपुर, प्रसिद्ध लेखक श्री मोहन शर्मा तथा जसवंत सिंह खेहरा सचिव अकाल कॉलेज कौंसिल मस्तुआणा साहिब थे। अपनी विदवता भरपूर तकरीर के दौरान माणक ने संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत यूनीसैफ द्वारा 1971 में 21 फरवरी को मातृ भाषा दिवस के तौर पर मान्यता देने के कुर्बानियों भरे ऐतिहास की चर्चा करते जहां 1948 से 1956 तक हिंदोस्तान में लड़े गए भाषा अंदोलनों संबंधी विस्तार सहित जानकारी दी वहीं अपनी मातृ भाषा की रक्षा के लिए 21 फरवरी 1952 को ढाका यूनिवर्सिटी के शहीद हुए तीन छात्रों की शहादत को भी याद किया। उन्होंने कहा कि हिंदोस्तान में विभिन्न क्षेत्रीय जुबानों का अपना खास महत्व है तथा भारत में विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया जाना कोई समस्या नहीं बल्कि इस देश की खुबसूरती है। वही समाज ही तरक्की कर सकता है जहां 100 फूल खिलने की आज्ञा हो। वैश्वीकरण के दौर में क्षेत्रीय भाषाओं की जगह अंग्रेजी भाषा को विश्व की मुख्य भाषा के तौर पर उभारने की कोशिशों का पूरी तरह नकारते श्री माणक ने कहा कि 1991 में विश्वीकरण के दौर दौरान चाहे क्षेत्रीय भाषाओं की जरूरत को नकारती सोच उभर कर सामने आई पंरतु बाद में यह महसूस किया जाने लगा कि किसी क्षेत्र तथा देश का सामूहिक विकास क्षेत्रीय भाषाओं के बिना संभव ही नहीं है। उन्होंने पंजाबी भाषा की रक्षा तथा तरक्की के लिए सरकारी स्कूलों के शैक्षणिक प्रबंधों को ठीक करने की जरूरत महसूस करते कहा कि आज अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़़ाने के लिए इसी कारण पहल दे रहे हैं क्याेंकि सरकारी स्कूलों के पास प्राथमिक शिक्षक ढांचा ही नहीं है, सरकारी स्कूलों में न अध्यापक हैं तथा न ही उचित सुविधाएं। सरकार लोगों को अनपढ़ रखकर आटा दाल बदले वोट लेने की राजनीति करना चाहती है। उन्होंने मांग की कि सरकारी स्कूलों को सुविधाएं के पक्ष से निजी स्कूलों के बराबर खड़ा करना होगा। 
हां के नारे की ऐतिहासिक धरती मालेरकोटला में नतमस्तक होते श्री माणक ने कहा कि पंजाबी मातृ भाषा के पक्ष में आज इस धरती से बुलंद किया हां का नारा पूरे विश्व में बैठे पंजाबी मां बोली को प्यार करने वालों के लिए जागरूक करने के लिए अहम भूमिका निभाएगा। मुख्य मेहमान स. उपकार सिंह अतिरिक्त जिलाधीश संगरूर ने अपने भाषण के दौरान कहा कि आज विश्व की 7000 भाषाएं हैं जिनमें वर्ष 2100 तक 60 प्रतिशत भाषाएं खत्म हो जाएंगी। इनमें मजबूत समझी जाती 200 भाषाएं समाप्त हो चुकी हैं तथा क्षेत्रीय भाषाओं का लगातार खत्म होना चिंता का विषय है। उन्होंने पंजाबी भाषा की मौजूदा दशा पर चिंता का प्रकटावा करते कहा कि आज चाहे प्रत्यक्ष रूप में पंजाबी भाषा को कोई बड़ा खतरा दिखाई नहीं देता परंतु यह सच है कि पंजाबी असुरक्षित जोन के पहले चरण में प्रवेश कर चुकी है। ‘अजीत समाचार’ उप-कार्यालय संगरूर के प्रभारी सुखविन्द्र सिंह फुल्ल ने आए मेहमानों तथा विद्वानों व दर्शकों का धन्यावाद किया। कुरूक्षेत्र यूनवर्सिटी के सेवामुक्त डीन डा. नरविन्द्र कौशल द्वारा किए मंच संचालन दौरान इस विचार चर्चा में अल्पसंख्यक कमिशन पंजाब के सदस्य हाज़ी मुहम्मद तुफैल मलिक, श्री सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष श्री कमलेश गर्ग, मोहन शर्मा, पंजाब ऊर्दू अकादमी की सचिव डा. रूबीना शबनम, गुरप्रीत सिंह लाड्डी प्रभारी अंजीत उप कार्यालय बरनाला, सिख बुद्धिजीवी मंच पंजाब के अध्यक्ष हरबंस सिंह शेरपुर तथा प्रसिद्ध लेखक श्री मोहन शर्मा, प्रिंसीपल डा. कमलजीत सिंह टिब्बा, केन्द्रीय पंजाबी लेखक सभा (सेखों) के महासचिव पवन हरचंदपुरी, पवित्र कौर गरेवाल, डा. भगवंत सिंह पूर्व भाषा अधिकारी, प्रिंसीपल सुलक्षण मीत, डा. धर्म चंद बातिश, मास्टर रजजान शईद, वातावरण प्रेमी गुरदयाल सिंह सीतल, कर्म सिंह जख्मी, भाषा विज्ञानी जंग सिंह फटड़, कौंसलर चौधर मुहम्मद बशीर, पंजाब यूथ कांग्रेस के प्रांतीय महासचिव मुहम्मद फारूक अंसारी, लेखक मनजिन्द्र सिंह काला सरोंद आदि विद्वानों में हिस्सा लिया। इस अवसर पर हां का नारा सहित्य कला मंच मालेरकोटला द्वारा सतनाम सिंह माणक, स. उपकार सिंह तथा सुखविन्द्र सिंह फुल्ल को नबाव मालेरकोटला द्वारा हां का नारा लगाने वाले औरंगजेब को लिखे पत्र के पंजाबी अनुवाद वाले यादगारी चिन्हों तथा लोई से सम्मानित किया गया। मास्टर रमजान शईद द्वारा पंजाबी में अनुवार किए पवित्र कुरान की कापियां सतनाम सिंह माणक,  उपकार सिंह तथा सुखविन्द्र सिंह फुल्ल को भेंट की गईं। समारोह में नूर मुहम्मद नूर की किताब पंजाबी मुहावरे भी रिलीज़ की गई।