पंजाब की मौजूदा स्थितियां अकाली दल को कर रही हैं उत्साहित

अकाली दल बादल विधानसभा चुनावों में हुई हार से चाहे परेशान है, परन्तु कांग्रेस द्वारा किए वायदे पूरे करने में हो रही देरी और आम आदमी पार्टी के बदले प्रभाव के कारण अकाली दल में उत्साह भी है। अकाली दल में यह विचार-चर्चा बहुत गम्भीरता से चल रही है कि अकाली दल इस स्थिति में अपनी हालत कैसे सुधारे। अकाली दल के लिए राजनीतिक तौर पर सामने आने वाली पहली चुनौती पूर्व मंत्री स. अजीत सिंह कोहाड़ की मौत के कारण खाली हुई शाहकोट विधानसभा सीट को उप-चुनाव में बचाना होगा। हालांकि उप-चुनाव में आमतौर पर सत्ता पक्ष का हाथ ऊपर रहता है, परन्तु यह सीट अकाली दल का केन्द्र मानी जाती है। स. कोहाड़ लगातार पांच बार विधायक रहे हैं। 
इस सीट पर अकाली दल के लिए राहत की बात यह है कि इस सीट पर टिकट को लेकर किसी तरह का विरोध नहीं होगा। यहां से स्वर्गीय मंत्री स. कोहाड़ के बेटे या पौत्र को अकाली उम्मीदवार बनाये जाने की ज्यादा सम्भावनाएं हैं। एक यूथ अकाली दल नेता द्वारा भी दावेदारी जताई जा रही है। चाहे अभी इस सीट के लिए तिथि की घोषणा होने में काफी समय है, परन्तु अकाली दल अपनी इस मज़बूत सीट को बचाने के लिए पूरी शक्ति लगा देगा। 
2019 के लिए अकाली दल की रणनीति
अकाली दल चाहे शाहकोट विधानसभा सीट पर पूरा जोर लगायेगा परन्तु उसके लिए 2019 के लोकसभा चुनावों में वापिसी की रणनीति बनानी आवश्यक प्रतीत हो रही है। यही कारण है कि अकाली दल जहां एक तरफ अपने सिख आधार को पुन: प्राप्त करने की कोशिशों में लगा हुआ है, वहीं उसने किसानों के मुद्दों को प्रमुख मुद्दों के तौर पर उभारने का फैसला कर लिया है। परन्तु अकाली दल के लिए चिन्ता की बात यह है कि यदि गेहूं की आगामी फसल के लिए केन्द्र सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) में नाममात्र वृद्धि की गई तो अकाली दल को उसका विरोध करना पड़ेगा, क्योंकि केन्द्र में विरोधी सरकार होने के कारण मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के लिए गेहूं का मूल्य कम ऐलान किये जाने पर विरोध करना मुश्किल नहीं होगा। इसलिए समझा जा रहा है कि अकाली दल द्वारा बनाई वरिष्ठ अकाली नेताओं की कमेटी जिसका नेतृत्व स्वयं स. सुखबीर सिंह बादल कर रहे हैं, केन्द्रीय मंत्रियों को मिलकर गेहूं का अच्छा मूल्य देने के लिए इसका श्रेय लेने की कोशिश भी करेगी। इसके साथ-साथ ही अकाली दल अब पंजाब से बाहरी सिखों के मामलों की ओर भी ज्यादा ध्यान देगा और भाजपा सरकार को 2019 में सिख वोट और पंजाब की सीटें जीतने के लिए इन मामलों को हल करने के लिए दबाव भी बनायेगा। समझा जाता है कि अकाली दल अब समझता है कि उत्तर प्रदेश तथा बिहार में उप-चुनावों में हार तथा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू के सरकार से निकल जाने के कारण स्थिति काफी बदल गई है और अब भाजपा की केन्द्र सरकार अकाली दल और सिख वोट को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकेगी।
भाजपा के साथ गठबंधन जारी रहेगा
यह भी लगभग स्पष्ट है कि अकाली दल का भाजपा के साथ गठबंधन जारी रहेगा। यही कारण है कि अकाली दल की कोर कमेटी की बैठक में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की पंजाब यात्रा और सिखों को सम्मान देने का धन्यवाद देते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की तो कड़ी आलोचना की गई है और उनके द्वारा जस्टिन ट्रूडो के साथ उठाये मामलों को कड़वे और अधिकार क्षेत्र से बाहरी मामले करार दिया गया। परन्तु केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जस्टिन ट्रूडो के प्रति दिखाए गए ठण्डे रवैये के बारे में एक शब्द नहीं कहा गया, जबकि हमारी जानकारी के अनुसार अकाली दल की कोर कमेटी में कुछ सदस्य भाजपा के कैनेडियन प्रधानमंत्री के प्रति रवैये के खिलाफ भी थे। 
प्रकाश सिंह बादल द्वारा इन्कार
विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार केन्द्र सरकार द्वारा अकाली दल को लगातार उपेक्षित किए जाने से कई अकाली नेता बहुत परेशान हैं। स्वयं स. सुखबीर सिंह बादल ने तो दिल्ली में कुछ अकाली नेताओं को आर.एस.एस. खासतौर पर राष्ट्रीय सिख संगत के कार्यक्रमों में जाने से रोक दिया था। परन्तु पता चला कि जब इसका पता स. प्रकाश सिंह बादल को चला तो उन्होंने सुखबीर सिंह बादल को भाजपा विरोधी रवैये अपनाने से रोक दिया था। पता चला है कि अब जब भी कोई वरिष्ठ अकाली नेता सुखबीर सिंह बादल के साथ भाजपा के विरोध में कोई बात करता है, तो वह यह कह देते हैं कि इसके बारे में बड़े बादल साहब के साथ बात कर लें।
खैहरा का अगला निशाना कौन?
पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता और आम आदमी पार्टी के विधानसभा गुट के प्रमुख सुखपाल सिंह खैहरा द्वारा रेत खनन के मामले में कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह के खिलाफ चलाई मुहिम के बाद उनको अंतत: अपनी मंत्रिमंडल की कुर्सी से इस्तीफा देना पड़ा था। आजकल रेत के मामले में ही कैबिनेट मंत्री स. चरणजीत सिंह चन्नी खैहरा के निशाने पर हैं। इस मामले के अलावा चन्नी की स्थिति इन समाचारों से भी काफी खराब हुई है कि कैबिनेट बैठक में उनको कालोनियों के मामले में बोलने से रोक दिया गया। परन्तु राजनीतिक क्षेत्रों में इस बात की ज्यादा चर्चा है कि खैहरा के निशाने पर चन्नी के बाद कौन होगा? कुछ सूत्रों के अनुसार खैहरा अब रेत के अलावा अन्य विभागों में हो रही अनियमितताओं को बहुत अच्छी तरह से देख रहे हैं और उनका अगला निशाना बनने वाला मंत्री रेत से संबंधित मंत्री नहीं होगा बल्कि किसी नये मामले से संबंधित होगा। 
मंत्रियों में निराशा
राजनीतिक क्षेत्रों में यह चर्चा बहुत शिखर पर है कि पंजाब मंत्रिमंडल के कुछ मंत्रियों में पंजाब में कांग्रेस सरकार बनने के बाद भी बादल परिवार के बढ़ते व्यापार और सरकारी अधिकारियों द्वारा उनको दिए जाते मान-सम्मान को लेकर काफी निराशा है। पता चला है कि पूर्व कैबिनेट बैठक के बाद भी कुछ मंत्रियों जिनमें नवजोत सिंह सिद्धू, मनप्रीत सिंह बादल तथा तृप्त राजिन्द्र सिंह बाजवा के नाम लिए जाते हैं, ने इसके बारे में मुख्यमंत्री के साथ बात भी की है। परन्तु पता चला है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह इसके बारे में चुप ही रहे। उन्होंने उनकी बात तो सुन ली, परन्तु कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जबकि इससे पहले भी कई दर्जन विधायक कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को पूर्व मंत्री विक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए लिखकर दे चुके थे। परन्तु मुख्यमंत्री ने उस पत्र को भी उपेक्षित कर दिया था। 
पता चला है कि चाहे इस स्थिति पर यह मंत्री और विधायक मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ भी बोलने के लिए तो तैयार नहीं परन्तु उनमें इस स्थिति को लेकर निराशा अवश्य फैल रही है। 

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