भारत के लिए खतरनाक हो सकता है ट्रम्प का व्यापार युद्ध

अमरीका का वार्षिक ग्लोबल व्यापार लगभग 5 ट्रिलियन डॉलर का है। हर साल उसे तकरीबन 500 बिलियन डॉलर का घाटा होता है। डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के पहले साल में यह घाटा बढ़कर 556 बिलियन डॉलर हो गया। ट्रम्प का मानना है कि यह घाटा इस बात का सबूत है कि अमरीका के सभी व्यापार पार्टनर उससे अनुचित लाभ उठाते हैं। ट्रम्प का यह भी मानना है कि अमरीका में निर्माण के पतन ने देश को कमजोर कर दिया है और उसके श्रमिक वर्ग का दिवालिया निकाल दिया है। गौरतलब है कि 2016 के अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान ट्रम्प ने वायदा किया था कि वह ऐसी नीतियां लागू करेंगे जो घाटे को कम करेंगी और निर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) को बहाल करेंगी। यह ट्रम्प की ‘अमरीका फ र्स्ट’ नीति का आधार है। इसी योजना के तहत अमरीका में मार्च के पहले सप्ताह में स्टील पर 25 प्रतिशत और एल्युमिनियम पर 10 प्रतिशत की ड्यूटी की घोषणा की गई है। कनाडा व मैक्सिको को इससे फि लहाल के लिए अलग रखा गया है, बाकी देशों के विरुद्ध यह ड्यूटी अगले दो सप्ताह में प्रभावी हो जायेगी।अपने निर्णय की घोषणा करते हुए ट्रम्प ने कहा था, ‘हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मजबूत स्टील व एल्युमिनियम उद्योग बहुत महत्वपूर्ण हैं, पूर्णत: महत्वपूर्ण हैं...स्टील स्टील है। अगर आपके पास स्टील नहीं है तो आपके पास देश नहीं है।’ हाल के दिनों में ट्रम्प ने जो व्यापार संबंधी बयान दिए हैं उनमें कई बार भारत का उल्लेख किया गया है। ट्रम्प का मानना है कि भारतीय आयात-शुल्क (टैरिफ ) बहुत अधिक है और उन्होंने जवाब में भारतीय गुड्स पर टैरिफ  बढ़ाने की धमकी दी। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि वह भारत को टैरिफ  कम करने की ‘धमकी’ दे रहे हैं। अमरीका भारत के इंटेलक्चुअल प्रॉपर्टी अधिकार मानकों की भी आलोचना कर रहा है और उसकी इस वर्ष की रिपोर्ट इस संदर्भ में कठोर रुख अपना सकती है। कुल मिलाकर बात सिर्फ  यह है कि ट्रम्प के व्यापार युद्ध में भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है। बहरहाल, ट्रम्प के चुनाव अभियान का केंद्र बिंदु यह था कि कोई देश महान तभी हो सकता है जब उसमें मैन्यूफैक्चरिंग की क्षमता हो। इसलिए उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों को बाय-पास करने के लिए कानून का दुर्लभ से ही प्रयोग किये जाने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी सेक्शन का सहारा लिया और स्टील व एल्युमिनियम पर टैरिफ  बढ़ा दिया। लेकिन घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग और व्यापार घाटा पर बल देते हुए ट्रम्प ने इस तथ्य को अनदेखा कर दिया कि हाल के दशकों में अमरीकी अर्थव्यवस्था में जबरदस्त परिवर्तन आया है। अमरीका मूलत: सेवाओं का निर्यातक है और इसमें निरंतर इजाफा होता जा रहा है, वैसे वह कुल मिलाकर घाटे में है। अमरीका अधिक से अधिक सेवाएं निर्यात करता है और अधिक से अधिक गुड्स आयात करता है। इस संतुलन पर अब गहरा खतरा है। ट्रम्प की योजना पर अन्य देशों ने जवाबी योजना बनाना तय किया है। इससे ग्लोबल व्यापार युद्ध का खतरा बढ़ गया है। लेकिन ट्रम्प का मानना है कि यह युद्ध अमरीका के लिए बेहतर होगा। टैरिफ  घोषणा से कुछ दिन पहले ट्रम्प ने ट्विटर पर ट्वीट किया था, ‘जब एक देश (अमरीका) जिस भी देश से व्यापार कर रहा है उससे अनेक बिलियन डॉलर व्यापार में खो रहा है, तो व्यापार युद्ध बेहतर है, और उसे जीतना आसान है। उदहारण, अगर एक देश से हमें 100 बिलियन डॉलर का घाटा हो रहा है और वह होशियार बन रहा है, तो उससे आगे व्यापार मत करो। हमारी बड़ी जीत होगी। यह इतना आसान है!’ यूरोपियन कमीशन अमरीकी गुड्स जैसे बूरबॉन व्हिस्की, लेवाइस जीन्स, फ्लोरिडा ऑरेंज जूस व पीनट बटर पर टैरिफ बढ़ा सकता है। अमरीकी कृषि उत्पाद, एयरक्राफ्ट व मेडिकल उपकरण पर ग्लोबल बाजार में दबाव बढ़ सकता है। अमरीका के अपने उद्योग जो कच्चे माल के तौरपर स्टील व एल्युमिनियम का प्रयोग करते हैं, भी प्रभावित हो सकते हैं। अनेक अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ट्रम्प की घोषणा से ग्लोबल मंदी का दौर आरम्भ हो सकता है।यह तो अभी स्पष्ट नहीं है कि स्टील व एल्युमिनियम पर बढ़ाये गये टैरिफ  का अमरीकी अर्थव्यवस्था पर इच्छित प्रभाव पड़ेगा या नहीं, लेकिन इन सेक्टर का जो सीधा संबंध श्रमिक वर्ग से है उससे इस निर्णय के प्रतीकात्मक मूल्य में वृद्धि होती है। अमरीका को सबसे ज्यादा घाटा चीन से है, और चीन पर ही ट्रम्प के निर्णय का बहुत ही मामूली असर पड़ेगा। अधिक तीव्र व्यापार युद्ध इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के संदर्भ में होगा, और ट्रम्प ने यह मोर्चा जल्द खोलने की धमकी दी है। 7 मार्च को उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘अमरीका बहुत जल्द इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी चोरी पर कार्यवाही करने जा रहा है। यह अनेक वर्षों से हो रहा है, हम इसे जारी नहीं रहने दे सकते।’अमरीका के व्यापार प्रतिनिधि रोबर्ट ई लिघथिजर ने पिछली अगस्त में चीन की व्यापार व निवेश प्रथामिकताओं में विशेष जांच आरम्भ की थी ताकि इंटेलक्चुअल प्रॉपर्टी अधिकारों के आशंकित उल्लंघनों का पता चल सके। इसकी रिपोर्ट आने वाली है। अमरीकी कम्पनियां लम्बे समय से यह शिकायत करती आ रही हैं कि चीनी सरकार उन पर टेक्नोलॉजी शेयर करने का जबरन दबाव डालती है। जो अमरीकी कम्पनियां चीन में व्यापार करना चाहती हैं उन्हें जॉइंट वेंचर के लिए मजबूर किया जाता है और फि र उन पर चीनी पार्टनर को टेक्नोलॉजी ट्रांसफ र करने का दबाव डाला जाता है। इस प्रकार की शिकायतें काफी लम्बे समय से आ रही हैं। हाल ही में इस विषय पर कुछ अमरीकियों ने रिपोर्ट करते हुए अनुमान लगाया है कि इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी अधिकार उल्लंघन से अमरीका को हर साल लगभग 600 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हाई-टेक सेक्टर में कड़े कदम उठाना चीन के लिए अधिक भड़काऊ होगा।बहरहाल, ट्रम्प ने जो व्यापार युद्ध छेड़ा है उससे ग्लोबल आर्थिक मंदी आ सकती है, जो इस लिहाज़ से खतरनाक है कि इसका असर विकासशील देशों, जिसमें भारत भी शामिल है, की आम व गरीब जनता पर अधिक पड़ेगा। हर चीज महंगी हो जायेगी।