मोदी सरकार से अलग क्यों हुई तेलुगू देशम पार्टी ?

तेलुगू देशम पार्टी के मंत्रियों के नरेन्द्र मोदी सरकार से अलग होने की घटना को कैसे देखा जाए, यह आपके नजरिए पर निर्भर करेगा। जवाब में आंध्र प्रदेश सरकार में शामिल भाजपा के दो मंत्रियों ने भीइस्तीफा दे दिया है। जब 7 मार्च की देर रात आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू ने पत्रकार वार्ता बुलाकर इसकी घोषणा की तो यह साफ  हो गया कि दोनों पार्टियाें के बीच तत्काल मेल-मिलाप की संभावना खत्म हो रही है। हालांकि भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। कारण, नायडू ने अपने मंत्रियों से केवल इस्तीफ ा दिलवाया है, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग होने की घोषणा नहीं की है। तो इसका राजनीतिक महत्व अभी इतना ही है कि दोनों के संबंधों में चार साल के बाद दरार पैदा हुई है। यह दरार आगे जाकर वाकई संबंध विच्छेद में बदल ही जाएगी ऐसा मान लेने के पहले भावी राजनीतिक घटनाक्रमाें की प्रतीक्षा करनी होगी। इस प्रकरण को हम चाहे जितना बड़ा बनाकर पेश करें इसका राजनीतिक परिणाम अभी कुछ नहीं आने वाला। दूसरे, इसे किसी वैचारिक मतभेद के तौर पर देखना भी गलत होगा। आखिर चन्द्रबाबू नायडू ने किसी राजनीतिक विचारधारा का प्रश्न नहीं उठाया है। जिस सेक्यूलर और सांप्रदायिक राजनीति की बात की जा रही है वैसा कुछ तो नायडू ने कहा ही नहीं है। उन्होंने भाजपा पर या मोदी सरकार पर यह आरोप नहीं लगाया है कि वह सेक्यूलर एजेंडे से बाहर जा रही थी इसलिए हमने ऐसा निर्णय किया है। इसलिए जो लोग जल्दबाजी में इसे भविष्य की सेक्यूलर बनाम सांप्रदायिक राजनीति की दृष्टि से देख रहे हैं वे जरा अपने निष्कर्ष पर पुनर्विचार करें।
वास्तव में जिस तरह पिछले कुछ दिनों से आंध्र प्रदेश के सांसद व्यवहार कर रहे थे उससे साफ  दिख रहा था कि संबंधों की मिठास जा चुकी है। हालांकि चन्द्रबाबू नायडू इतनी जल्दी मंत्रियों से इस्तीफ ा दिलवाने तक जाएंगे इसका अनुमान शायद ही किसी ने लगाया होगा। चन्द्रबाबू नायडू की समस्याओं और परेशानियों को समझा जा सकता है। पिछली यूपीए सरकार ने जब आनन-फानन में राज्य का विभाजन किया तो आंध्र के हिस्से से बहुत कुछ चला गया। उस समय उससे 19 वायदे किए गए थे। आंध्र राजस्व की कमी से जूझ रहा है इसमें कोई दो राय नहीं। उसे भारी वित्तीय सहायता तथा अपने पैरों पर खड़े होने तक लगातार केन्द्र सरकार के सहयोग की आवश्यकता है इससे भी कोई इन्कार नहीं कर सकता। ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार इस स्थिति को समझ नहीं रही है। उसने पूरी सहायता का वायदा किया और कुछ किया भी है। वित्त मंत्री अरुण जेतली ने कहा भी कि राज्य के राजस्व घाटे की पूर्ति के संबंध में केंद्र 4000 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुका है और सिर्फ 138 करोड़ रुपये बाकी हैं। राजधानी अमरावती को विकसित करने के लिए भी केन्द्र ने सहायता दी ही है। वस्तुत: चन्द्रबाबू नायडू एवं तेलुगू देशम पार्टी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रही है। इसके बारे में जेतली का कहना था कि जिस समय विभाजन हुआ था उस समय इसकी व्यवस्था थी लेकिन 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट स्वीकार किए जाने के बाद यह खत्म कर दी गई है। यही सच भी है। अब यह सुविधा सिर्फ  पूर्वोत्तर और तीन पर्वतीय राज्यों तक ही सीमित है। पहले के प्रावधानों में जिन राज्यों को विशेष दर्जा मिला हुआ है उन्हें केन्द्र से सहायता के रूप में 90 प्रतिशत राशि मिलती है। वैसे भी अगर सरकार विशेष राज्य के दर्जे के प्रावधान के लिए संविधान में संशोधन करती है तो फि र उसके लिए समस्याएं बढ़ जाएंगी। आंध्र प्रदेश इस मामले में अकेला राज्य नहीं होगा। कई राज्य पहले से इस मांग की कतार में हैं। वे सब आगे आएंगे और ऐसा करना संभव नहीं होगा। इसलिए व्यावहारिक तौर पर भी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देना संभव नहीं लगता। यह बात आंध्रप्रदेश के नेताओं को समझनी चाहिए। हालांकि इस समय कांग्रेस पार्टी आंध्र प्रदेश के नेताओं के पक्ष में बोल रही है किंतु आपने जब विभाजन किया तभी ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं कर दी? वास्तव में कांग्रेस का रुख केवल राजनीतिक है। यह तो हम मानते हैं कि आंध्र प्रदेश का विभाजन गलत तरीके से हुआ। लेकिन जो हो गया उसे पलटना अब संभव नहीं है। तो जो है उसे ठीक करने की आवश्यकता है। कोई केन्द्र सरकार इससे आंखें नहीं मूंद सकती। तो रास्ता क्या हो सकता है?
चन्द्रबाबू नायडू इस समय केन्द्र की कई प्रकार से जो शिकायत कर रहे हैं उसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं है। ऐसी स्थितियों में यह स्वाभाविक है। वे कह रहे हैं कि केन्द्र पूर्वोत्तर का हाथ थामे हुए है, वहां औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन उसी तरह वह आंध्र प्रदेश का हाथ नहीं थाम रही है। यह एक भावुक अपील जैसी है। चन्द्रबाबू की समस्या वित्तीय एवं आर्थिक के साथ राजनीतिक भी है। उन्हें अपने प्रदेश की जनता को जवाब देना है कि आखिर राजग में होने के बावजूद उनके प्रदेश को क्या मिला? इसलिए वे दिखाना चाहते हैं कि हमने केन्द्र से जितना संभव था पाने का प्रयास किया, इसके लिए संघर्ष भी किया एवं न मिलने पर सरकार से अलग हो गए। विपक्षी दल उन पर आरोप लगा रहे हैं कि केन्द्र सरकार में होने के बावजूद चन्द्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिलवा सके। इसका दबाव भी उन पर है। आखिर उन्हें भी चुनाव में जाना है। किंतु राजनीति ही सब कुछ नहीं होती। आपको राज्य का हित चाहिए तो फि र केन्द्र की ओर से जो आफ र दिया जा रहा है उसे स्वीकार करना चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि जो मोदी सरकार दे रही है कल की कोई अन्य सरकार उससे ज्यादा दे देगी। आखिर मोदी एवं जेतली आंध्र प्रदेश के साथ अन्याय क्याें होने देना चाहेंगे? इसमें उनकी कौन सी राजनीति सधनी है? उनका राजनीतिक हित भी तो इसी में है कि आंध्र प्रदेश के लोग समझें कि केन्द्र सरकार उनके साथ खड़ी है तथा हर संभव सहायता कर रही है। ऐसा संदेश नहीं गया तो फि र जनता केन्द्र सरकार के खिलाफ  हो जाएगी। इसलिए बेहतर और व्यावहारिक रास्ता यही लगता है कि चन्द्रबाबू नायडू विशेष राज्य का दर्जा पाने की असंभव कोशिश से पीछे हटें। उसकी जगह विशेष पैकेज को स्वीकार करें। जो कुछ उन्हें चाहिए उसका पूरा खाका बनाकर केन्द्र को प्रस्तुत करें। फि र देखें कि केन्द्र क्या करता है। यदि उसके बाद केन्द्र उनके साथ नहीं आता है तब उसे दोषी माना जाएगा। जब केन्द्रीय वित्त मंत्री आपकी समस्याओं को स्वीकार कर रहे हैं, वे कह रहे हैं कि विशेष राज्य का नाम बदलकर उसके अनुरूप सहायता विशेष पैकेज के नाम पर देंगे तो फि र इसे स्वीकार करने में हर्ज नहीं होनी चाहिए। जहां तक राजनीति का सवाल है तो आंध्र प्रदेश में भाजपा के साथ आने के लिए जगमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस तैयार बैठी है। इसलिए भाजपा को तो प्रदेश में एक सशक्त साझेदार मिल जाएगा, तेलुगू देशम को ही साझेदार मिलने में कठिनाई होगी।