हमारे आदर्श पुरुष हैं श्री राम

ऋषि मुनियों की इस तपोभूमि में अयोध्या नगरी में रघुकुल में जन्मे दशरथ पुत्र श्रीराम अपने कर्म, वाणी और वचनबद्धता के लिये हमारे लिये एक आदर्श पुरुष हैं। हम श्रीराम को भगवान से ज्यादा एक आदर्श पुरुष के रूप में इसलिये मानते हैं क्योंकि वह आजीवन सामाजिक मर्यादाओं और संरचनाओं के रक्षक रहे हैं इसलिये उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम राम भी कहा जाता है।भगवान श्रीराम की प्रसिद्धि जितनी भगवान के रूप में है, उससे कहीं ज्यादा एक त्यागी और योगी पुरुष के रुप में है। एक राजा होते हुये भी पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये उन्होंने 14 वर्ष तक योगी का जीवन बिताया। बाद में एक आदर्श राजा के रूप में वह दूर-दूर तक प्रसिद्ध हुये। इसलिये एक आदर्श सुराज्य की व्याख्या और उसकी तुलना सत्ययुगीन रामराज्य से आज भी की जाती है। हम सिर्फ हिन्दुओं का देवता कह कर उनके विराट स्वरूप को सीमित नहीं कर सकते। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूख अब्दुल्ला का यह कहना एकदम सही है कि राम सिर्फ हिन्दुओं के राम नहीं बल्कि पूरे विश्व के राम हैं। राम हमारे आदर्श हैं क्योंकि वह अपने आचार विचार और संस्कार के कारण हमारे हृदय में बसते हैं। वह हमारे आराध्य हैं क्योंकि माना गया है कि वह नारायण के मानव अवतार थे लेकिन श्रीराम ने स्वयं के भगवान होने का कभी कोई दावा नहीं किया और न ही उनकी पूजा के लिये अलग से कोई मंत्र या विधि विधान है बल्कि नारायण मंत्र और विधि विधान श्रीराम की पूजा के समय प्रयुक्त की जाती है। रामायण की पूजा इसलिये की जाती है क्योंकि यह भारतीय पारिवारिक व्यवस्था और संस्कृति सहित सामाजिक संरचनाओं का आइना है। यह ग्रन्थ हमें बताता है कि पिता का पुत्र के प्रति, भाई का भाई के प्रति, पति का पत्नी के प्रति और पत्नी का पति के प्रति क्या कर्त्तव्य होता है। सम्पूर्ण रामायण में सीता की अग्नि परीक्षा सहित राम के हाथों बाली की मृत्यु जैसे कुछ अप्रिय प्रसंग भी मिलते हैं लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि सीता की अग्नि परीक्षा श्री राम ने दुखी मन से प्रजा की मांग पर ही ली थी जो आज के राजनेताओं के लिये एक सबक भी हो सकता है। इसी प्रकार बाली जैसे कामुक, अपने भाई की पत्नी पर बुरी नीयत रखने वाले, राक्षसी प्रवृत्ति के व्यक्ति को जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं है। यह अलग बात है कि श्रीराम के साथ उसकी कोई दुश्मनी नहीं थी। यदि श्री राम ने उसे मारा तो कोई अनैतिक कार्य नहीं किया। (युवराज)