गेहूं की खरीद पर नया संकट

पंजाब में एक सरकारी खरीद एजेंसी पनसप द्वारा प्रदेश के पांच ज़िलों में चालू रबी मौसम की गेहूं की फसल की खरीद न किये जाने की घोषणा पहले से ही परेशानी में जी रहे किसानों के लिए एक और आघात जैसी हो सकती है। ये ज़िले फरीदकोट, मुक्तसर, मोगा, मानसा और तरनतारन हैं। पहले चार ज़िले मालवा क्षेत्र में पड़ते हैं, जबकि तरनतारन माझा क्षेत्र का ज़िला है। पनसप ने इसके लिए स्टाफ और सामान आदि की कमी को बड़ा कारण बताया है। एजेंसी ने पूरे प्रदेश में गेहूं खरीद केन्द्रों में भी कमी करने का फैसला किया है। इस फैसले के अनुसार अब केवल 350 केन्द्रों पर ही उसकी ओर से खरीद की जायेगी। खरीद एजेंसी ने अपने इस फैसले से सरकार के सम्बद्ध विभागों को अवगत करा दिया है। इस फैसले का अभी से व्यापक असर दिखना शुरू हो गया है। इससे दूसरी खरीद एजेंसियां और खरीद की कवायद से जुड़े अदारे भी प्रभावित हुए हैं। दूसरी खरीद एजेंसियां इसलिए भी असमंजस में हैं कि इन ज़िलों की मंडियों में आने वाले गेहूं के पूरे स्टाक की खरीद कैसे और किसकी ओर से मुकम्मल होगी।पंजाब में प्राय: पहली जनवरी से गेहूं की फसल की आमद शुरू हो जाती है हालांकि गेहूं की विधिवत् कटाई वैशाखी के दिन से करना शुभ माना गया है। इस स्थिति में किसानों  के लिए परेशानी एवं संकटपूर्ण स्थितियों का पैदा होना बहुत स्वाभाविक है। यह फैसला यदि लागू होता है तो किसान की सोने रंगी फसल के मंडियों के खुले प्रांगणों में पड़े-पड़े खराब हो जाने की बड़ी सम्भावना है। पंजाब की कृषि और किसान पहले ही इस प्रकार की समस्याओं से जूझ रहे हैं। पंजाब की कृषि के कारण ही देश आज खाद्यान्न के मामले में आत्म-निर्भर हुआ है, परन्तु सरकारी प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही और काला-बाज़ारियों की मिलीभुगत के कारण प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये का लाखों टन अनाज बिना छत वाले गोदामों में पड़े-पड़े धूप और वर्षा के कारण खराब हो जाता है। इससे एक ओर जहां सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगता है, वहीं इतनी बड़ी मात्रा में गेहूं खराब होने से देश के कुछ सुदूर हिस्सों में भूख और कुपोषण की समस्या और घनी एवं गम्भीर होने लगती है। देश और खासतौर पर पंजाब में गेहूं के भंडारों के की जगहों पर प्रत्येक वर्ष खराब होने की स्थिति का आलम यह है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि इस प्रकार गेहूं को खराब होने देने से बेहतर है कि इसे कमी वाले प्रदेशों में मुफ्त बांट दिया जाए। इससे कम से कम खराब हो गये अन्न भण्डार को उठवाने पर होने वाले अतिरिक्त खर्च से तो बचा जा सकेगा, परन्तु आज स्थिति यह हो गई है कि एक ओर गेहूं खुले भंडार गृहों में पड़ा-पड़ा सड़-गल रहा है, वहीं गोदामों एवं धान मिलों से खाद्यान्न भण्डारों के चोरी होने की घटनाएं भी बढ़ने लगी हैं। पिछले दिनों मोगा से चुराई गई धान की बोरियां तरनतारन से बरामद किये जाने और इस संबंध में आठ लोगों को गिरफ्तार किये जाने का समाचार भी  मिला था।पनसप ने बेशक गेहूं की खरीद कम किये जाने के अपने पैसले के पीछे स्टाफ एवं सामान की कमी को कारण बताया है, परन्तु हकीकत यह है कि खरीद एजेंसियों के पास खरीदे गए गेहूं का भंडारण करने की समुचित व्यवस्था न होने के कारण, बाद में उपजने वाली परेशानियों से बचने के लिए यह फैसला लिया गया प्रतीत होता है। इन एजेंसियों के अनुसार खाद्यान्न के खराब होने अथवा इसके चोरी हो जाने की घटनाओं से बदनामी तो होती ही है न। गेहूं एवं धान की रिकार्ड खरीद के बाद, इसके भंडारण की कमी से संकट की मौजूदगी तो स्वयं केन्द्र सरकार ने भी स्वीकार की है। एक केन्द्रीय राज्य मंत्री ने पिछले दिनों यह स्वीकार किया कि खुले गोदामों में गेहूं के बार-बार खराब होने का कुछ दोष सरकारों का भी है। पंजाब एक बड़ा कृषि प्रधान राज्य है। पंजाब की कृषि ने प्रत्येक वर्ष गेहूं और धन का रिकार्ड उत्पादन किया है, परन्तु कृषि और किसानों की त्रासदी यह है कि लाख यत्नों के बावजूद इन दोनों की सेहत सुधर नहीं रही। प्रदेश का किसान आत्महत्या करने पर विवश है, तो कृषि व्यवसाय घाटे का सौदा बनता जा रहा है। बढ़ते परिवारों के कारण ज़मीनें बटने और उनका रकबा घटने से भी कृषि पर संकट बढ़ा है।हम समझते हैं कि देश और खासतौर पर पंजाब प्रदेश की कृषि एवं किसान को इस संकट से उभारने के लिए जहां गम्भीरता से नये नीति-निर्धारण की ज़रूरत है, वहीं कृषि को सम्पूर्ण धरातल पर लाभ-प्रद व्यवसाय बनाया जाना भी बहुत ज़रूरी है। ऐसा चाहे कृषि बीमा से हो अथवा किसी अन्य ढंग से, किसान को उसकी उपज का सही मूल्य दिलवाने की व्यवस्था लाज़िमी तौर पर होनी चाहिए। कृषि उपज के बीमा की व्यवस्था भी कुछ इस तरह से होनी चाहिए कि किसी आपदा के कारण यदि उसकी फसल खराब भी होती है, तो उसे कम से कम उसकी उत्पादन लागत तो अवश्य मिलनी चाहिए। कृषि व्यवसाय में उसके उत्पादन के मंडीकरण की व्यवस्था भी उतनी ही लाज़िमी होती है। वर्तमान में पनसप द्वारा गेहूं खरीद पर किया गया फैसला मंडीकरण की दुरावस्था का ही परिणाम है। पंजाब में प्रत्येक वर्ष जितना खाद्यान्न आंधी-वर्षा-धूप से नष्ट हो जाता है, उतने से तो कई-कई बार ढके हुए गोदामों की व्यवस्था की जा सकती है। यदि अब तक यह कार्य नहीं हो पाया, तो इसके पीछे प्रशासनिक तंत्र और काला-बाज़ारियों की मिलीभुगत ही हो सकती है। हम समझते हैं कि केन्द्र सरकार को इस मामले में स्वयं आगे आना चाहिए और जितनी शीघ्र हो सके, पंजाब में खाद्यान्न भण्डारण हेतु उच्च किस्म के गोदामों की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए। इससे पूरे देश का हित सधता है। प्रदेश और देश की सरकारें जितनी शीघ्र इस समस्या का हल करेंगी, उतना ही यह देश के हित में रहेगा।