‘चिट्टे’ के आतंकवाद में काली हुई जवानी


अमृतसर, 16 मार्च (सुरिन्द्र पाल सिंह वरपाल) : पहले वर्ष 1947, फिर वर्ष 1984 तथा अब ‘चिट्टे’ के आतंकवाद ने पिछले कुछ दशकों से युवा वर्ग को जवानी की दहलीज तक पहुंचाने से पहले-पहले ही श्मशान की तरफ ऐसा भेजा कि कई पीढ़ियां बर्बाद हो गईं। ऐसा ही व्यवहार वर्ष 2017 में हुई विधानसभा चुनावों दौरान देखने को मिला जब पंजाब की अहम तथा गंभीर समस्याओं में से एक नशे के खात्मे के लिए सत्ताधारी पार्टी के एक प्रमुख नेता द्वारा गुटके की शपथ उठाते हुए घोषित भी किया गया था कि पंजाब की सत्ता मिलने के 4 सप्ताहों के अंदर-अंदर ही नशे को जड़ से उखाड़ दिया जाएगा जबकि एक वर्ष बीत जाने उपरान्त भी नशों कारण घरों का उजाड़ा तथा नशों का कारोबार लगातार जारी है। चाहे कि प्रदेश सरकार द्वारा स्पैशल टास्क फोर्स (एस.टी.एफ.) का गठन करके किए हुए वायदे को निभाने के यत्न भी किए गए परन्तु लोगों की आशा मुताबिक ऐसे परिणाम सामने नहीं आए, जिनका बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। शुरुआती दौर में टास्क फोर्स की सरगर्मी ने तस्करों में तो एक बार सहम का माहौल पैदा कर दिया, परन्तु माहौल सुखद होने उपरान्त नशे के सौदागरों ने पुन: अपने पैर पसारने शुरू कर दिए। प्राप्त जानकारी अनुसार ऐेसे में जो सख्ती पुलिस द्वारा की गई उस कारण नशे की कीमतों में वृद्धि होकर 500 रुपए में मिलने वाली स्मैक का एक नग 1500 से 2000 हज़ार रुपए तक ज़रूर हो गया। एक सर्वेक्षण अनुसार 1995 में स्मैक का प्रयोग करने वाले 3 प्रतिशत, 1998 में 16 प्रतिशत तथा मौजूदा दौर में इससे कहीं अधिक घरों में कम से कम एक व्यक्ति नशे के आदी हैं तथा इनमें से ज्यादातर 18 से 35 वर्ष की उम्र वाले हैं। ताजा आंकड़ों अनुसार 10 से 18 वर्ष वर्ग आयु के बच्चों में से 23 प्रतिशत बच्चे नशों के आदी हो चुके हैं, यहां ही बस नहीं यदि ऐसे ही हालात रहे तो यह संख्या का आंकड़ा आने वाले पांच वर्षों में 40 प्रतिशत को पार कर जाने की संभावना है। नशों का प्रभाव केवल देश की अर्थव्यवस्था पर ही नहीं अपितु शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवार, विवाह संबंधों, रोज़गार, व्यक्तित्व विकास, कानून का उल्लंघन, अनुशासनहीनता आदि पर भी पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र की आलमी ड्रग रिपोर्ट अनुसार एशिया में भारत ड्रग का बड़ा खपतकार है, जबकि पंजाब इस मामले में देश का सबसे बड़ा प्रभावित प्रदेश बन चुका है। पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान से बहुत ही सुखद तरीकों से नशों की समगलिंग की जा रही है तथा सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के चलते पिछले वर्षों दौरान हज़ारों करोड़ की ड्रग पकड़ी गई।
विधानसभा चुनावों दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा एक दूसरे के विरुद्ध नशे को ही चुनावी मुद्दा बनाकर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने के लिए जमकर दुश्मनबाजी की गई जिसके तहत शपथ खाईं, निजी हमले भी किए तथा मामले अदालत तक पहुंचे, आखिर एक साल बाद माफी मांग पल्ला छुड़ाना ही ठीक समया परन्तु अब तक के उपरोक्त व्यवहार दौरान राजनीति तो चाहे खूब चमकी परन्तु नशे में ग्रस्त नौजवानों के श्मशान पहले जैसे ही जल रहे हैं।