मूर्तियां तोड़ना सांस्कृतिक अराजकता



पिछले सप्ताह दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। वाम मोर्चे की हार के बाद लेनिन की मूर्तियों को त्रिपुरा में गिराने के बाद देश भर में मूर्ति ध्वंस का सिलसिला शुरू हो गया। दूसरे, दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों- मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी और मायावती की बसपा ने उत्तर प्रदेश के फू लपुर और गोरखपुर में दो लोकसभा सीटों के चुनाव में हाथ मिलाने का फैसला किया। कुछ महीने पहले कोई भी यह कल्पना नहीं कर सकता था कि मुलायम और मायावती एक मंच पर आ सकते हैं।
अब मूर्ति भंजन की बात करें। त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति टूटने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति टूटी। मुखर्जी भारतीय जनता पार्टी के प्रथम संस्करण भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष थे। उनकी मूर्ति कोलकाता में तोड़ दी गई। इससे भी बदतर बात हुई। वी. रामसामी पेरियार की मूर्ति भी तोड़ दी गई। पेरियार एक बड़े सामाजिक सुधारक थे और उनके आत्म-सम्मान आंदोलन ने तमिलनाडु के इतिहास को ही बदल डाला है। अन्य सुधारों के अलावा, उन्होंने सामाजिक अन्याय और असमानता को दूर करने और जन्म नियंत्रण का प्रचार करने के उद्देश्य से आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया। वह देवदासी प्रणाली और बाल विवाह के उन्मूलन के लिए लड़े। पेरियार की तमिलनाडु में वस्तुत: पूजा की जाती है। और, यूपी में बी.आर.अंबेडकर की मूर्ति को क्यों तोड़ा जाना चाहिए? वह एक दलित प्रतीक बन गए हैं और भारत के संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उसी संविधान की शपथ लेकर सरकार चलाई जाती है।
हालांकि सोवियत संघ का पतन हो चुका है, पर लेनिन एक विश्व नेता हैं जिनकी विचारधारा ने आधी से ज्यादा दुनिया पर कभी न कभी राज किया। मॉस्को में उनका मकबरा अभी भी बरकरार है और सैकड़ों लोग वहां की यात्रा रोज करते हैं। लेनिन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को प्रभावित किया और उसके शीर्ष नेताओं को समर्थन किया। लोकमान्य तिलक की भारतीय आज़ादी में भूमिका की लेनिन ने सराहना की थी।
वास्तव में, लेनिन उस समय के शीर्ष स्तर के वैश्विक नेताओं में से एक थे, जो स्वतंत्रता संग्राम के उभरते चरण को देख सकते थे। उन्होंने तब कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन का अब अंत होने वाला है। कुछ लोग ही जानते हैं कि क्रांतिकारी भगत सिंह लेनिन के प्रशंसक थे। उन्होंने बड़े पैमाने पर लेनिन के काम को पढ़ा। फांसी पर चढ़ने से पहले भगत सिंह लेनिन को पढ़ लेना चाहते थे।