लाफ्टर गैस

एक गैस ऐसी भी है, जिसे सूंघने से खूब हंसी चलती है। इस गैस की खोज आज से 42 वर्ष पूर्व प्रोस्टले टर्बिन नामक एक युवा वैज्ञानिक ने की थी। 6 जुलाई, 1972 को मौसम का मिज़ाज बिगड़ा हुआ था। तेज बारिश हो रही थी। बिजलियां कड़क रही थी। ऐसे में प्रोस्टले अपनी प्रयोगशाला में बैठे-बैठे सोच रहे थे। तभी उनके मस्तिष्क में एक युक्ति उपजी। उसी के अनुसार उन्होंने ‘नाइट्रिक आक्साइड’ को लोहे पर अपचित करके एक अद्भुत गैस प्राप्त की। जब उन्होंने यह गैस सूंघी तो वे स्वयं ही ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे। अपने को इस तरह हंसते देखकर प्रोस्टले ने मन मेंसोचा- ‘भला। मैं बेवजह क्यों हंस रहा हूं?’ आखिर हंसी का राज क्या है? लेकिन उनको यह बात कुछ समझ न आई और उन्होंने अपने एक वैज्ञानिक मित्र के घर जाकर जब इस संदर्भ में चर्चा की तो मित्र ने कहा- ठीक है कल तुम्हारी प्रयोगशाला में आकर उस गैस का सूक्ष्म अवलोकन करूंगा, आखिर उसमें क्या राज छिपा है। दूसरे दिन वह वैज्ञानिक प्रोस्टले की प्रयोगशाला में पहुंचा। प्रोस्टले ने जब वह गैस अपने वैज्ञानिक मित्र को सुंघाई तो वह भी हंसने लगा। प्रोस्टले के वैज्ञानिक मित्र ने इस गैस के गुणों का सूक्ष्म परीक्षण अध्ययन किया तो विदित हुआ इसे सूंघने के कारण ही हंसी आने लगती है। अत: उन्होंने इस गैस का नाम ‘लाफ्टर गैस’ रखा। रसायन विज्ञान में इस लाफ्टर गैस को ‘नाइट्स आक्साइड’ कहा जाता है।  नाइटस आक्साइड में नाइट्रोजन के दो परमाणु और आक्सीजन का एक परमाणु होता है। यह रंगहीन और मीठी गंध वाली गैस है। इसे सूंघने पर नाड़ी की गति तेज हो जाती है और अनायास ही हंसी आने लगती है।  हां, इस गैस को लगातार सूंघते रहने से बेहोशी आने लगती है। यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
-फेनम सोगानी