मंगल पर बस्ती बसाने की ओर दुनिया

 ऐसी वैज्ञानिक परिकल्पना है कि फोबोस और डेमोस मंगल के दो चंद्रमा हैं। जो क्रमश: 27 व 15 किमी लंबे हैं। ये दोनों मंगल के उपग्रह हैं। और मंगल की परिक्रमा करते रहते हैं। रूस को तो उम्मीद थी कि वह 1994 में मंगल पर अंतरिक्ष यात्री उतार देगा। किंतु इसी दौरान सोवियत संघ का विघटन हो गया। इसी टूटी कड़ी को आगे बढ़ाने की दिशा में अमरीका ने 1992 में मार्स-ऑब्जर्वर यान भेजा, लेकिन यह मंगल की कक्षा के करीब पहुंचते ही वैज्ञानिकों की नियंत्रण प्रणाली से बाहर होकर भटक गया। इन अभियानों को झटका लगने के बाद मंगल पर अंतरिक्ष यान भेजने की गति धीमी पड़ गई। शीत युद्ध के अंत और अंतरिक्ष अभियान ज्यादा मंहगे होने के कारण अमरीका व रूस के बीच प्रतिस्पर्धा समाप्त हो गई। अब दोनों परस्पर मिलकर मंगल अभियानों को आगे बढ़ा रहे हैं। यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र के लिए रूसी यान पर अमरीकी यात्री सवार हो रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में स्वदेशी तकनीक से विकसित भारतीय अंतरिक्ष अभियान ने भी मंगल ग्रह की उड़ान भर ली। भारतीय वैज्ञानिकों ने जब मंगलयान लालग्रह में प्रवेश करा दिया तो भारत अमरीका, रूस और योरोपीय संघ के बाद चौथा ऐसा देश हो गया, जिसकी नई धरती की खोज में प्रभावशाली भूमिका दुनिया के समक्ष आएगी। सौर ऊर्जा शक्ति से संपन्न 15 किग्रा के पांच उपकरण भारतीय मंगलयान में लगे हैं, जिनकी सक्रियता निरंतर बनी हुई है।  अति संवेदनशील कैमरों के अलावा जो पांच उपकरण भेजे गए हैं, उनमें मीथेन संवेदक, उष्मा संवेदक, अवरक्त वर्ण विषलेषक, यंत्र हैं। 760 वॉट बिजली उत्पन्न करने वाले सौर पेनल भी लगे हैं। ये यंत्र मंगल पर मौसम, पानी, मिट्टी के प्रकार और मीथेन गैस का पता लगा रहे हैं, क्योंकि मीथेन के अवशेष मिलते हैं, तभी जीवन की संभावना मंगल पर की जा सकेगी ? मीथेन जीव-जंतुओं के मल विसर्जन से उत्पन्न होती है। मवेशियों व वन्य प्राणियों के उदर में सक्रिय जीवाणु मीथेन पैदा करते हैं।  मंगल पर मीथेन की उपस्थिति को लेकर विरोधाभासी अनुसंधान सामने आए हैं। 2004 में हवा में स्थित दूरबीनों और योरोपीय संघ की अंतरिक्ष एजेंसी के मार्स एक्सप्रेस प्रोब ने मंगल पर मीथेन के वजूद को स्वीकारा था। मंगल के वायुमंडल में मीथेन की मात्रा 10 से लेकर 45 अंश प्रति अरब अंश (पीपीबी) आंकी गई थी। इसकी उत्पत्ति के बारे में कहा गया कि यह सूक्ष्मजीवों से पैदा हुई। कुछ वैज्ञानिकों ने इसे भूगर्भीय हलचल का नतीजा माना। नासा के गोडार्ड अंतरिक्ष उड़ान केंद्र के वैज्ञानिक माइकल गुम्मा ने तो यहां तक कहा कि मंगल पर मीथेन गैस के फव्वारे हैं, जो 17,000 टन गैस उगलने की क्षमता रखते हैं। नतीजतन मंगल के वायुमंडल में 6 अंश, प्रति अरब अंश मीथेन मौजूद है। किंतु इसके उलट अक्तूबर-नवंबर 2012 में क्यूरिऑसिटी अभियान ने जो परिणाम दिए, उसमें मीथेन के मामूली चिन्ह भी नहीं मिले। इसी आधार पर जी माधवन नायर कह रहे हैं कि मंगल पर जीवन की आशा सर्वथा व्यर्थ है। हालांकि इस यान में जो मीथेन संवेदी मापक यंत्र लगाया गया है, उसकी संवेदनशीलता बेहद कम बताई जा रही है। इसलिए इससे अपेक्षित उम्मीद कम है। बहरहाल अन्य ग्रहों की तुलना में वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि पृथ्वी के अलावा मानव आबादी के लिए कोई उपयोगी धरती संभव होगी तो वह मंगल ग्रह पर ही होगी। बावजूद, डॉ. यशपाल का कहना है कि मंगल पर मानव आबादी बसाए जाने की प्रक्रिया शुरू होती भी है तो उसमें अभी कम से कम 400 से 600 साल लगेंगे। इसलिए यदि कुछ लोग मंगल पर बसने के लिए भूखण्ड या घर बसाने की तैयारी में हैं, तो वे ठहर जाएं और करीब सात जन्मों के बाद लाल ग्रह की इस नई धरती पर बसने की सोचें ?