सीमा पर झंडा उतारने की रस्म के समय बंद हो ऩफरत का इज़हार


अमृतसर, 20 मार्च (सुरिन्द्र कोछड़) : अटारी-वाघा अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर प्रतिदिन सायं सूरज अस्त होने पर की जाने वाली झंडा उतारने की रस्म के समय परेड़ के दौरान पिछले लम्बे समय से किया जा रहा ऩफरत का इज़हार दोनों तरफ से लगातार तनाव वाले माहौल में वृद्धि करता प्रतीत हो रहा है। उपरोक्त 25 मिनट की रिट्रीट सैरामनी में भारत-पाकिस्तान की तरफ से किया जा रहा आपसी ऩफरत का यह इज़हार उन सामाजिक संस्थाओं, कलाकारों तथा साहित्यकारों आदि के लिए चुनौती बनता जा रहा है, जो दोनों देशों में आपसी सांझ तथा भाईचारे को और अधिक मजबूत करने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं।
शिरोमणि नाटककार केवल धालीवाल के अनुसार भारत-पाकिस्तान की सामाजिक संस्थाओं तथा साहित्यकार उक्त परेड़ में नरमी लाने तथा हमलावर रुख खत्म करने के लिए दोनों तरफ की सरकारों द्वारा लगातार मांग करते आ रहे हैं। इस संबंधी कई बार बैठकें, नाटक तथा सैमीनार भी करवाए जा चुके हैं, परन्तु इसके बावजूद परेड़ के दौरान नम्रता वाला माहौल बनता नहीं दिखाई दे रहा।
इस बारे में फोकलोर रिसर्च अकादमी के अध्यक्ष रमेश यादव ने कहा कि अपने-अपने देश के राष्ट्रीय झंडों को सम्मान देने तथा भाईचारक साझ पक्की करने के लिए शुरू की गई उपरोक्त परेड़ के कारण दोनों देशों के जवान परेड़ दौरान नाटकीय ढंग से मूंछों को ताव देते हैं, अपनी तुरले वाली पगड़ियों को सीधा करते तथा कभी भोहें तथा कभी कंधे उठाते एक-दूसरे को ललकारने के लहजे से झंडे उतारते हैं। परेड़ में शामिल लोगों द्वारा नारेबाज़ी करके परेड़ के खत्म होने तक हमलावर माहौल बरकरार रहता है।
11 अक्तूबर, 1947 को वाघा सीमा की नींव रखने वाले ब्रिगेडियर स. महिन्द्र सिंह चोपड़ा के सुपुत्र स. पुष्पिन्द्र सिंह चोपड़ा ने हर सायं भारत-पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर झंडा उतारने की रस्म के समय की जाने वाली परेड़ के दौरान दोनों तरफ की सेनाओं द्वारा तनाव का माहौल कायम किए जाने की निंदा करते हुए इस सब को बालीवुड तमाशा बताया है। उन्होंने कहा कि ऩफरत का इज़हार करने की अपेक्षा दोनों तरफ के सैनिक परेड़ के दौरान एक दूसरे के गले लगें तो दोनों तरफ के नागरिकों में एक अच्छा संदेश जा सकता है।
लाहौर से पंजाबी प्रचार संस्था के सदर अहमद रज़ा खां के अनुसार अटारी-वाघा सीमा पर संयुक्त जांच चौकी में प्रतिदिन शाम को होने वाली परेड़ में भारत की तरफ से बी.एस.एफ. के जवानों तथा पाकिस्तान की तरफ से सतलुज रेंजर द्वारा पेश किए जाने वाले तनाव के कारण दोनों तरफ से हज़ारों की संख्या में पहुंच रहे दर्शकों में कोई अच्छा संदेश नहीं जा रहा। उन्होंने कहा कि दोनों तरफ की सेनाओं को एक-दूसरे के साथ हाथ मिलाकर भाईचारक साझ का प्रदर्शन करना चाहिए।
प्रसिद्ध पाकिस्तानी शायर बाबा नज़मी का कहना है कि सीमा पर परेड़ के दौरान ऐसा प्रदर्शन किया जाना बनता है जिससे परेड़ में शामिल दोनों देशों के नागरिकों का अपनी सेना, अपने देश के राष्ट्रीय झंडों के साथ-साथ पड़ोसी देश तथा उसके नागरिकों के प्रति भी प्यार बढ़े तथा सम्मान में वृद्धि हो। तारिक ज़टाला कहते हैं कि सीमा पर किए जाने वाले इस ऩफरत के इज़हार के दौरान उन मोमबत्तियों की रोशनी के कुछ अर्थ नहीं रह जाते, जो दोनों देशों में शान्ति तथा भाईचारक साझ के लिए लगातार संघर्ष कर रहे शान्ति पसन्द नागरिकों द्वारा प्रत्येक वर्ष सीमा के दोनों तरफ से 14 अगस्त की रात की जलाई जाती हैं।