सुरक्षा भी करते हैं टान्सिलटॉन्सिल

 

गोल आकार के दो अवयव हैं जो हमारे गले के कंठ के मुख्य द्वार पर दोनों ओर होते हैं। हम पानी, भोजन व हवा आदि जो पदार्थ ग्रहण करते हैं, उनके साथ कई कीटाणु भी हम ग्रहण कर लेते हैं जिनकी जानकारी हमें नहीं होती मगर टॉन्सिल उन कीटाणुओं को बीच में ही रोककर समाप्त कर देते हैं और बाहरी संक्रमण से हमारा बचाव होता रहता है।
मगर कई बार टॉन्सिल हमें संक्रमण से बचाते-बचाते खुद संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। इनमें कमजोरी आ जाती है जिसकी वजह से ये अपना काम पूर्ण रूप से नहीं कर पाते।
टॉन्सिल जब संक्रमित होते हैं तो बुखार, सिरदर्द, गले में सूजन व दर्द, सूखी खांसी, कुछ खाने में तकलीफ व अन्य कई परेशानियां पैदा हो जाती हैं, जिससे हम खुद में कमजोरी अनुभव करने लगते हैं।
इनके संक्रमित होने का प्रमुख कारण प्रदूषित खाद्य पदार्थ, अधिक खट्टी वस्तुएं, संक्रमित जल, अधिक ठंडे पेय पदार्थ, पान सुपारी व गुटके का सेवन, अधिक धूम्रपान आदि हैं।
इस रोग का जल्दी उपचार न कराने से गंभीर रोग होने की संभावना बनी रहती है। अत: तुरन्त उपचार कराना ही बेहतर है।
र् अधिक ठंडे पेय पदार्थों का सेवन कदापि न करें।
र् ठोस आहार त्याग कर हल्के तरल पदार्थ लें।
र् गुनगुने पानी में नमक मिलाकर 5-6 दिन तक नियमित गरारे करें।
र् 3-4 दिन तरल पदार्थ लेने के पश्चात् सूप, दलिया, खिचड़ी आदि लें। फिर कुछ अंतर महसूस होने पर ठोस आहार लिया जा सकता है। अधिक तली-भुनी वस्तुओं से परहेज करें।
र् पालक के पत्तों का रस निकाल कर उससे कुल्ला करने से गले के दर्द में आराम मिलता है।
र्छाछ में काली मिर्च पीस कर गले पर लेप करने से गले की सूजन दूर होती है।
र् फालसे की छाल को पानी में उबाल कर उससे कुल्ले करें।
र् शहतूत के शर्बत का सेवन भी लाभप्रद है।
र् लौकी के रस में थोड़ा शहद मिलाकर पिएं।
र्सूखी अंजीर को पानी में उबालकर पेस्ट बना लें।
र्गले पर इसका लेप करने से सूजन दूर होती है। (स्वास्थ्य दर्पण)
-भाषणा बांसल