क्या भारत का नया सिर-दर्द है नेपाल ?

यह पहला ऐसा मौका है जब नेपाल में किसी नई सरकार के गठन के बाद, भारत से पहले किसी और देश का प्रधानमंत्री दौरे पर आया। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि यह कोई और देश पाकिस्तान रहा। जी, हां! बीते 5 और 6 मार्च 2018 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खक्कान अब्बासी दो दिन की राजकीय यात्रा पर नेपाल पहुंचे। हालांकि नेपाल राजकीय यात्रा पर अपने यहां किसको बुलाता है, किसको नहीं, यह उसका अपना आंतरिक मसला है। आखिरकार नेपाल एक स्वतंत्र संप्रभु देश है इसलिए यह तय करने का उसे पूरा हक है। लेकिन अगर कूटनीतिक औपचारिकताओं के आईने में देखें तो भारत के लिए यह नेपाल का बड़ा झटका है। सिर्फ  झटका ही नहीं है, बल्कि नेपाल के नए पीएम केपी ओली को लेकर भारत में जो आशंकाएं जतायी जा रही थीं, वह अब धीरे-धीरे सच होती लग रही हैं। इसका मतलब यह है कि कहीं पाकिस्तान और चीन की तरह नेपाल भी तो हमारे लिए कहीं एक नया कूटनीतिक सिरदर्द बनने नहीं जा रहा?
इसकी आशंका इसलिए भी बढ़ती जा रही है क्योंकि नेपाली प्रधानमंत्री ओली ने पहले तो चीन की मीडिया को ऐसा साक्षात्कार दिया, जिसमें साफ  शब्दों में उन्होंने भारत के कूटनीतिक हितों की अनदेखी की और उसके बाद जैसे कि आशंकाएं जतायी जा रही थीं कि ओली चीन के दोस्त पाकिस्तान से भी दोस्ती की पींगें बढ़ाने की कोशिश करेगा, उस आशंका को भी बहुत ज्यादा दिनों तक उन्होंने आशंका भर नहीं रहने दिया बल्कि पाकिस्तान के पीएम को आधिकारिक दौरे पर बुलाकर हकीकत में बदल दिया है। यह एक तरह से कूटनीतिक ही नहीं बल्कि भारत के साथ नेपाल के सांस्कृतिक रिश्तों को मुंह चिढ़ाने जैसा है। 5 मार्च 2018 को जब पाक प्रधानमंत्री शाहिद खक्कान अब्बासी नेपाल की राजधानी कांठमांडू पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत हुआ, जो कि भारत के लिए एक बुरी खबर है। हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने अब्बासी की नेपाल यात्रा को लेकर आधिकारिक तौर पर तो कोई बयान नहीं दिया है लेकिन नयी दिल्ली इससे परेशान जरूर हुआ और कहीं न कहीं कूटनीतिक मोर्चे पर उसने इसे अपने लिए नकारात्मक भी माना है। क्योंकि कुछ महीनों पहले जो आशंकाएं जतायी जा रही थीं कि अगर नेपाल में भारत विरोधी या भारत के परवाह न करने वाली ताकतें सत्ता में आती हैं तो नेपाल रणनीतिक तौर पर चीन और पाकिस्तान से नजदीकी बना सकता है, जो भारत के लिए किसी सिरदर्द से कम नहीं होगा। नेपाल का यह कदम इसलिए भी चौंकाता है क्याेंकि अभी ज्यादा दिन नहीं गुजरे जब चीन की ऐसी ही एक कूटनीतिक पैंतरेबाजी से मालद्वीव जैसा छोटा देश भी भारत की अनदेखी करने की हरकत कर चुका है। नेपाल में इससे पहले भी जब केपी ओली प्रधानमंत्री बने थे, तब उन्होंने भारत विरोधी रवैय्या अपनाया था। जिसके कारण दोनों देशों के रिश्तों में काफी तनाव आ गया था। हालांकि नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री के रूप में वह भारत के पहले चीन की यात्रा पर तो नहीं गये, जैसी कि आशंका थी, लेकिन भारत के तुरंत बाद चीन की यात्रा करके और नेपाल के बुनियादी विकास में भारत से ज्यादा चीन को हैसियत बख्श कर ओली ने तब भारत के साथ नेपाली रिश्तों को तंग करने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अब जबकि वह दोबारा प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए हैं तो भारत ने उन्हें मनाने की काफी कोशिश की है। इसका एक सबूत तो यही है कि दो बार प्रधानमंत्री मोदी उन्हें प्रोटोकॉल फ ोन कर चुके हैं। लेकिन इसके बाद भी नेपाली प्रधानमंत्री के रवैय्ये में कोई खास फ र्क नहीं दिख रहा। चीन के एक समाचार पत्र को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने साफ  तौर पर कहा है कि उनका देश चीन से ज्यादा से ज्यादा संपर्क बनाने की कोशिश करेगा ताकि नेपाल का तेजी से विकास हो सके और गरीबी दूर हो सके। सैद्धांतिक तौर पर यह सही ही है। लेकिन अब के पहले कोई भी नेपाली प्रधानमंत्री ऐसी जुबान नहीं बोलता रहा; क्योंकि उसे लगता रहा है कि इससे भारत को अपनी अनदेखी लगेगी। लेकिन ओली ने न केवल यह सब किया बल्कि साफ-साफ  शब्दों में यह भी कहा कि वह नहीं चाहेंगे कि उनका देश भारत पर अपनी हर ज़रूरत के लिए आश्रित रहे। अब चूंकि ये सारी ऐसी बातें हैं, जिससे कोई भी देश, दूसरे देश पर आरोप नहीं लगा सकता कि वह गलत कर रहा है। लेकिन दुनिया का हर देश कूटनीतिक तौर पर यही चाहता है कि दूसरे देश के साथ उसके रिश्ते अपने हितों से संचालित हों। नेपाल के प्रधानमंत्री का भारत से ज्यादा चीन और पाकिस्तान की तरफ  झुकाव और भारत से पहले नेपाल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का आधिकारिक दौरा भारतीय प्रभाव के पतन की कहानी कहता है। इससे यह आशंका भी बढ़ गई है कि नेपाल आने वाले दिनों में भारत के लिए कूटनीतिक सिरदर्द बन सकता है। वैसे भी आईएसआई ने नेपाल में अपनी बहुत गहरी पैठ बना ली है और मौजूदा पाक प्रधानमंत्री भारत की तमाम आक्रामकता के बावजूद विश्व मंच पर कश्मीर के संदर्भ में हमारी छवि खराब करने में जरा भी गुरेज नहीं करते। ऐसे में खुल्लम-खुल्ला भारत विरोधी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को नेपाल के राज्य की यात्रा का भारत से पहले मौका देकर नेपाल ने अपने फायदे के लिए कूटनीतिक शतरंज बिछा दी है। इससे भारत को अब पहले से कहीं ज्यादा नेपाल को लेकर संवेदनशील रहना पड़ेगा।