जल स्रोतों संबंधी हो बेहतर योजनाबंदी

यह एक अच्छी बात है कि कल विश्व जल दिवस के संदर्भ में जल स्रोतों की सांभ-संभाल की बात चली है। समाचार-पत्रों में बहुत सारे लेख प्रकाशित हुए हैं और इलैक्ट्रोनिक मीडिया पर विचार-चर्चाएं हुई हैं। सदियों पूर्व यह पंजाब पांच दरियाओं की धरती था, तब यहां दरिया कल-कल बहते थे। इस क्षेत्र में सिंधु घाटी की तरह सभ्यताओं के पनपने का भी यही कारण था। उस समय लोग जहां जल स्रोत देखते थे, वहीं अपना जीवन व्यतीत करना शुरू कर देते थे। हमसे यह लोग कहीं अधिक भाग्यशाली थे, जिनको उस समय शुद्ध जल मिलता था और जंगलों की कमी नहीं थी। परन्तु आज इस धरती पर न तो जल शुद्ध रहा है और न ही पेड़ दिखाई देते हैं। हैरानी की बात यह है कि हम बहुत सारे लोग इस बात के प्रति सचेत ही नहीं हैं। जल की कमी खतरे की सीमा तक बढ़ती जा रही है। विश्व जल दिवस के अवसर पर हम देखते हैं कि दुनिया भर में जो जल स्रोतों का हाल हो चुका है, उस पर गम्भीर चिंता व्यक्त की जानी स्वाभाविक है। वर्ष 2050 में इस धरती पर अरबों लोग ऐसे होंगे, जिनको जल की किल्लत का सामना करना पड़ेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि जल नहीं होगा तो जीवन भी नहीं होगा। यदि जल नहीं है तो हरियाली नहीं है, यदि जल नहीं है तो यह धरती रेगिस्तान है। ऐसे बन रहे रेगिस्तान में कोई कितनी देर तक जी सकेगा। इसीलिए जल के लिए युद्ध शुरू हो गए हैं। जल की कमी के कारण देश के राज्य और अलग-अलग देश एक-दूसरे के खून के प्यासे बनते जा रहे हैं। पंजाब जहां शुद्ध जल की कमी नहीं थी, जहां अनेक जलाश्य थे, जहां दरियाओं के साथ-साथ छोटी नहरें थीं, परन्तु अब प्रतिदिन कृषि के लिए ज़मीन की बढ़ रही ज़रूरत और निर्माणों के कारण यह जलाश्य समाप्त होकर रह गए हैं। ड्रेनों और नालों का बेहद तेज़ाबी पानी दरियाओं में पड़ रहा है, इसीलिए मछलियों और पक्षियों की अनेक प्रजातियां अब लुप्त हो चुकी हैं। भारत में पीने वाले जल के स्रोत 4 प्रतिशत हैं। इसके पास दुनिया की धरती का अढ़ाई प्रतिशत क्षेत्रफल है, परन्तु आज इसकी जनसंख्या बढ़कर 17 प्रतिशत हो चुकी है। हैरानी इस बात की है कि न तो सरकारों द्वारा बढ़ रही जनसंख्या के संदर्भ में जल स्रोतों की कमी के बारे में और बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के लिए कोई बढ़िया योजनाएं बनाई जा रही हैं, और न ही समाजसेवी संगठनों द्वारा इसके प्रति कोई बड़े स्तर पर योगदान डाला जा रहा है। आज पंजाब बेहद छोटा राज्य बनकर रह गया है। यहां के अढ़ाई दरियाओं का पानी सूखता और खत्म होता जा रहा है। इसको कृषि प्रधान राज्य कहा जाता है। यहां 72 प्रतिशत कृषि ट्यूबवैलों द्वारा की जाती है। आज इसके सीने पर साढ़े 14 लाख ट्यूबवैल प्रतिदिन पानी निकालते नज़र आते हैं। हमारे राजनीतिज्ञों की कृषि के लिए मुफ्त बिजली देने की नीतियों ने इस धरती को रेगिस्तान बनाने में अपना बड़ा योगदान डाला है। इसी कारण आज पंजाब के 147 ब्लाक डार्क ज़ोन घोषित कर दिए गए हैं। कृषि के साथ-साथ फैक्टरियों द्वारा भी जहां सबमर्सिबल मोटरों द्वारा लगातार जल निकाला जा रहा है, वहीं अपना रसायनों से भरपूर जल बोर करके धरती में डाला जा रहा है। फैक्टरियों तथा शहरों की अन्य गंदगी ने दरियाओं के जल को बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है। कृषि के लिए रासायनिक खादों और कीटनाशकों के बेहद प्रयोग ने भी विषाक्त रसायनों को पूरी तरह धरती के नीचे तक पहुंचा दिया है। पंजाब में धान की बड़े स्तर पर होती कृषि ने जल स्तर को नीचे पहुंचाने में अपना बड़ा योगदान डाला है। आम लोगों का हाल यह है कि उन्होंने अपने घरों में बड़े स्तर पर सबमर्सिबल पम्प लगवा लिए हैं। गांवों में ट्यूबवैलों के बिजली कनैक्शन मुफ्त होने के कारण ट्यूबवैलों द्वारा ज़रूरत से अधिक जल निकाला जाता है। घरों के नल खुले रहते हैं। सरकार ने जो टंकियां लगवाई हैं, उनमें से आते जल के प्रयोग को बिल्कुल बेहतर ढंग से नहीं किया जाता, बल्कि नल खुले छोड़कर इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। आज ज़रूरत जल को संभालने की है। बरसात के जल को अनेक ढंगों से संभाला और प्रयोग किया जा सकता है। सीवरेज़ के गंदे पानी को आधुनिक तकनीकों द्वारा साफ करके उसका कृषि के लिए प्रयोग किया जा सकता है। ज्यादा पानी मांगने वाली फसलों के स्थान पर विभिन्नता वाली फसलें, जिनमें जल का कम प्रयोग होता हो, को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।नदियों और दरियाओं के जल को हर हाल में शुद्ध रखने के प्रयास किए जाने चाहिएं। ऐसा कुछ सरकार द्वारा बनाई गई बड़ी योजना से ही सम्भव हो सकता है। ऐसी योजना पर सख्ती से अमल किया जाना चाहिए। प्रत्येक स्तर पर लोगों को जल की कमी के प्रति सुचेत किया जाना ज़रूरी है। अब हालात यह बन गए हैं कि यदि क्रांतिकारी स्तर पर इस संबंधी बदलाव करके योजनाबंदी न की गई तो हमारी आने वाली पीढ़ियों को पछताना पड़ेगा, परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। इसलिए प्रत्येक स्तर पर आज से जल के प्रबंध संबंधी योजनाबंदी की जानी समय की बड़ी ज़रूरत है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द