कैप्टन की सख्ती से आसमान छूने लगे रेत के भाव


जालन्धर, 16 मार्च (मेजर सिंह): पंजाब में रेत की गैर-कानूनी खुदाई विरुद्ध सरकारी सख्ती भी रेत माफिया को खूब रास आई है। सरकारी सख्ती के कारण बहुत सी जगहों से गैर-कानूनी खुदाई पर रोक लग गई है तथा अब खड्डों से सीधी टिप्परों व ट्रालियों की भराई भी कम हो गई है। अब कुछ खड्डों से ही टिप्परों द्वारा रेत शहरों मेें लाकर फेंका जा रहा है तथा शहरों में डम्प किया रेत आगे बेचा जा रहा है। रेत व्यापार से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकारी सख्ती के कारण रेत की फज़र्ी कमी पैदा हो गई है तथा रेत के भाव आसमान छूने लगे हैं। रेत व्यापार से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि 8 सैकड़े वाला एक टिप्पर जो पहले 8 हज़ार रुपए को बिकता था, उसका इस समय बाज़ार में भाव 30 हज़ार रुपए तक जा पहुंचा है। रेत बाज़ार अनुसार एक सैकड़े में सौ फुट रेत होता है। जिन लोगों के निर्माण के कार्य इस समय चल रहे हैं उनको तो मजबूरन महंगी रेत भी खरीदनी पड़ रही है परन्तु रेत की एकदम महंगाई आसमानी चढ़ने के कारण बहुत से निर्माण कार्य एकदम रुक गए हैं तथा राजमिस्त्री व दिहाड़ीदार  बेकार हो गए हैं। एक ठेकेदार ने बताया कि शहरों के चौकों में लगतीं मज़दूरों की मंडियों में अब राजमिस्त्री व दिहाड़ीदार दोपहर तक प्रतीक्षाकर घरों को खाली हाथ लौटने के लिए मजबूर हो रहे हैं। यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि यदि रेत के भाव को काबू न किया गया तो सड़कों या इमारतों के सरकारी कार्य भी ठप्प होकर रह जाएंगे क्योंकि रेत का भाव भी सरकारी कार्यों के अनुमानित उल्ट-पुल्ट कर देगा। रेत व्यापार से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि खड्डों से कौन कानूनी रेत निकाल रहा है तथा किसका गैर-कानूनी है, इस बारे शिनाख्त करना भी बड़ी समस्या है। बहुत सी जगह हालात यह हैं कि रेत माफिया से जुड़े व्यक्तियों ने खड्डों के आस-पास स्वयं ज़मीनें खरीद ली हैं या फिर दरिया के किनारों ऊपरी बेआबाद ज़मीनें खरीद रखी हैं। उनके द्वारा वे रेत की ढुलाई का धंधा चला रहे हैं। दूसरे पंजाब को कहीं भी रेत की तुलाई के लिए खड्डों में या उसके निकट कहीं भी कोई कंडे नहीं हैं जिससे रेत के भार बारे निश्चित करने का भी कोई बंदोबस्त नहीं है। एक और समस्या यह आ रही है कि खड्डों के ठेके लेने वाले आधे के लगभग ठेकेदारों ने ठेकों की नई फीस ही नहीं भरी तथा वे बंद कर गए हैं। ऐसी खड्डों बारे सरकार ने अभी कोई फैसला नहीं लिया तथा चर्चा है कि छोड़ गए ठेकेदारों वाली खड्डें ही राजनीतिक लोगों ने सम्भाल रखी हैं।