बड़े पर्दे से लेकर छोटे पर्दे पर छा जाने वालेरामानंद सागर

लेकिन पढ़ाई के प्रति और विशेष तौर पर साहित्य के प्रति उनकी निष्ठा कमाल की थी। वह दिन के समय मजदूरी करते और रात को साहित्यिक गहराइयों में डूब जाते। इसके फलस्वरूप उन्होंने सांस्कृतिक और फारसी में पंजाब यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल लेकर बी.ए. की। साहित्यिक चेटक होने के कारण उन्होंने लाहौर से प्रकाशित होने वाली कई पत्रिकाओं के लिए कहानियां और नाटक लिखने भी शुरू कर दिए थे। देश के विभाजन के बाद रामानंद सागर दिल्ली आ गये। यहां उन्होंने रामानंद सागर, रामानंद चोपड़ा और रामानंद बेदी के नामों से साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लिखना जारी रखा। कुछ समय उन्होंने ‘दैनिक मिलाप’ के लिए भी काम किया। एक दिन जब वह एक अखबार के कार्यालय में काम कर रहे थे तो पृथ्वी राज कपूर का एक आदमी पृथ्वी थिएटर की ओर से खेले जा रहे एक नाटक के लिए विज्ञापन देने के लिए आया। रामानंद सागर ने उस आदमी को पृथ्वी राज कपूर को मिलाने के लिए प्रार्थना की। पृथ्वी राज कपूर से मिलने के बाद रामानंद ने उनको अपने सिनेमा और साहित्य के प्रति प्रेम बारे में जानकारी दी। उन्होंने  पृथ्वी थिएटर से जुड़ने की भी ख्वाहिश प्रकट की। पृथ्वी राज कपूर ने उनको अपना सहायक मैनेजर बना लिया और इसी तरह रामानंद ने अखबार की नौकरी छोड़ दी और वह मुम्बई आ गये। पृथ्वी थिएटर के लिए उन्होंने कई नाटक लिखे और उनका मंचन भी किया। इसी ही समय के दौरान उनकी मुलाकात राज कपूर के साथ हुई। उन्होंने राज कपूर को ‘बरसात’ की कहानी सुनाई, जोकि उनको बहुत पसंद आई। यहीं से ही रामानंद सागर का फिल्मी सफर शुरू होता है। ‘बरसात’ एक ऐसी प्रेम कहानी थी, जिसमें बताया गया था कि अमीर लोग अपनी हवस मिटाने के लिए कई बार प्रेम के नाम पर खिलवाड़ करते हैं। इस फिल्म में राज कपूर नरगिस, प्रेम नाथ और निम्मी आदि कलाकारों ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई थी। रामानंद सागर की इस रचना को रजतपट पर क्लासिक फिल्म का दर्जा दिया गया था।