ऋण माफी की चुनौती

गत दिनों मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह द्वारा नकोदर में 29,000 किसानों का 162 करोड़ का ऋण माफ कर दिया गया। इस तरह उन्होंने अपने पहले दिए बयान कि बजट सत्र से पूर्व किसानों की ऋण माफी संबंधी अगली किस्त जारी कर दी जायेगी, को पूरा करने का प्रयास किया है। कुछ ज़िलों के किसानों के 2 लाख तक के ऋण माफ करने की योजना के अधीन नकोदर में हुए समारोह में उन किसानों को शामिल किया गया था, जिन्होंने सहकारी बैंकों से ऋण लिए हुए थे। इस तरह किसानों को आढ़तियों तथा अन्य बैंकों से लिए गए ऋणों संबंधी किसी तरह की राहत नहीं दी गई। लाभपात्रियों में से यदि किसी ने कुछ हज़ार की राशि का ऋण सहकारी बैंक से लिया था, तो उसको महत्व दिया गया है। इससे कितने किसानों को किस स्तर तक संतुष्टि मिल सकेगी, यह देखना शेष होगा। विधानसभा चुनावों से पूर्व मुख्यमंत्री ने बार-बार किसानों के सारे ऋणों को माफ करने की बात की थी परन्तु चुनावों के बाद वास्तविकता को देखते हुए और व्यवहारिक कदम उठाते हुए पंजाब सरकार ने अक्तूबर, 2017 को नोटिसफिकेशन जारी किया था, जिसमें समूचे कृषि ऋणों पर लकीर खींचने  की बजाय किसानों को 9500 करोड़ रुपए की राशि बांटने का ऐलान किया गया था। परन्तु बाद में सरकार इससे भी पलट गई और एक और नोटिसफिकेशन जारी कर दिया, जिसमें ऋण माफी संबंधी प्रक्रिया को पुन: शुरू किया गया था। इसमें ऋण माफी संबंधी शर्तों को और भी कड़ा कर दिया गया था तथा यह भी विस्तार दिया गया था कि सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी संस्थानों, बोर्डों, कार्पोरेशनों, राज्य और केन्द्र के पैंशनरों तथा आयकर देने वाले किसानों को ऋण माफी की योजना से बाहर रखा जायेगा और इसी तरह वह किसान भी इससे बाहर कर दिए गए, जिनके पास अढ़ाई एकड़ से अधिक भूमि है। इस तरह सरकार ने अपनी पहले घोषित राशि को स्वयं ही बड़ी सीमा तक कम कर लिया और अब सरकार अलग-अलग स्थानों पर समारोह करके सीमित किसानों को राहत देने की कोशिश कर रही है। सरकार ने पंजाब के किसान ऋणों के बारे में निजी साहूकारों के साथ समझौतों के लिए मई, 2016 में एक सैटलमेंट फोरम बनाने का ऐलान किया था, जिस संबंधी नई सरकार ने तीन मंत्रियों की एक कमेटी भी बनाई थी, जिसने ऐसा फोरम बनाने के बारे में विचार करना था। परन्तु इस कमेटी की किसी तरह की कोई कार्रवाई या रिपोर्ट सामने नहीं आई। अब 29,000 किसानों का सहकारी बैंकों का जो 162 करोड़ रुपए का ऋण माफ किया गया है, उससे यह किसान ऋण मुक्त नहीं हुए, क्योंकि उन पर अन्य बैंकों के तथा आढ़तियों के ऋण अभी शेष हैं। ऐसी घोषणाओं और योजनाओं के चलते हुए सहकारी बैंक भी संकट में फंसे नज़र आते हैं, क्योंकि किसानों ने उनके ऋण लौटाने बंद कर दिए हैं या बेहद कम कर दिए हैं। राज्य के सहकारी बैंकों द्वारा 11,500 करोड़ रुपए का एडवांस ऋण किसानों को दिया जा रहा था। सहकारी बैंकों द्वारा इस राशि का बड़ा हिस्सा नाबार्ड एजेंसी से हर वर्ष ऋण लेकर इसका आगे किसानों को ऋण के रूप में यह राशि दी जाती थी। परन्तु सरकार की ऋण राहत योजना के कारण सहकारी बैंक दिया ऋण वापिस न आने के कारण संकट में फंसे नज़र आते हैं।इन राशि आवंटन समारोहों का भविष्य में सहकारी बैंकों पर क्या असर पड़ेगा, इसकी भी बड़ी चिन्ता बनी नज़र आती है, जिसने एक बार तो पहले से चलते असली ऋण के समूचे प्रबंध को ही पटरी से उतार दिया प्रतीत होता है और अब यह भी सवाल खड़ा हो गया है कि अपने ऋण माफी के वायदे पर सरकार कितनी कायम रह सकेगी, क्योंकि उसकी योजनाएं बड़े किसानी वर्ग को सही अर्थों में राहत पहुंचाने में असमर्थ प्रतीत होती हैं, जिसकी प्रतिक्रिया आगामी समय में सरकार के समक्ष बड़ी चुनौतियां पैदा कर सकती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द