बोरिस येल्तसिन रूसी लोकतंत्र का विवादास्पद नायक

बीसवीं सदी का जब भी राजनीतिक इतिहास लिखा जायेगा, बहुत बातों के अलावा एक तस्वीर की भी इस इतिहास में जगह पक्की होगी-वह तस्वीर है क्रेमलिन चैक में एक टैंक पर चढ़े बोरिस येल्तसिन की। जी हां, जून 1991 में सोवियत संघ को ध्वस्त कर देने वाले और बाद में सीधे जनता द्वारा चुने जाने वाले बोरिस निकोलाइएविच येल्तसिन रूस के पहले लोकतांत्रिक राष्ट्रपति थे। शीतकाल में अमरीका की तमाम कोशिशों के बाद भी और अस्सीयेत्तर दशक के अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के बहुचर्चित ‘बाहरी धक्का’ फार्मूला से भी जो भी सोवियत संघ नहीं टूटा था उसे बोरिस येल्तसिन ने अपनी जिद्दी सुधारवादी छवि की बदौलत तार-तार कर दिया। लगभग अपने ही हमउम्र मिखाइल गोर्वाचोव के साथ सोवियत संघ को ब्रेझनेव और चेरनेनको युग के आगे ले जाने की जो जिम्मेदारी येल्तसिन पर थी उसे उन्होंने पश्चिमी इशारे पर बाजारवादी हाथों में सौंप दिया और लेनिन की महान अगस्त क्रांति से पैदा हुए सोवियत संघ को महज रूस तक सीमित कर दिया। कुछ लोग येल्तसिन की तारीफ करते हुए कहते हैं कि अगर येल्तसिन नहीं होते तो रूस बिखर चुका होता। लेकिन यह मानने से पहले दुनिया का इतिहास यह कभी नहीं भूलेगा कि येल्तसिन नहीं होते तो शायद सोवियत संघ भी बिखरने से बच जाता।बहरहाल, 1999 में साल के अंतिम दिन रूसी जनता से उम्मीदों पर विफल रहने पर माफी मांगते हुए बोरिस येल्तसिन ने जब रूस की सत्ता भूतपूर्व कामरेड पुतिन के हाथों सौंपी, तो वे महज जनता से किए गये वायदों पर खरा न उतरने वाले इतिहास के असफल नायक भर नहीं थे, उन पर कई किस्म के घपलों-घोटालों के आरोप भी लगे थे बावजूद इसके येल्तसिन रूसी इतिहास का एक यादगार मोड़ हैं तो इसलिए क्योंकि उन्होंने 75 साल पुरानी जड़ हो चुकी कम्युनिस्ट सत्ता को उखाड़ फेंकने का साहस और दुस्साहस दोनों किया था। 1931 में पश्चिमी साइबेरिया के बुटाका गांव में पैदा हुए बोरिस निकोलाइएविच येल्तसिन के पिता एक समृद्ध किसान थे जिनकी जमीन जोसेफ  स्टालिन की सामूहिक खेती अभियान के चलते छीन ली गयी थी। यही नहीं येल्तसिन के पिता निकोलाई को तीन साल कैद बामशक्कत झेलनी पड़ी थी। रिहा होने के बाद बोरिस के पिता को एक आम कामगार की हैसियत से निर्माण विभाग में काम करना पड़ा था और उनकी मां को सिलाई-कढ़ाई करके घर की रोटी में अपना योगदान देना पड़ा था।