हाथ-पांव गंवाने के बाद भी नहीं रुकी संगीता की उड़ान

बुलंद हौसले की मिसाल और इरादों की मज़बूत संगीता बिश्नोई हाथ और पांव से पूरी तरह विकलांग है लेकिन इसके बावजूद उनकी उड़ान कभी कम नहीं पड़ी। अगर संगीता बिश्नोई को भारत का गौरव कहा जाए तो बात अतिश्योक्ति नहीं, बल्कि एक जीती-जागती हकीकत है, जिसको उन्होंने सच कर दिखाया है। यह बात भी बड़े गर्व से कही जाएगी कि संगीता बिश्नोई ने 10 वर्ष की छोटी-सी उम्र में इंग्लैंड की धरती पर वर्ष 2003-04 में मिनी पैरा-ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीत कर भारत की शान और कद को और ऊंचा किया। संगीता बिश्नोई का जन्म 14 नवम्बर, 1990 को राजस्थान प्रांत के ज़िला जोधपुर के कस्बा बुध नगर में पिता राम सुख बिश्नोई के घर माता दाखू देवी की कोख से हुआ। संगीता बिश्नोई अभी 7 वर्ष की उम्र में ही थी कि वह अपने परिवार के साथ अपने मामा की शादी पर गई हुई थी, जहां वह हाई पॉवर भयानक करंट की चपेट में आ गई,  इस घटना से विवाह की खुशियां गमी में बदल गईं।कई महीने अस्पताल में रहने के बाद संगीता मौत के मुंह से तो बच गई लेकिन उनका बायां पांव और दायां हाथ करंट की चपेट में आने से इतनी बुरी तरह घायल हो गया कि उनका पांव और हाथ काटना पड़ा। माता-पिता के लिए यह सदमा असहनीय था कि कल उनकी बेटी अठखेलियां करती आ रही थी। आज वह विकलांगों वाली ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर है। माता-पिता ने आखिरी सब्र का घूंट भर लिया और वह कंधों पर बिठाकर उनको स्कूल छोड़ने जाते और छुट्टी के समय लेकर आते। शुरुआती शिक्षा के बाद संगीता बिश्नोई को दिव्यांग बच्चों के स्कूल में पढ़ने के लिए डाल दिया गया, जहां संगीता ने अपनी इस विकलांगता को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करके कुछ नया करने का दृढ़ इरादा कर लिया और वह विकलांग होने के बावजूद खेल के मैदान में उतरी। चाहे कि उनको बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन मुश्किलें भी संगीता बिश्नोई की हिम्मत आगे रुक नहीं सकीं।
वह स्कूल की ओर से ही वर्ष 2003-04 में इंग्लैंड खेलने के लिए गईं, जहां उन्होंने 10 वर्ष की उम्र में स्वर्ण पदक जीत कर दृढ़ इच्छा शक्ति का सबूत दिया। संगीता की इस छोटी उम्र में उपलब्धि से जहां राजस्थान प्रांत खिल उठा, वहीं दिल्ली में उस समय के राष्ट्रपति स्व. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने उनकी प्रशंसा ही नहीं की, बल्कि उनके हौसले की दाद देकर सम्मानित भी किया। संगीता एक हाथ से ही डिस्कस थ्रो खेलती हैं। ब्लेड रनर अर्थात् नई तकनीक से पांव में बैल्ट लगा कर चलती हैं और जब लोग उनको खेल के मैदान में खेलते देखते हैं तो बस हैरान ही रह जाते हैं और जब वह अपने साथी खिलाड़ियों को पछाड़ देती हैं तो संगीता को और बल मिलता है। संगीता ने अब तक राजस्थान में हुई भिन्न-भिन्न पैरा- एथलैटिक खेलों में 6 स्वर्ण पदक जीतकर अपनी खेल कला का लोहा मनवाया है। यहीं बस नहीं, उन्होंने एक हाथ से 40 किलोमीटर साइकिल चलाकर भी एक कीर्तिमान स्थापित किया है।संगीता बिश्नोई कहती हैं कि वह अपनी विकलांगता से नहीं, बल्कि अपनी खेल कला से लोगों का मन जीतना चाहती हैं और वह लगातार खेल प्रदर्शन करके लोगों की वाह-वाह बटोर रही हैं। संगीता बिश्नोई चाहे विकलांग है लेकिन वह एक समाज सेविका भी हैं और वह समाज सेवा के कामों में भी जानी जाती हैं। संगीता कहती हैं कि वह अपने कोच अमर सिंह बाटी को कभी नहीं भूलती, जिन्होंने उनको अंगुली पकड़ कर खेल के मैदान में उतारा था और अब तक वह उनके साथ हैं। इसी के साथ ही वह विशेष आभारी हैं अपने कोच दिनेश उपाध्याय की, जिनकी ओर से भी उनको खेल के क्षेत्र में पूर्ण सहयोग मिला है। संगीता के इस जज़्बे और हौसले को सलाम करते हुए अंत में यही कहा जा सकता है कि ‘जिन में अकेले चलने के हौसले होते हैं एक दिन उनके पीछे ही क़ािफले बनते हैं।’