पृथ्वी को सूर्य की तपिश से बचाता है वायुमंडल

यदि पृथ्वी के गिर्द विभिन्न प्रकार की गैसों का आवरण न होता तो सूर्य की किरणें धरती को मानव के रहने लायक न छोड़तीं। यह गैसें मानव जीवन के लिए ज़रूरी हैं। इनके बिना जीवन कठिन हो जायेगा। यह गैसें अंतरिक्ष में 800 कि.मी. की दूरी तक फैली हुई हैं। परंतु प्रमुख गैसों का (आवरण) 16 कि.मी. तक ही फैला है। उससे जितना ऊपर जाते हैं, वायुमंडल पतला होता जाता है। अत: अधिक अंतरिक्ष में जाने के लिए मानव को वायु अपने साथ ले जानी पड़ती है। यह वायुमंडल पृथ्वी को सूर्य की गर्मी से ही नहीं बचाता वरन् भयंकर शीत से भी बचाता है। हमारे वायुमंडल में सबसे अधिक भाग है, नाइट्रोजन गैस का। यह गैस पेड़-पौधों, जानवरों और उनके पोषक तत्वों के लिए ज़रूरी है। दूसरा नंबर है ऑक्सीजन गैस का और उसके बाद हैं थोड़ी मात्रा में आरगन और कार्बन डाईऑक्साइड ग्रहण करते हैं और मानव इस गैस को खारिज करता है। यदि वायुमंडल में ऑक्सीजन न हो तो आग जलाना नामुकिन हो जाए। इतनी-सी बात से ही पता चलता है कि ऑक्सीजन का क्या महत्व है। इस वायुमंडल में पानी के कण भी रहते हैं। धूल, कार्बन की कालिख के कण और पौधों के बीजाणु भी इसमें रहते हैं। उल्काओं के टूटने से पैदा धूल भी इसमें मिलती रहती हैं। मुख्य रूप से पृथ्वी के वायुमंडल की चार तहें हैं। वायुमंडल की पहली तह अन्य तहों की निसबत ज्यादा गर्म है। ऐसा पृथ्वी की गर्मी की वजह है। वायुमंडल की तह को ‘ट्रोपोस्फियर’ कहते हैं। हमारी पृथ्वी पर शीत, ग्रीष्म और बसंत आदि ऋतुओं का निर्माण क्षेत्र के इसी वायुमंडल के कारण होता है। इस भाग में जितना ऊपर बढ़ते जाते हैं, तापमान कम होता जाता है। इससे ऊपर का वायुमंडल ‘ट्रोपाज’ कहलाता है। ऊपर की दो तहों को स्ट्रेटोस्फियर तथा आथनोस्फियर कहते हैं। स्ट्रेटोस्फियर में तापमान सम रहता है। इस क्षेत्र में आकाश गहरा नीला दिखाई देता है। यहां न वर्षा होती है और न बर्फ पड़ती है। परंतु तेज़ हवाएं चलती हैं। इस वायुमंडल का पृथ्वी पर भी दबाव रहता है। वायुमंडल के इस दबाव और ज़मीन के गुरुत्वाकर्षण के कारण हमारा चलना-फिरना तथा कामकाज़ करना सामान्य रहता है। जब हम इस वायुमंडल से बाहर निकलने अर्थात् इससे ऊपर जाने का यत्न करते हैं तो सब कुछ गड़बड़ा जाता है। उस हालात को संभालने के लिए विशेष यत्न करने पड़ते हैं। वायुमंडल के इस दबाव का औसत एक घन सैमी. एक कि.ग्रा. के बराबर है, परंतु यह दबाव स्थान और ऊंचाई के अनुरूप बदलता रहता है। इसका कारण यह भी है कि जहां वायु अधिक गर्म होती है, वह ऊपर को उठती है। उसके ऊपर उठने से उस स्थान पर हवा का दबाव कम हो जाता है तो अधिक दबाव वाली वायु ऊपर के कम दबाव वाले स्थान की ओर भागती हैं। कुछ हवाओं के अनुरूप समुद्र की लहरें भी चलती हैं। प्राचीन काल में नाविक इन्हीं हवाओं के सहारे समुद्री यात्राएं करते थे।