केजरीवाल ने मजीठिया से माफी क्यों मांगी ?

इस समय पंजाब की राजनीति में आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल द्वारा अपने विरुद्ध 30 से अधिक मान-हानि के मामलों में से एक-एक करके सभी से माफी मांगने की बात सबसे अधिक चर्चा में है। यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि ऐसे 30 से अधिक मामलों में फंसे श्री केजरीवाल ने सबसे पहले स. मजीठिया से ही माफी क्यों मांगी? जबकि यह मामला तो अभी काफी लटक सकता था और खतरे की कोई तत्काल तलवार भी श्री केजरीवाल के सिर पर नहीं लटक रही थी। हालांकि आम आदमी पार्टी यह सफाई दे रही है कि इन मामलों में इतना समय खराब हो रहा था कि श्री केजरीवाल मुख्यमंत्री के तौर पर दिल्ली के लिए कार्य नहीं कर पा रहे थे। गौरतलब है कि केजरीवाल ने मजीठिया तथा अन्यों से माफी मांगने के फैसले के बारे में उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, ‘आप’ नेता आशीष खेतान, पंजाब के एक विधायक और एक-दो अन्य नेताओं के अलावा किसी को विश्वास में नहीं लिया। यहां तक कि जो विधायक अब भी केजरीवाल के पाले में खड़े हैं, वह भी इस माफी से हैरान-परेशान हैं। केजरीवाल टीम द्वारा समय खराब होने से बचाने की दलील किसी के भी गले से नहीं उतर रही क्योंकि सवाल उठता है कि क्या केजरीवाल अब कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे? यदि ‘आप’ चुनाव लड़ेगी तो क्या केजरीवाल इस बार अपने भाषणों में विरोधियों पर कोई आरोप नहीं लगायेंगे? यदि लगायेंगे तो क्या फिर दोबारा नए केस नहीं होंगे? 
मजीठिया से माफी के पीछे कारण?
‘आप’ ने पंजाब विधानसभा में नशे को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था और इसके बारे में सबसे अधिक आरोप भी बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ लगाए थे। केजरीवाल स्वयं मजीठिया के खिलाफ सबसे अधिक बोले। फिर ऐसा क्या हुआ कि उनको मजीठिया से माफी मांगनी पड़ी। इसके बारे में दो अलग-अलग कारण सुनाई दे रहे हैं। पहली बात तो यह सुनाई दे रही है कि केजरीवाल अरुण जेतली वाले केस से सम्भावित अंजाम से घबरा गए हैं और उन्होंने इस संबंध में जेतली के साथ समझौता करने के लिए सम्पर्क किया तो उन्होंने यह शर्त रखी कि पहले नितिन गडकरी और मजीठिया से माफी मांगो, जिसको मानकर केजरीवाल को मजीठिया से माफी मांगनी पड़ी। ताज़ा सूचना के अनुसार अब श्री जेतली ने यह शर्त लगा दी है कि मुझसे माफी अकेले केजरीवाल नहीं बल्कि संजय सिंह तथा अन्य ‘आप’ नेता भी मांगें। हमें मिली सूचना के अनुसार चाहे संजय सिंह ने मजीठिया से तो माफी नहीं मांगी, परन्तु वह केजरीवाल को बचाने के लिए जेतली से केजरीवाल के साथ माफी मांगने के लिए सहमत हो गए हैं। एक दूसरा कारण भी कुछ क्षेत्रों द्वारा बताया जा रहा है कि केजरीवाल पंजाब के ‘आप’ नेतृत्व द्वारा ‘आप’ हाईकमान की परवाह न किये जाने से नाराज़ थे और ऊपर से उनको सत्य या झूठ पर यह सूचनाएं मिली थीं कि सुखपाल सिंह खैहरा, बैंस भाई, ‘आप’ से निकाले सांसद धर्मवीर गांधी, एक कांग्रेसी विधायक तथा कुछ अन्यों द्वारा एक नया पंजाबी फ्रंट बनाए जाने की तैयारियां की जा रही हैं और ‘आप’ के अधिकतर विधायक सुखपाल सिंह खैहरा के साथ जा सकते हैं। चाहे इन समाचारों का कोई ठोस आधार नहीं था परन्तु चर्चा है कि ‘आप’ प्रमुख केजरीवाल इनसे परेशान थे। इस बीच जब केजरीवाल ने मान-हानि के मामलों में माफी लेने का रास्ता चुन लिया तो पंजाब में एक तीर से दो शिकार खेलने का खेल चुना गया। बताया जा रहा है कि उनकी यह सोची-समझी चाल थी कि जब उनकी मजीठिया से माफी मांगने की बात सामने आएगी तो पार्टी के पंजाब इकाई के प्रमुख भगवंत मान, विपक्ष के नेता खैहरा और कंवर संधू की प्रतिक्रिया बहुत कड़ी होगी,  वह स्वयं ही इस्तीफे दे देंगे। कई लोग तो यह भी कह रहे हैं कि पार्टी नेता अमन अरोड़ा ने इस्तीफा उनको इस्तीफे देने के लिए उकसाने हेतु ही दिया था, नहीं तो वह तो आज भी केजरीवाल खेमे में ही खड़े हैं। परन्तु यह खेल केजरीवाल और ‘आप’ को उल्टा पड़ गया, क्योंकि जो कुछ सोचा गया था उस तरह नहीं हुआ। हमारी जानकारी के अनुसार माफी मांगने के समय बिक्रम सिंह मजीठिया के साथ हुए समझौते की एक मौखिक शर्त यह भी थी कि मजीठिया माफी मांगे जाने के बाद हफ्ता-दस दिन इसके बारे में कोई बयानबाज़ी नहीं करेंगे। इस बीच यह बात धीरे-धीरे फैलेगी और पार्टी हाईकमान ज्यादातर विधायकों को अपने साथ कर लेगी। परन्तु मजीठिया इस माफी से बहुत उत्साहित थे और उनके लिए अपनी छवि सुधारने हेतु यह बहुत बड़ी बात थी। 
माफी का समझौता कैसे पूर्ण हुआ?
सारे मामले को बहुत ही गुप्त ढंग से पूर्ण किया गया। हमारी जानकारी के अनुसार इस समझौते का सूत्र बुनने की ज़िम्मेदारी ‘आप’ नेता आशीष खेतान को सौंपी गई। लगभग 6 महीने पूर्व खेतान ने इसके बारे में सुखपाल सिंह खैहरा को भी टटोला परन्तु उन्होंने इसमें पड़ने से साफ इन्कार कर दिया। हमारी जानकारी के अनुसार खेतान ने पार्टी के एक सिख विधायक तथा चंडीगढ़ के एक सिख मामलों के लिए लड़ने वाले वकील द्वारा एक ऐसे नेता से सम्पर्क किया जो बिक्रम सिंह मजीठिया के भी निकट था और जिस पर यह वकील और विधायक भी विश्वास करते थे। इस सिख नेता ने मजीठिया के साथ समझौते की बात की, तो पता चला कि मजीठिया केजरीवाल के आरोप-प्रत्यारोप से दिल से बहुत दुखी थे। वह इसको अपना चरित्र-हनन मान रहे थे। वह समझौते के लिए तैयार नहीं थे , परन्तु जब उनको समझाया गया कि इससे उनकी छवि पर लगे दाग ही नहीं धुल जायेंगे, अपितु अकाली दल को फायदा होगा तो वह मान गए। हमारी जानकारी के अनुसार केजरीवाल इस समझौते के बाद उठे तूफान से बहुत निराश हुए, क्योंकि इसके परिणाम उनकी आशा से कहीं अधिक बुरे निकले और खैहरा और मज़बूत हो गए।
दलित पत्ता खेलने की तैयारी में ‘आप’?
इस बीच पता चला है कि ‘आप’ हाईकमान पंजाब में दलित पत्ता खेलने की तैयारी में है। वास्तव में पार्टी ने पहले चार लोकसभा सीटों में से भी दो रिज़र्व और फिर विधानसभा में जीतीं 20 में से 9 रिज़र्व सीटें जीती हैं। पता चला है कि पार्टी सोचती है कि पंजाब में दलितों की आबादी 31.94 प्रतिशत है, जबकि जाटों की आबादी 21 प्रतिशत है। यदि 31 प्रतिशत वोट लेकर भाजपा देश पर शासन कर रही है तो पंजाब के 32 प्रतिशत दलितों को एकजुट करके अन्य लोगों से बनता हिस्सा लेकर पार्टी पंजाब में अपना अस्तित्व बचा सकती है और सत्ता पाने की ओर भी बढ़ सकती है। इसलिए पता चला है कि ‘आप’ की आन्तरिक लड़ाई शीघ्र शांत होने वाली नहीं और आगामी दिनों में और बढ़ने के ही आसार हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘आप’ हाईकमान अब सुखपाल सिंह खैहरा के स्थान पर दलित नेताओं, सरबजीत कौर माणूके  या अमरजीत सिंह संदोआ को विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाने की सम्भावनाएं तलाश रही है। परन्तु केजरीवाल के लिए हालात इतने अनुकूल नहीं हैं, क्योंकि खैहरा किसी भी कीमत पर विपक्ष के नेता का पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं होंगे। यदि पार्टी हाईकमान ने उनको हटाने की कोई कोशिश की तो पार्टी का दोफाड़ होना तय हो जायेगा और विपक्ष के नेता का पद स्वयं अकाली दल की झोली में पड़ जायेगा। 
पंजाब की राजनीति का भविष्य?
हालांकि कैप्टन सरकार अपनी ओर से कार्य कर रही दिखाई देती है, परन्तु एक वर्ष की कारगुजारी ने कांग्रेस का ग्राफ कम ही किया है। लोग अभी भी अकाली दल की ओर झुके नज़र नहीं आ रहे, जबकि ‘आप’ पहले ही कोई अच्छी हालत में नहीं थी परन्तु केजरीवाल की माफी ने उसका बेड़ा ही गर्क कर दिया है। इसलिए समझा जा रहा है कि पंजाब में राजनीतिक रिक्तता को भरने के लिए किसी नई पार्टी का उभार समय की ज़रूरत है। परन्तु यह पार्टी तब ही सफल हो सकेगी यदि इसके नेताओं के साथ-साथ निचले स्तर पर भी वही लोग लिए जाएं, जिनकी विश्वसनीयता संदिग्ध न हो।

—1044, गुरुनानक स्ट्रीट, समराला रोड खन्ना