उत्तर-पूर्वी राज्यों के बारे में अपनाया जाए सही दृष्टिकोण

 


अक्सर जब भारत के उत्तर पूर्व राज्यों का जिक्र होता है तो बस इस बात का कि यहां के निवासी जंगलों में बसने वाले आदिवासी हैं, वे सुंदर और आकर्षक होते हैं, उनकी नृत्य शैली उत्तेजक होती है, उनके वस्त्र परंपरागत होते हैं, उनका खानपान अलग होता है आदि आदि। इसके साथ एक सच यह है कि जब कभी देसी विदेशी मेहमानों का मनोरंजन करना होता है तो उन्हें आदिवासी नृत्य करने के लिए शो पीस की तरह बुलाया जाता है और फि र वापिस भेज दिया जाता है।
एक बार प्रगति मैदान में ट्रेड फेयर में नागालैंड और मणिपुर के कुछ कलाकार मिल गए। उनसे बातचीत करते हुए लगा कि वे नाराज़गी और गुस्से से भरे हैं। बातों-बातों में उन्होंने कहा कि आपके पास तो सब कुछ है सड़कें हैं, आने-जाने के बढ़िया साधन हैं, रहने को शानदार और सब तरह की सुविधाओं वाले घर हैं, स्कूल, अस्पताल हैं, यहां तो मज़े ही मज़े हैं। आगे कहा कि ऐसा लगता है कि हम इस देश के नहीं हैं और आप लोग हमें केवल सजावट या दिखावटी या सिर्फ  आमोद-प्रमोद की वस्तु समझते हैं। मैं सफ ाई देने के लिए कुछ कहने को हुआ तो उन्होंने बोलने का मौका दिए बिना कहा कि हमारे यहां पीने का पानी लाने में कई घंटे लगते हैं कहीं जाना हो तो ऊबड़-खाबड़ खतरनाक रास्ते और टूटी-फू टी बसें हैं। बीमार पड़ने पर जड़ी-बूटी से इलाज करते हैं, स्कूल के नाम पर मजाक होता है। उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली जैसे शहरों में आओ और यहां भी हमारे साथ कोई ठीक से व्यवहार नहीं करता। आपके बड़े  शहरों में हमारे यहां के लड़कों और लड़कियों से जो दुर्व्यवहार होता उसकी खबरें जब हम तक पहुंचती हैं तो हमें आपसे और सरकार से नफ रत होती है।
इन सब बातों से एक बात तो समझ में आ ही जाती है कि जब उत्तर पूर्वी राज्यों के भारत से अलग होने की आवाज़ सुनाई देती है तो उसके पीछे ज्यादातर बाकी देश द्वारा की गई उनकी उपेक्षा है, वहां विकास का न होना और उन लोगों के प्रति हमारा अज्ञान है। केंद्र की सरकारों द्वारा उनके साथ की गई भेदभाव और अलगाव की नीति के चलते ही वहां उग्रवादी संगठनों को ताकत मिलती गई, चीन का दखल बढ़ता गया और स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दल बनते गए जो अपने को भारतीय मानने से भी गुरेज करने लगे और आज़ाद होने की मांग तक होती रही। यह जो पिछले कुछ वर्षों से वहां सत्ता परिवर्तन की लहर चली है, वह वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा उनकी दुखती नब्ज को पहचान लेने और उनके कंधे पर सहानुभूति भरा हाथ रखने की वजह से ही संभव हो पाया है जिस पर किसी अन्य सरकार का कभी ध्यान नहीं गया।
हकीकत
अपने व्यवसाय पत्रकारिता और फि ल्म निर्माण के लिए अनेक बार उत्तर-पूर्वी राज्यों में जाने का अवसर मिला। जब भी जाना हुआ तो यह देख कर दुख ही होता था कि या तो सब कुछ पहले जैसा ही है या उसमें और भी गिरावट आ गई है। ऐसा बहुत कम लगा कि इन राज्यों के निवासियों की जीवनशैली, रहन सहन, व्यवसाय, रोज़गार या फि र जीवन के लिए ज़रूरी संसाधनों की आपूर्ति में कोई अंतर आया है।
आवागमन के सुगम और पर्याप्त साधनों का अभाव पहले की तरह था, खान-पान और रहने की व्यवस्था भी ज्यादा नहीं बदली। हालांकि पर्यटन में वृद्धि होने के कारण होटल व्यवसाय खुशहाली की तस्वीर लगा। अंधेरा होने के बाद कुछ राज्यों में निकलना अभी भी निरापद नहीं है, खतरा महसूस होता है। वाहनों की जबरदस्त चेकिंग और बाहर से आए लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए होटलों या घरों में कैद होने जैसी हालत में रहना पड़ता है।
कृषि और उद्योग
मेघालय, नागालैंड में आज भी अधिकतर खेती-बाड़ी झूम पद्धति के आधार पर  होती है  जिसमें जंगलों को काटकार  खेती करने योग्य बनाया जाता है। पहले जंगल काटने की बारी 30 से 40 साल बाद आती थी इसलिए इस अवधि में धरती फि र से उर्वरा हो जाती थी और जंगल काट कर वहां खेती-बाड़ी करना लाभकारी होता था। अब यह अवधि 3 से 4 साल की रह गई है और इससे पहले कि जमीन अपनी उपजाऊ शक्ति फि र से प्राप्त करें, उस पर पैदा हुए जंगल अविकसित अवस्था में ही काट दिए जाते हैं। झूम खेती का विकल्प आज तक पूरी तरह संभव नहीं हो सका। हालांकि डॉक्टर स्वामीनाथन जैसे वैज्ञानिकों ने इस बारे में बहुत काम किया और सरकारों को अपनी रिपोर्ट में सार्थक सुझाव भी दिए लेकिन सरकार तो अपने नाम के अनुरूप धीरे-धीरे सरक-सरक  कर काम करती है।
कृषि के साथ उत्तर पूर्वी राज्यों में जो सबसे बड़ा उद्योग पनप सकता है, वह है फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री। इस क्षेत्र में इतनी अपार संभावनाएं हैं कि न केवल जबरदस्त रोज़गार सृजन हो सकता है, बल्कि अतिरिक्त खाद्य पदार्थों को सड़ने-गलने और गहरी खाईयों में फेंक देने से भी बचाया जा सकता है। यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि यह उद्योग कितनी अधिक देशी विदेशी मुद्रा कमा सकता है।  एक तीसरी चीज़ जो यहां प्रचुर मात्रा में मिलती है, वह यहां मिलने वाली हैं अनमोल जड़ी-बूटियां हैं। इनकी उपयोगिता इसी बात से समझ में आ सकती है कि इनकी विशाल पैमाने पर तस्करी होती है जिसमें ज्यादातर विदेशी स्मगलर हैं।
प्राकृतिक समृद्धि
उत्तर पूर्व बेशकीमती खनिज स्त्रोतों का भंडार है। यहां देश का आधा तेल भंडार उपलब्ध है। शायद ही कोई खनिज हो जो उत्तर पूर्व में उपलब्ध न हो, तेल, कोयला, लाईम ग्रेनाइट, कॉपर, डोलोमाईट, ग्रेनाइट, अभ्रक आयरन, सल्फ र सब कुछ है।
चाय बागान तो विश्व प्रसिद्ध हैं। उनके साथ मसालों का भी भरपूर भंडार है। इलायची की तो सबसे अधिक उपज सिक्किम जैसे छोटे से राज्य में होती है। मिजोरम अदरक का भंडार है। सब कुछ तो है यहां लेकिन सरकारों की अदूरदर्शिता, नीतियों की खामियों और केवल इस क्षेत्र  को पिछड़ेपन का प्रतीक बनाए रखना ही नॉर्थ-ईस्ट की विडंबना है।
इन सब बातों का केवल एक मतलब है और वह यह है कि यह जो सत्ता परिवर्तन की लहर दिखाई दी है। यदि उससे इस क्षेत्र में विकास की लहर नहीं पनपी तो फि र पांच वर्ष बाद सत्ता परिवर्तन होने से कोई नहीं रोक सकता।  इसका कारण भी साफ  है कि अब यहां के लोग पिछड़ेपन का नहीं, विकास का प्रतीक बनना चाहते हैं। इसका एक कारण यह है कि साक्षरता दर यहां के सभी राज्यों में काफ ी अच्छी है और पढ़ लिखकर ही समझदारी आती है, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती।
क्या जरूरी है?
उत्तर-पूर्वी राज्यों पर जबरदस्ती का पिछड़ापन लादा जाता रहा है और उन्हें उसी हालत में बनाए रखने में पता नहीं सरकारों और प्रशासन का क्या लाभ है, यह समझ से परे है। सबसे पहले सभी राज्यों को आपस में सड़क और वायु मार्ग से जोड़ दिया जाए तो एक दूसरे के संसाधनों का बेहतरीन इस्तेमाल किया जा सकता है। वहां की भौगोलिक परिस्थिति कुछ ऐसी है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में आना-जाना काफी कठिन है। इसलिए वहां कुछ ऐसे यातायात मार्ग जिसमें सड़क के अतिरिक्त रेलमार्ग और वायु मार्ग को बड़े पैमाने पर विकसित करने की ज़रूरत है। यह न केवल सस्ता होना चाहिए, बल्कि सुविधाजनक भी हो।
दूसरी चीज यह कि तेल और खनिज पदार्थों का अनावश्यक दोहन बंद होना चाहिए और ऐसे नियम तथा कानून बनने चाहिए जिससे प्राकृतिक वनस्पतियाें, जड़ी- बूटियों की तस्करी असंभव हो जाए।  तीसरी जरूरी चीज़ यह है कि स्थानीय स्तर पर रोज़गार सृजन अधिक से अधिक हो। अभी तक तो यह होता है ज्यादातर युवा पीढ़ी उच्च शिक्षा के लिए अन्य शहरों में जाती है तो वह वहीं बस जाने को प्राथमिकता देती है, क्योंकि उनके प्रदेश में उनके लायक रोज़गार उपलब्ध नहीं है। यदि इन प्रदेशों में उनकी योग्यता के अनुरूप उद्योग धन्धे और व्यवसाय विकसित हो जाएं तो उच्च शिक्षा प्राप्त कर वे अपने प्रदेश में ही नौकरी या व्यवसाय कर सकेंगे। अगर ये तीन काम हो जाएं तो फि र उत्तर-पूर्व का देश का सिरमौर बनना निश्चित है।