अच्छा धन

महात्मा अबुल अब्बास खुदा में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे। वे टोपियां सिलकर जीवन-यापन किया करते थे। टोपियों की सिलाई से मिलने वाली आय में से आधी आय वह किसी जरूरतमंद को दे देते थे और आधी में स्वयं गुजर-बसर करते थे।
उनका एक शिष्य था, जो स्वभाव से घमंडी होने के साथ-साथ बहुत धनवान भी था। उसने एक दिन महात्मा अब्बास से पूछा, ‘महात्मन्, मेरे पास धार्मिक संस्थाओं से मिला कुछ पैसा है। उसे मैं दान करना चाहता हूं। यह दान मैं किसे दूं?’ महात्मा अब्बास ने कहा, ‘जिसे तुम सुपात्र समझो, उसे ही दान कर दो।’ धनी शिष्य ने एक अंधे भिखारी को सोने की एक मोहर दान में दे दी। दूसरे दिन धनी शिष्य पुन: उस मार्ग से गुजरा तो उसने देखा कि वही अंधा भिखारी दूसरे को कह रहा था कि कल मुझे भीख में सोने की एक मोहर मिली। मैंने उससे खूब मौज-मस्ती, ऐश की और शराब भी पी।यह सुनकर धनी शिष्य को बहुत दुख हुआ। वह पुन: फकीर के पास गया और पूरी बात कह सुनाई। महात्मा ने उसे अपनी कमाई का एक सिक्का दिया और कहा कि तुम यह किसी याचक को दे देना। शिष्य ने वह सिक्का एक याचक को दिया और कौतूहलवश उस याचक के पीछे चल दिया। उसने देखा कि याचक एक निर्जन स्थल पर गया और अपने कपड़ों में छिपाए हुए एक पक्षी को निकाल कर उड़ा दिया। धनी शिष्य ने उस याचक से पूछा कि तुमने इस पक्षी को क्यों उड़ा दिया? याचक बोला, ‘तीन दिन से मेरा परिवार भूखा था। आज हम इस पक्षी का सेवन करते मगर आपने मुझे एक सिक्का दे दिया। इसलिए अब इस पक्षी की हत्या करने की मुझे ज़रूरत ही नहीं है।’धनी शिष्य फिर अबुल अब्बास के पास आया और उन्हें पूरा वृत्तांत विस्तार से कह सुनाया। तब अबुल अब्बास ने कहा, ‘स्पष्ट है कि तुम्हारा धन अन्याय और गलत विधि से कमाया गया है और इसी धन को तुमने उस अंधे भिखारी को दिया। परिणामस्वरूप उसने धन का गलत उपयोग किया जबकि मेरे द्वारा न्याय से कमाए गए पैसे ने एक परिवार को गलत काम से बचाया।’
— योगेश कुमार गोयल