बड़ी जंग से पहले छोटी जंग में जूझती राजनीतिक पार्टियां

त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में मतदान सम्पन्न हो चुका है। इन राज्यों में सरकारों के गठन की प्रक्रिया जारी है। इन चुनावों में बड़े दलों ने चुनावी जंग जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस के नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राहुल गांधी गुजरात में प्राप्त जनसमर्थन जैसा वातावरण कर्नाटक में भी कुछ चमत्कार करके दिखाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहे हैं। रैलियां, जनसभाएं, रोड शो और प्रैस कान्फ्रैंस इत्यादि से राजनीतिक जीवन की प्राण वायु ही बन चुके हैं। इसके अतिरिक्त राहुल गांधी कुछ अलग से करके दिखाना चाहते हैं, जिससे कर्नाटक में उनकी सरकार को एक बार पुन: फिर सत्तासीन होने का अवसर मिले। वे जानते हैं कि जब भाजपा गुजरात में छठी बार अपनी सत्ता को बचाने में सफल हो सकती है तो कर्नाटक में कांग्रेस सरकार दूसरी बार हकूमत में क्यों नहीं आ सकती? 
यह भी एक हकीकत है कि कांग्रेस को एक शक्तिशाली विपक्षी दल का सामना करना है। मुद्दे वही पुराने हैं सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और किसानों की बदहाली। परन्तु इस पर विपक्षी दल कांग्रेस सरकार पर ताबड़तोड़ हमले करते दिखाई देंगे। कहते हैं जंग में सब जायज़ होता है। साम, दाम, भेद, दंड जैसे सभी हथकंडे अपनाए जायेंगे। राहुल गांधी मंदिरों में वैसे ही नतमस्तक होते दिखाई देंगे जैसे वह गुजरात में नज़र आए थे। सरसंघ चालक मोहन भागवत ने मेरठ में एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विशाल कार्यक्रम में कट्टरवाद को नई परिभाषा दी। लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस के विचारक राहुल गांधी के हिन्दुत्व को ‘साफ्ट हिन्दुइज़म’ का नाम देने में जुटे हैं। एक बात जन-साधारण को समझ नहीं आई कि संघ के कट्टरवाद और कांग्रेस के नरम दलीय हिन्दुत्व में अंतर क्या है? जो प्रवीण तोगड़िया, साक्षी महाराज और सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे लोग हिन्दुत्व को परिभाषित करते रहते हैं। वैसे ही कांग्रेस के लोग नाम कुछ भी दे दें ‘हिन्दुइज़म’ पर आजकल खुलकर बोल रहे हैं। अब बात भाजपा की भी कर लें, वह केन्द्र में गत चार साल से सत्तासीन है। कर्नाटक की योजनाएं कितनी बनी और कितनी के लिए केन्द्र सरकार ने सहायता दी। सन् 2019 में संसदीय चुनाव हैं। भाजपा की सारी नीति उस चुनाव को सामने रख कर ही बनाई गई है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह यह बात खुलकर कहते भी हैं कि भाजपा संसदीय चुनाव सामने रख कर ही आठ राज्यों के चुनाव में उतर रही है। भाजपा गरीबों, वंचित वर्ग और दबे-कुचले लोगों की सरकार कहलाने का अवसर नहीं छोड़ना चाहती। जितनी योजनाएं आज तक जन-साधारण के सामने आई हैं, वे गरीबों के लिए हितकर ही कही जा रही हैं। यह चुनाव हिन्दू धर्म को मध्य रखकर लड़ा जा रहा है। जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी अपने आप को शिव भक्त सिद्ध करने के लिए ऐढ़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं तब भाजपा भला पीछे क्यों रहे, वे भी मंदिरों की दहलीज़ों पर शीश निवाती नज़र आती हैं। सूचना के दौर में इलैक्ट्रोनिक एवं प्रिंट मीडिया तो है ही अब सोशल मीडिया भी पूरे आवेग से जन-साधारण के पास पहुंच रहा है, तभी तो लोग कहते हैं कि इस बार चुनाव दिमाग  से लड़ा जा रहा है। डिजिटल युग है और भाजपा अपनी बात शीघ्र अति शीघ्र लोगों तक पहुंचाने में जुटी है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी स्वयं ट्वीट, व्हटसएप एवं इंटरनेट से जुड़े रहते हैं। चुस्त-दुरुस्त नीति बनाना समय की मांग बन चुकी है। झंडो-नारों और प्रचार के परम्परागत तरीकों का दौर बहुत पीछे छूट गया है। जनता दल (सैकुलर) जिसे देश के पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा का नेतृत्व प्राप्त है, जो एक बार कर्नाटक में भाजपा के सहयोग से सरकार भी बना चुके थे, इस बार भी कमर कस चुनावी मैदान में उतर रहे हैं। बहन मायावती ने जनता दल (सैकुलर) को बहुजन समाज पार्टी का पूर्ण समर्थन देने का समझौता किया है। इस लिहाज़ से कर्नाटक के चुनावों में इसे तिकौना मुकाबला ही समझा जायेगा। भाजपा अपनी आर्थिक नीतियों को लेकर आत्मविश्वास से भरी है, परन्तु कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भाजपा के नोटबंदी और वस्तु सेवा कर की भरपूर आलोचना कर रहे हैं और उनका कथन है कि इससे देश के आर्थिक ढांचे की चूलें हिल गई हैं। मन्दी का दौर है, परन्तु भाजपा के नेतृत्व ऐसा नहीं मानते। भाजपा को नरेन्द्र मोदी जैसे करिश्माई और अनुभव सम्पन्न नेता का नेतृत्व प्राप्त है और वह हालात को मोड़ देने में सक्षम सिद्ध भी हुए हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस के पास भाजपा जैसा संगठन नहीं है और एजेंडा के मामले में भी अस्पष्टता है मगर वह आज राहुल गांधी जी के नेतृत्व को लेकर बहुत आशावादी दिखाई देती है। कर्नाटक में चुनाव सरगर्मियां बहुत उभार पर हैं। भाजपा-कांग्रेस और जनता दल (सैकुलर) लंगर लंगोटे कस कर चुनावी मैदान में उतरे तो हैं, परन्तु उनका निशाना सन् 2019 का संसदीय चुनाव ही है और बड़ी जंग से पहले यह छोटी जंग जनता को देखने को मिलेगी।