पाकिस्तान की जम्हूरियत के कफन में अंतिम कील


               

भविष्य के नज़रिये से अगर देखा जाए तो पाकिस्तान का प्रजातंत्र जो पहले ही लड़खड़ाता हुआ चल रहा है, उसको अंतिम श्वास तक ले जाने का कार्य हाफिज़ सईद के ज़िम्मे लगता है। हाफिज़ सईद ने संसार भर के देशों की आंखों में धूल झोंकने के लिए अपने आतंकवादी होने के ठप्पे से मुक्ति पाने के लिए राजनीति के गलियारे से गुजरना ठीक समझा। हाफिज़ सईद ने मिल्ली मुस्लिम लीग नामक राजनीतिक पार्टी बनाई परन्तु पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने उसे मान्यता देने से इन्कार कर दिया तब उसने इस्लामाबाद हाईकोर्ट में अपील की जिसे मंजूर कर लिया गया और अब वह पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियों में पाकिस्तान के चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी बन गई है।
यह भी हकीकत है कि लश्कर-ए-तैयबा को आतंकवादी संगठन होने के कारण अब मुस्लिम देश भी किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं कर रहे, जिसके लिए अमरीका और भारत पूरे संसार को आतंकवाद के विरुद्ध खड़े होने के लिए आमादा कर गए। यह बात हाफिज़ सईद के आतंकवादी संगठन में बंटवारा करने का कारण बना। हमजा नामक व्यक्ति ने हाफिज़ सईद के मुकाबले पर अपना आतंकवादी संगठन खड़ा कर लिया है। इससे हाफिज़ सईद को मिलने वाली आई.एस.आई. की आर्थिक सहायता और पाकिस्तानी फौज का समर्थन भी ढीला पड़ गया है। अब हाफिज़ सईद ने एक ही रास्ता अपनाया जिससे वह पाकिस्तान के संसाधनों एवं सत्ता पर सुगमता से अधिकार जमा सके। कई पुराने राजनीतिक दलों को दरकिनार करके कट्टरवादी लोगों की पहली पसंद बनने का प्रयास कर रहा है।
हाफिज़ सईद अब दहशतगर्दी की दलाली करेगा और यदाकदा कश्मीर पर घड़ियाली आंसू भी बहाता दिखाई देगा। नवाज़ शरीफ पनामा पेपर लीक के मामले में राजनीति के परिदृश्य से हटा दिए गए। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने कई तरह की पाबंदियां नवाज़ शरीफ के राजनीतिक जीवन पर लगा दीं। यहां तक कि उनकी बेटी मरियम शरीफ पर भी ऐसी पाबंदियां लगाकर सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान के राजनीतिक क्षेत्र से एक सशक्त राजनेता को एक तरफ कर दिया है। यहीं पर बस नहीं, पिछले दिनों एक मीटिंग में उन पर जूता भी फैंका गया। यह सब उनके दल को हतोत्साह करने के लिए ही किया गया।
ऐसे में जब इमरान खान जिसने गत दिनों वहां एक कबीले की मुखिया पीर पिंकी से तीसरा विवाह रचा लिया पीर पिंकी के पहले से भी पांच बच्चे हैं। इस शादी के पीछे कहा तो यह जाता है कि पीर पिंकी का कबीला बहुत प्रभावशाली है और इमरान खान ने राजनीति की गज़र् से यह निकाह किया। अब रही बात जनरल परवेज़ मुशर्रफ जो मरहूमा बेनज़ीर की हत्या के आरोप में देश से फरार हो चुके हैं, वह भी पाकिस्तान में आकर चुनाव लड़ने की जुगत तलाश रहे हैं? उन्होंने कहा भी कि वह हाफिज़ सईद को बहुत पसंद करते हैं और ओसामा बिन लादेन को अपना हीरो मानते हैं। पाकिस्तान ने ऐसा लगता है कि राजनीतिक माहौल वीरान सा दिखाई देता है। इसका लाभ उठाने के लिए हाफिज़ सईद लंगर-लंगोटे कस कर चुनावी मैदान में उतर रहा है। जम्हूरियत के लिए यह एक मज़ाक ही होगा कि जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित व्यक्ति जिसके सिर पर एक करोड़ से अधिक डॉलर का इनाम रखा गया हो वह पाकिस्तान के बज़ीर-ए-आज़म बनने के लिए कई तरह के हथकंडे प्रयोग कर रहा है।
हाफिज़ सईद जिसने हज़ारों बेगुनाह लोगों का खून बहाया और पाकिस्तान के बेरोज़गार युवा पीढ़ी को खूनी खेल का मोहरा बनाया, वह अब लोगों से वोट मांगता नज़र आयेगा। दुनिया के बहुत से नेतागण इस बात से चिंतित हैं कि यह व्यक्ति पाकिस्तान के परमाणु शक्ति पर अधिकार करके इन्सानियत को खतरे में डाल सकता है।
पाकिस्तान के पास एक अनुमान के अनुसार 120 एटम बम हैं। परमाणु ऊर्जा बेशक इन्सान की खोज है परन्तु मौत का संदेशा देने वाले एटम बम यदि किसी दैत्य के हाथ में आ जाएं तो मानवता के लिए उससे भयानक दिन कोई हो ही नहीं सकता। हैरानी की बात तो यह है कि पाकिस्तान में हज़ारों मासूम लोग भी मारे जा चुके हैं, फिर भी वे इस राक्षस को काबू करने में असफल ही दिखाई नहीं देते, बल्कि इसे सोशल वर्कर भी कह रहे हैं। यह ठीक है कि हिन्दोस्तान को परेशान करने के लिए पाकिस्तान हाफिज़ सईद, मौलाना अज़हर मसूद और सईद सलाहूदीन जैसे लोगों को खाक और खून का खेल खेलने के लिए उकसाता रहता है। हाफिज़ सईद यदि चुनाव में उतरा और सत्ता तक पहुंच गया तो संसार के लिए ही नहीं, यह पाकिस्तान की जम्हूरियत में आखिरी कील साबित होगा।
38 साल तक फौजी शासन और 32 साल तक अवामी हकूमत रही अब पाकिस्तान के शांतिप्रिय और पड़ोसियों से दोस्ती बनाए रखने के लिए चाहवान लोगों के लिए चिंता से अधिक चिंतन का समय है, ताकि जम्हूरियत के रास्ते में हाफिज़ सईद को आगे बढ़ने से
रोका जाए।
आज हालत यह है कि नवाज़ शरीफ जैसे नेताओं में भय बनाने के लिए बम ब्लास्ट किए जायेंगे, यह पाकिस्तान की जम्हूरियत के लिए भी शुभ लक्षण नहीं। एक तरफ सेना दूसरी तरफ आतंकवादी दोनों जम्हूरियत के दुश्मन ही हैं, अब इससे अधिक क्या कहें।