पार्किंसंस बुढ़ापे की एक दिमागी बीमारी


पार्किंसंस रोग एक दिमागी बीमारी है जिसमें दिमाग के एक विशेष समूह के न्यूरॉन नष्ट होना शुरू हो जाते हैं। ये न्यूरान दिमाग की कोशिकाओं को आपस में जोड़ते हैं और इनसे बड़ी मात्रा में दिमाग को काम करने के रासायनिक संकेत देनेवाला डोपामिन निकलता है। इन न्यूरानों के नष्ट होने से रोगी का शरीर के विभिन्न अंगों पर कंट्रोल ढीला पड़ जाता है।
शरीर में कंपकंपाहट होने से अपने काम पर कंट्रोल रखना कठिन हो जाता है। इस तरह उसकी क्रियाशीलता तथा गतिशीलता पर असर पड़ने के कारण वह जब पहले की तरह चुस्ती फुर्ती से काम नहीं कर पाता। मस्तिष्क के एक हिस्से-बेसल गैंगलिया पर इसके कारण असर पड़ता है। इससे शरीर पर मस्तिष्क की पकड़ कम हो जाती है और नर्व सेल्स डेमेज होने लगते हैं। इस बीमारी में सबसे पहले असर हाथों में कंपन के रूप में दिखाई देता है। फिर चेहरे या अन्य अंगों में कड़ापन महसूस होता है। इससे रोगी को अपने कार्य करने मुश्किल हो जाते हैं।
उपचार:- पार्किंसंस बीमारी पर रिसर्च से बेहतर उपचार विकसित होने की संभावनाएं बढ़ी हैं। अब इस बीमारी पर सही और भरोसेमंद जांच के लिए पैट स्कैनिंग यानी पॉजिट्रॉन मिशन टॉमोग्राफी का उपयोग बढ़ने लगा है। पैट स्कैनिंग से पता चलता है कि क्या रोगी के दिमाग के न्यूरान क्षतिग्रस्त हुए हैं और उनमें दिमाग के अन्य भागों तक रासायनिक संकेत पहुंचाने की क्षमता नहीं रही है। पैट स्कैनिंग से यह भी पता चल जाता है कि न्यूरान किस हद तक डेमेज हुए हैं और क्या इसकी वजह पार्किंसंस है? बीमारी का सही कारण पता चलने पर ही सही उपचार संभव हो पाता है। कुछ लोगों को कभी-कभी कंपकंपाहट महसूस होती है। ऐसे कुछ लोगों की पैट स्कैनिंग करने पर पता चला कि उनके दिमाग में डोपामिन पैदा करने वाले न्यूरॉन कुछ हद तक डैमेज हुए हैं। दिमाग की ऐसी स्थिति के लिए अगर वंशानुगत कारण जिम्मेदार हैं तो डी.एन.ए. टैस्ट द्वारा बीमारी की शुरूआत में या इससे पूर्व ही इसका जीन थेरेपी के जरिए कारगर ढंग से उपचार किया जा सकता है।
मरीज़़ की देखभाल:- मरीज़ को जितना हो सके, तनावरहित और प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें। अवसाद और तनाव से मरीज़ की हालत और बिगड़ जाएगी। दवा बेअसर होते देख स्वयं या देखरेखकर्ता दवा की डोज बढ़ाने की गलती न करें, बल्कि डॉक्टर से सलाह लें। मरीज़ को अपनत्व और सहानुभूति की जरूर है। उसके सामने कभी एंटी रवैय्या न अपनाएं बल्कि हां में हां मिलाते रहें या जरूरी होने पर प्यार और अपनत्व से समझाएं। एकाकीपन और बोरियत रोग बढ़ाते हैं। मरीज़ को मनोरंजन के साधन जुटाएं, उसे कंपनी दें। यह ध्यान रखें कि उसके पास ज्यादा शोर शराबा न हो। तेज आवाज में टीवी या स्टीरियो न लगायें। मरीज़ दूसरों के रहमो करम पर रहता है, इसलिए वह कुछ ज्यादा संवेदनशील हो जाता है। यह बात याद रखने की है कि बीमारी के कारण उसकी सोचने समझने की शक्ति नष्ट नहीं हुई है।  मरीज़ को दवा के कुछ आफ्टर इफैक्ट्स और कुछ साइड इफैक्ट्स होते हैं। उसे हैल्युसिनेशंस (भ्रम) हो सकते हैं सिरदर्द, अनिद्रा व कब्ज की शिकायत हो सकती है। इनकी जानकारी डॉक्टर को देना जरूरी है। (स्वास्थ्य दर्पण)              
-उषा जैन ‘शीरीं’