फसली विभिन्नता लाओ, किसानों की आमदनी न घटाओ    

पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सिंह की अगुवाई में वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल सहित पंजाब के अधिकारियों की नीति आयोग के साथ हुई बैठक के दौरान पंजाब सरकार की ओर से फसलों की खरीद में पड़ रहा 1800 करोड़ रुपए का घाटा, फसलों का कम से कम मूल्य कृषि लागत (सी 2) में 50 फीसदी मुनाफा शामिल करके निश्चित करने और अन्य सीमांत राज्य के तौर पर कई योजनाओं के अधीन वित्तीय सहायता देने की मांग को नीति आयोग के उप-चेयरमैन डा. राजीव कुमार ने बहुत नकारात्मक जवाब देते हुए इन मांगों को ठुकरा दिया और पंजाब सरकार की ओर से राज्य के खाद्य सुरक्षा और केन्द्र भण्डार के लिए अनाज का योगदान डालने संबंधी दी गई दलीलों के जवाब में यह कहा, ‘आप खाद्य सुरक्षा संबंधी भूल जाओ, यह समस्या केन्द्र पर छोड़ दो, केन्द्र अपने आप देखेगा। राज्य सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने संबंधी पर्याप्त कार्रवाई करे।’ उप-चेयरमैन ने यह भी कहा कि फसली विभिन्नता संबंधी पिछले  लम्बे समय के दौरान पंजाब ने क्या किया है? पंजाब सरकार को केन्द्र से मांगना छोड़ कर अपने साधन पर किसानों की आमदनी बढ़ाने संबंधी प्रयास करने की सलाह भी दी।
नीति आयोग का यह रवैया स्पष्ट करता है कि केन्द्र का गेहूं और धान की सरकारी खरीद को भविष्य में तिलांजलि देने की ओर झुकाव है। पंजाब की कृषि आर्थिकता इस समय धान-गेहूं के फसली चक्कर पर आधारित है और किसानों के आर्थिक हालत में सुधार लाने के लिए तथा आत्महत्याओं को रोकने के लिए एम.एस.पी. जो कृषि लागत (सी 2) पर 50 फीसदी लाभ देकर निश्चय किये जाने की मांग करती है। चाहे पंजाब की आज़ादी के बाद पिछले समय के दौरान केन्द्रीय भण्डार में 80 फीसदी गेहूं और 60 फीसदी तक धान (चावल) देकर उल्लेखनीय योगदान डाला है। लेकिन अब  उत्तर-पूर्वी राज्य जो पहले सोए हुए थे, अपना खज़ाना बाहर लाकर बड़ी मात्रा में चावल और गेहूं पैदा करने लग पड़े हैं। गेहूं उत्पादन में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। मध्य प्रदेश और बिहार में भी भारी मात्रा में गेहूं पैदा किया जा रहा है। चावल उत्पादन में असम, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल और बिहार जैसे राज्य उभर कर सामने आए हैं। पंजाब अभी भी केन्द्रीय अनाज भंडार में 38 फीसदी तक गेहूं और 30 फीसदी तक चावल दे रहा है। नीति आयोग ने राज्य को धान-गेहूं की फसली चक्कर से दूर ले जाने के लिए तो जोर डाला ही लेकिन इस तरह से क्या फसली चक्र अपनाए जाएं, ताकि किसानों की आमदनी सन् 2022 तक दोगुनी हो जाए। इस संबंधी कुछ नहीं बताया। प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री डा. एम.एस. स्वामीनाथन के अनुसार पंजाब के लिए धान-गेहूं फसली चक्र को छोड़ना ज़रूरी है, लेकिन केन्द्र को ऐसे सुझाव देने चाहिए, जिससे किसानों की आमदनी कम न हो। कृषि दूसरे धंधों के मुकाबले बड़ा जोखिम वाला काम है। किसानों की मुनासिब आमदनी यकीनी बनाना बहुत ज़रूरी है। धान-गेहूं का फसली चक्र क्रमवार एकदम 30 लाख हैक्टेयर से 85 लाख हैक्टेयर रकबे पर बदलने संबंधी बहुत आर्थिक समस्याएं दरपेश हैं। गेहूं, धान के अलावा इस समय 2.30 लाख हैक्टेयर रकबे पर सब्ज़ियों की काश्त हो रही है। 79,000 हैक्टेयर पर फलों की और 1 लाख हैक्टेयर रकबे पर मक्की की। कपास-नरमा 3.82 लाख हैक्टेयर पर और गन्ना 95,000 हैक्टेयर रकबे पर बीजा गया। किसी भी फसल के मंडीकरण से किसानों को गेहूं-धान जितनी आमदनी नहीं हुई। चाहे यह आमदनी एम.एस.पी. पर सरकारी खरीद किए जाने के कारण है।
कपास-नरमा और बासमती ऐसी फसलें हैं, जो धान-गेहूं फसली चक्कर जितना लाभ और आमदनी दे सकती हैं। लेकिन कपास-नरमे की काश्त अधीन सन्  2014 में 4.13 लाख हैक्टेयर रकबा था, जो सन् 2015 में 3.39 लाख हैक्टेयर रह गया और सन् 2016 में कम होकर 2.16 लाख हैक्टेयर पर आ गया। सरकार की ओर से किसानों को इस फसल की काश्त के लिए प्रेरित करने संबंधी कोई प्रभावशाली प्रयास नहीं किए गए। चाहे जिनी क्षेत्र की ओर से सरकार को दिए सहयोग के तौर पर यह रकबा इस वर्ष बढ़कर 3.82 लाख हैक्टेयर पर पहुंच गया। किसी समय (2006-07) में यह रकबा 6.14 लाख हैक्टेयर होता था। पंजाब के नरमे की गुणवत्ता बड़ी उत्तम मानी गई है और इसकी निर्यात की मंडी भी है। पिछली शताब्दी में हरित क्रान्ति के शुरू होने के समय कपास पट्टी बहुत खुशहाल किसानों की धरती मानी जाती थी और यहां के किसान दूसरे क्षेत्र के किसानों से आर्थिक तौर पर बेहतर थे। पंजाब की ओर से इस फसल निचला रकबा बढ़ाने और इस फसल के उत्साह के लिए कोई विशेष कदम नहीं उठाए गए। आई.सी.ए.आर. (भारतीय कृषि खोज संस्थान) की ओर से बासमती की गुणवत्ता वाली और अधिक झाड़ देने वाली लाभप्रद किस्म विकसित करने के उपरांत और पंजाब बासमती के जी.आई. ज़ोन में होने के कारण, 2013-14 में बासमती किस्मों की काश्त निचला 7.68 लाख हैक्टेयर रकबा हो गया, जो धान की काश्त निचले कुल रकबे का 28-29 फीसदी के करीब था। धान के मुकाबले इन किस्मों को पानी की ज़रूरत बड़ी कम है और बासमती की काश्त से किसानों को धान के मुकाबले अधिक आमदनी की प्राप्ति हुई। पंजाब की बासमती खाड़ी के देशों और कई पश्चिमी देशों को निर्यात की जाती है और भारत के दूसरे राज्यों में भी इसकी मांग है। 
सरकार की ओर से इस रकबे को कायम रखने से इस रकबे को कायम रखने के लिए कोई प्रयास और किसानों की मदद नहीं की गई और व्यापारियों की ओर से किसानों का शोषण किए जाने के उपरांत मूल्य में कमी आने के कारण इन किस्मों की काश्त निचला रकबा घट कर 4.5 लाख हैक्टेयर पर आ गया है। कृषि वैज्ञानिकों और अर्थ-शास्त्रियों के अनुसार बासमती की घरेलू मांग और निर्यात की मंडी को मुख्य रखते हुए यह रकबा 10 लाख हैक्टेयर तक जा सकता है, जिसके लिए पूसा बासमती 1121, 1509, 1401, 1637 और 1728 जैसी लाभप्रद किस्में उपलब्ध हैं।सब्ज़ियों की काश्त निचला रकबा भी बढ़ाए जाने की गुंजाइश है। इसलिए कोल्ड स्टोरों, ठंडी चेन, मंडीकरण की सुविधाएं और किसानों की अपनी मंडियां ज़रूरी हैं। केन्द्र अनाज सुरक्षा कार्यक्रम के अधीन पंजाब को गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए हर वर्ष आर्थिक सहायता मुहैया करवा रहा है। पंजाब सरकार भिन्न-भिन्न स्कीमें बना कर गेहूं की काश्त को प्रोत्साहन देने के लिए योजनाबंदी कर रही है। जैसे गेहूं की भिन्न-भिन्न किस्मों के बीजों और कीटनाशकों पर सब्सिडी देना। चाहे पिछले वर्ष से सब्सिडी देने की विधि में तबदीली लाकर उत्पादकों के खातों में सब्सिडी जमा करने की जो स्कीम बनाई गई है, उसके तहत किसानों को अभी भी सब्सिडी की रकम नहीं मिली और वह परेशान हो रहे हैं। इसी तरह कीटनाशक दवाई उपलब्ध करने वाली फर्मों की सब्सिडी की रकम की अदायगी तभी तक नहीं हुई। छोटे किसान जिन्होंने निजी क्षेत्र से ऋण उठाकर यह बीज खरीद के लिए और सब्सिडी लेने के लिए बिजाई की किस्म का चुनाव  भी बदल लिया, सख्त परेशानी का सामना कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि अगर केन्द्र को पंजाब की गेहूं की ज़रूरत नहीं तो यह अनाज सुरक्षा के लिए आर्थिक सहायता क्यों दी जाती रही? जहां नीति आयोग का रवैया किसान-विरोधी है और इस बीच एकदम तबदीली पंजाब और इसके किसानों से केन्द्र की ओर राज्य के उत्पादकों को दरपेश मुश्किलों को हल करने के लिए पल्ला झाड़ना समझा जा रहा है, अगर पंजाब सरकार की ओर से समय पर फसली विभिन्नता संबंधी योग्य खजाना बनाकर पिछले वर्षों के दौरान ज़रूरी कार्रवाई की जाती तो आज नीति आयोग की ओर से दिखाए गए रूखेपन का सामना न करना पड़ता।पंजाब सरकार जो कृषि नीति बना रही है, उसमें फसली विभिन्नता को विशेष महत्व देकर इस संबंध में कुछ प्रभावशाली किया जाए, ताकि राज्य का भविष्य सुरक्षित रहे।

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