जल प्रबंधन : सलाह नहीं, चेतावनी है !

स्वच्छ जल हमारी मूलभूत आवश्यकता है। प्राचीनकाल में विभिन्न नगर नदियों के किनारे इसी कारण बसाए जाते थे कि जल आपूर्ति सुचारू रूप से हो सके। स्वच्छ तथा शुद्ध जल की मानव स्वास्थ्य के संदर्भ में उपयोगिता स्वयं सिद्ध है। यह पेयजल के रूप में तो अपना महत्त्व रखता ही है, साथ ही कृषि व उद्योगों हेतु भी आवश्यक है।सामान्यत: लोग सोचते हैं कि जल तो असीमित है परंतु यह सही नहीं है। हमारी पृथ्वी में कुल 140 करोड़ घन किलोमीटर जल है यानी प्रति वर्ग कि. मी. के लिए 9 लाख घन किमी जल। इसमें से केवल 3 प्रतिशत पीने योग्य मीठा जल है जिसका लगभग तीन चौथाई भाग ग्लेशियर तथा हिम शिखरों में जमा है और केवल एक चौथाई भाग नदियों, जलाशयों के रूप में उपलब्ध है। मीठे जल के अलावा हमारी पेय जल आवश्यकताओं के लिए शेष 97 प्रतिशत समुद्री जल का बड़ा महत्त्व है, क्योंकि समुद्र से ही वाष्पित होकर यह तीन प्रतिशत मीठा जल प्रतिवर्ष भूमि पर प्रक्षेपित होता है तथा पृथ्वी के विभिन्न भागों में एकत्र होता है। मानव उपभोग के बाद नदियों के माध्यम से यही जल पुन: समुद्रों तक वापस चला जाता है। मीठे जल का यह वार्षिक चक्र चिरकाल से चल रहा है। इस प्रकार प्रतिवर्ष नवीनीकृत मीठे पेय योग्य जल का भंडार इतना विशाल है कि यह आने वाले कई वर्षों तक मानव जाति के लिए पर्याप्त होगा।
परंतु मनुष्य ने अपनी लोभी मनोवृत्ति एवं असीमित आकांक्षाओं के चलते प्रकृति प्रदत्त इस जल के अक्षय भंडार को दूषित कर दिया है तथा बड़े पैमाने पर वन एवं वनस्पति जगत को नष्ट करके इस भण्डार को समाप्ति के कगार पर पहुंचा दिया है। आज शुद्ध पेय जल तथा सिंचाई दोनों के लिए भीषण जल संकट पैदा हो गया है। आज हमारे देश की स्थिति यह है कि खाने के लिए अन्न तो है किंतु पीने के लिए शुद्ध पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। जो कुछ उपलब्ध है, उसके भी (यदि यही स्थिति रही तो) अगले दो-तीन दशक में ही समाप्त हो जाने की आशंका है।समस्या की गंभीरता इसी से समझी जा सकती है कि आज दुनिया के एक अरब से ज्यादा लोगों को पीने के लिए शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं है। दुनिया की आधी आबादी स्वच्छ व पीने योग्य जल के अभाव में अनेक प्रकार की समस्याओं तथा बीमारियों का सामना कर रही है। निरंतर बढ़ती जनसंख्या, उच्च जीवन शैली, निरंतर विकास, कृषि व औद्योगिक उत्पादकता आदि हेतु पानी की खपत तेजी से बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में पेयजल की यह समस्या और भी विकट है। भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह बात सामने आती है कि जल संसाधनों के उचित प्रबंधन व नियोजन के अभाव में स्थिति बद से बदतर हो गयी है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार कुल जल संसाधनों में मात्र 30 प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है। यदि उपलब्ध साधनों का ठोस प्रबंधन नहीं किया गया तो देश को भयंकर सूखे एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।  जल विज्ञान के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आबादी इसी तरह बढ़ती रही, प्रदूषण की रफ्तार इसी तरह होती रही और कृषि व उद्योगों ने यूं ही पानी सोखना जारी रखा तो पृथ्वी पर भीषण जल संकट से त्राहि-त्राहि मच जाएगी। चूंकि पानी प्राकृतिक देन है, अत: इसका तुरंत और प्रभावी उपाय तो संभव नहीं है किंतु राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक गतिविधियों का तालमेल करके इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। हमारे॒ देश की औसत वार्षिक वर्षा बहुत अच्छी है, किंतु उचित जल प्रबंधन के अभाव में इसका अधिकांश भाग व्यर्थ बह जाता है। इसके चलते देशभर में ग्रीष्म ऋ तु में पानी के लिए हाहाकार मचा रहता है। जल प्रबंधन की दिशा में कदम उठाते हुए परम्परागत जल स्रोतों को ढूंढ़कर उनमें वर्षा के जल की आवक का पुख्ता प्रबंध किया जाना चाहिए जिससे बाढ़ एवं सूखे के कारण होने वाली जन-धन की हानि से बचा जा सके तथा पर्याप्त पानी उपलब्ध होने से मछली पालन, पशु पालन एवं वनस्पति आधारित उद्योगों को बढ़ावा मिल सके। इसके अतिरिक्त फसल चक्र को परम्परागत क्षेत्र विशेष की आवश्यकतानुसार पुनर्गठित करना होगा। चमड़ा प्रसंस्करण, पशु मांस उद्योग, रसायन एवं कीटनाशक दवा उद्योगों की स्थापना पर रोक लगानी चाहिए।उद्योगों में नवीनीकरण कर उन्हें आधुनिक तकनीकें अपनानी चाहिए जो जल को कम प्रदूषित करें। कीटनाशकों के स्थान पर जैवनाशियों तथा जैव उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। इस क्षेत्र में वैज्ञानिकों द्वारा और अनुसंधान करने की जरूरत है। हमारे देश में अनेक धार्मिक मान्यताओं एवं अंधविश्वासों के कारण तथा विभिन्न पर्वों पर नदियों एवं तालाबों में मूर्तियों व अन्य सामग्रियों के विसर्जन के कारण भी उपलब्ध जल संसाधनों का लगातार हृस होता जा रहा है। इस पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाया जाना अत्यंत आवश्यक है। भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा जल प्रबंध के विभिन्न पहलुओं पर कार्य किया जा रहे हैं। विश्व बैंक भी इस दिशा में प्रमुखता से ध्यान दे रहा है। राष्ट्रीय पेयजल मिशन भारत भी सार्थक कार्य कर रहा है। निस्संदेह किए जा रहे प्रयास सराहनीय हैं किंतु अभी कमियां भी कम नहीं हैं। यह भारत का दुर्भाग्य है जहां राजनीतिक पार्टियों की कार्य सूची में पर्यावरण विषयक जैसे मुद्दों का सर्वथा अभाव रहता है। समन्वित जल योजना आज की अपरिहार्यता है। यद्यपि इस दिशा में शुभ संकेत मिल रहे हैं किंतु निरंतर प्रयास जारी रखना आवश्यक है, जिसके चलते संभव है, हमें इस समस्या का कोई उचित हल मिल सके। (युवराज)